प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में यह कहकर देश के लोगों का मनोबल बढ़ाने के साथ ही चीन को भी अपने दृढ़ इरादों से परिचित कराया कि लद्दाख की तरफ आंख उठाने वालों को करारा जवाब मिला है। प्रधानमंत्री ने जिस तरह यह कहा कि हमें दोस्ती निभाना और आंखों में आंखें डालकर जवाब देना भी आता है, उससे उन्होंने यह संकेत भी दे दिया कि चीन को उसकी धोखेबाजी का जवाब दिया जाएगा। यह जरूरी भी है। चीन को यह बताने की सख्त जरूरत है कि न तो उसकी शर्तो पर दोस्ती मंजूर है और न ही उसकी दादागीरी। चीन को यह पता चलना ही चाहिए कि उसने कायरों की तरह हमला कर केवल भारी भूल ही नहीं की, बल्कि मुसीबत मोल लेने का भी काम किया है।

आवश्यक केवल यह नहीं है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना की अतिक्रमणकारी हरकतों का मुंहतोड़ जवाब देने की हरसंभव तैयारी की जाए, बल्कि यह भी है कि आर्थिक एवं कूटनीतिक स्तर पर भी उसके खिलाफ आवश्यक कदम उठाए जाएं। यह समय की मांग थी कि भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के मंच से यह कहता कि कोरोना वायरस के फैलने के कारणों की तह तक जाया जाए। चीन को बच निकलने का कोई मौका नहीं दिया जाना चाहिए। भारत को तिब्बत, ताइवान और हांगकांग के सवालों पर भी चीन को घेरना चाहिए। अब उसकी संवेदनशीलता की चिंता नहीं की जानी चाहिए। वैसे भी हाल के समय में अहंकारी चीनी नेतृत्व ने यही दिखाया है कि वह भारत से अपने लिए जैसा व्यवहार चाहता है वैसा खुद उसके प्रति करने को तैयार नहीं।

यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने लोकल के लिए वोकल नारे को नए सिरे से रेखांकित करते हुए देश में बनी चीजों का इस्तेमाल करने पर जोर दिया। उनकी इस बात का इसलिए विशेष महत्व है, क्योंकि देश में पहले से ही चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मांग तेज हो रही है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने ऐसे कुछ लोगों का उल्लेख भी किया जिन्होंने यह संकल्प लिया है कि वे स्वदेशी उत्पाद ही अपनाएंगे।

साफ है कि प्रधानमंत्री यह कहना चाह रहे हैं कि सभी देशवासी ऐसा ही करें। इससे ही आत्मनिर्भर भारत अभियान को मजबूती मिलेगी और जब ऐसा होगा तब चीनी वस्तुओं की मांग अपने आप गिरेगी। बेहतर हो कि भारतीय उद्योग जगत यह समझे कि चीन के खिलाफ देश में जो माहौल बना है वह उसके लिए एक अवसर है। नि:संदेह सरकार को भी यह देखना चाहिए कि चीन के प्रति लोगों के स्वाभाविक और सर्वथा उचित आक्रोश को भारतीय उद्योग जगत सही तरह से भुनाने में कैसे सफल हो?