लखनऊ की ट्रैफिक पुलिस को जिस तरह से हाइटेक बनाने की पहल हुई है, उसका समुचित इस्तेमाल हुआ तो बेहद सकारात्मक परिणाम निकलेंगे। इस प्रयोग को दूसरे जिलों की यातायात व्यवस्था सुदृढ़ बनाने के लिए भी आगे बढ़ाया जाना चाहिए। दरअसल, रविवार को राजधानी की ट्रैफिक पुलिस के सब इंस्पेक्टरों और हजरतगंज कोतवाली के निरीक्षक को बॉडी वॉर्न कैमरों से लैस किया गया। इस कैमरे की कीमत महज 25 हजार रुपये है लेकिन ये कमाल के फीचर वाले हैं। इसमें 32 मेगा पिक्सल का शक्तिशाली कैमरा लगा है जो इसकी 32 जीबी मेमोरी में 16 घंटे तक लगातार रिकॉर्डिंग कर सकता है। इसमें 12 मीटर रेंज तक अंधेरे में भी रिकॉर्डिंग हो सकती है और खास बात यह कि रिकॉर्ड वीडियो डिलीट नहीं किया जा सकता। इसे कंट्रोल रूम में रोजाना डाउनलोड कर देखा जाएगा और उसी अनुरूप एक्शन लिया जाएगा। जरूरत पडऩे पर टीएसआइ भी रिकॉर्डिंग को मौके पर देख सकता है।

यूं तो कहा गया है कि कैमरे इसलिए दिए जा रहे हैं ताकि टीएसआइ इनकी निगहबानी में ही वाहनों की चेकिंग करें। इससे ट्रैफिक पुलिस की छवि पर लग रहे दाग धोए जा सकेंगें लेकिन एक बार रिकॉर्डिंग हो गई तो इसे कई तरह से प्रयोग किया जा सकता है। वाहन चेकिंग के दौरान टीएसआइ किसी को पैसे लेकर छोडऩे से बचेंगे तो उन पर रौब गांठने वाले बिगड़ैल रईसजादे, रसूख वाले अफसर और राजनीतिक दलों के बेलगाम कार्यकर्ता भी ठिठकेंगे। यह किसी से छिपा नहीं है कि पुलिस की सबसे कठिन नौकरी करने वाले ट्रैफिक कर्मी हर रोज अप्रिय स्थितियों का सामना करते हैं लेकिन शिकायत भी नहीं कर सकते। इसके विपरीत किसी अन्य ने शिकायत कर दी तो उनका निलंबन, चौराहे से बेदखली सबसे पहले होती है। अब उनके पास अपनी पीड़ा का सबूत होगा। अराजक धरना प्रदर्शन के दौरान भी यह कैमरे सबूत रिकॉर्ड कर सकेंगे। जब यह कैमरा ऑन होगा तो सड़क पर होने वाली दूसरी गैर कानूनी गतिविधियों और अराजक तत्वों की आवाजाही पर भी बेइरादा ही नजर रख सकेगा। जरूरत पडऩे पर इसकी रिकॉर्डिंग का विश्लेषण कर नतीजों पर पहुंचा जा सकेगा। आज जिस तरह सीसीटीवी कैमरे कई तरह के अपराधों से पर्दा उठाने में सहायक बन रहे हैं, उसी तरह ट्रैफिक पुलिस के कैमरे भी बन सकते हैं। उपयोगिता के सापेक्ष इसमें ज्यादा बजट की भी आवश्यकता नहीं। यह प्रयोग पूरे प्रदेश में लागू किया जाना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]