नोटबंदी, जीएसटी के बाद सौ दिनों के काम और मिड डे मिल को आधार कार्ड से जोडऩे के केंद्र के फैसले का बंगाल की ममता सरकार ने जमकर विरोध किया था। इसके बाद अब सरकारी राशन दुकानों से मिलने वाली खाद्य सामग्रियों पर केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी सीधे उपभोक्ता के बैंक खाते में हस्तांतरित करने के फैसले का ममता सरकार ने विरोध किया है। इस विरोध के चलते केंद्र को फैसला वापस लेना पड़ा है। केंद्र की ओर से स्पष्ट किया गया है कि जबरन यह नियम राज्यों पर नहीं थोपा जाएगा। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय की ओर से भेजे गए पत्र में लिखा गया है कि कोई भी राज्य लिखित रूप से यह बताएगा कि वह राशनिंग व्यवस्था में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) व्यवस्था चालू करना चाहता है, तभी उसे उक्त राज्य में चालू किया जाएगा। बंगाल के खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक का कहना है कि डीबीटी को लागू करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। मल्लिक का तर्क है कि सस्ता चावल-गेहूं के बदले रुपये बैंक खाते में हस्तांतरित करने से लाभान्वित होने वाले लोगों के सामने खाद्य संकट पैदा हो जाएगा। कुछ लोग राशन डीलरों के साथ साजिश रचकर खाद्य सामग्रियां न लेकर सब्सिडी की राशि अपने बैंक में ट्रांसफर करा सकते हैं। इसके अलावा गरीब लोगों को दो रुपये किलो की दर से चावल दिया जा रहा है। नकदी हस्तांतरित होने से गरीबों को भी 25-30 रुपये प्रति किलो की दर से चावल खरीदना पड़ेगा। इतनी अधिक राशि वे लोग खर्च नहीं कर पाएंगे। रसोई गैस के मामले में सब्सिडी की राशि उपभोक्ताओं के बैंक खाते में सीधे ट्रांसफर हो रही है। उसी तर्ज पर राशन मामले में भी केंद्र सरकार ने रुपये सीधे उपभोक्ताओं के खाते में हस्तांतरित करने की योजना बनाई है। इस बाबत सभी राज्य सरकारों को केंद्र की ओर से पत्र लिखा गया था। अब तक दो केंद्रशासित राज्य ही डीबीटी के लिए राजी हुए हैं। अन्य राज्यों की ओर से कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है। केंद्र सरकार का कहना है कि राशनिंग व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए यह फैसला लिया गया है क्योंकि राशन के नाम पर कई तरह की गड़बडिय़ां हो रही हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर बंगाल सरकार की ओर से इस फैसले का विरोध क्यों किया जा रहा है? क्या राज्य सरकार नहीं चाहती कि सस्ते राशन देने का श्रेय केंद्र को जाए या फिर कुछ और बात है। व्यवस्था में पारदर्शिता होनी चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि व्यवस्था विकसित की जाए।
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(हाइलाइटर :: क्या राज्य सरकार नहीं चाहती कि सस्ते राशन देने का श्रेय केंद्र को जाए या फिर कुछ और बात है।)

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]