कांगड़ा निवासी जेसीबी चालक अपने क्वार्टर में मृत मिला। वह मंडी के चैलचौक में रह रहा था। छानबीन में सामने आ रहा है कि उसने आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या की। उसके भाई का दावा है कि मृतक कर्ज से परेशान था। वह जब भी घर आता, तो कर्ज की बात करता। उसने घर बनाने के लिए जमीन ले रखी थी। जेब में पैसा न होने के कारण ऐसा नहीं कर पाया। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। जीने के सारे रास्ते बंद लग रहे हों, तब भी पॉजीटिव रहना चाहिए। फिर भी। कुछ दूसरे सवाल भी हैं।

सरकार और पुलिस को मानना पड़ेगा कि आर्थिक तंगी और बेरोजगारी के कारण लोग जान दे रहे हैं। पर इस तरह के मामलों को प्रेम प्रसंगों से जोड़ दिया जाता है। अधिकतर मामलों में रिपोर्ट बनती है कि प्रेम-प्रसंग के चलते मौत हुई। पिछले दिनों ऊना में बेरोजगार ने घर में जान दे दी थी। उसकी उम्र तो 25 साल से भी कम थी। कम उम्र में बेरोजगार आत्महत्या कर ले, इस पर संदेह भी होता है। पर उसको जानने वालों का यही कहना था कि वह बेरोजगार था। उसको दूसरी कोई परेशानी नहीं थी। प्रदेश में नौ लाख के करीब बेरोजगार हैं। इनमें पढ़े-लिखे और कम पढ़े सारे शामिल हैं। असल में यह आंकड़ा इससे भी ज्यादा है।

राज्य सरकार की तरफ से कुछ माह पहले कहा गया था कि बेरोजगारों की संख्या तीन लाख से कुछ ज्यादा है। सरकार की बात में भी दम है। होता यूं है कि जो लोग निजी कंपनियों में काम कर रहे हैं या जिन्होंने स्वरोजगार अपना रखा है या जो छोटा-मोटा बिजनेस कर रहे हैं, सभी ने रोजगार कार्यालयों में नाम लिखवा रखे हैं। इसकी वजह सरकारी नौकरी का आकर्षण है। कुछ तो इतना अच्छा कारोबार कर रहे हैं कि वे सरकारी नौकरी वालों पर भी भारी हैं। पर ऐसे बहुत कम लोग हैं।

अधिकतर लोग संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे लोग कल को बेहतर होने की उम्मीद में जी रहे हैं। जेसीबी चालक के साथ भी ऐसा ही हुआ। सरकार स्वरोजगार अपनाने को जरूर कहती है, पर अपना काम शुरू करने के लिए भी पैसे चाहिए। अगर कारोबार में सफल हो गए तो ठीक, वरना जेसीबी चालक जैसा हाल होने की आशंका रहती है। आर्थिक तंगी में जी रहे लोगों के लिए नीति बनाकर उनको निराशा के अंधेरे से निकालने की बड़ी जरूरत है।

[हिमाचल प्रदेश संपादकीय]