खोजी पत्रकारों के एक समूह की ओर से सार्वजनिक की गई यह जानकारी चौंकाने वाली है कि पनामा की एक कंपनी किस तरह दुनिया भर के अमीरों का टैक्स बचाने के संदिग्ध नजर आने वाले धंधे में लिप्त है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि इस कंपनी की सेवाएं लेने वालों में नामी उद्यमी, खिलाड़ी, अभिनेता, नेता और यहां तक कि शासनाध्यक्ष भी हैं। चूंकि इनमें से कई शासनाध्यक्ष ऐसे हैं जो तानाशाह अथवा भ्रष्ट शासक की छवि रखते हैं इसलिए यह संदेह होना स्वाभाविक है कि कहीं टैक्स बचाने के नाम पर काले धन को सफेद करने का खेल तो नहीं हो रहा था। पनामा की इस कंपनी की 40 से अधिक देशों में सक्रियता यही संकेत करती है कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण प्राप्त था। इस कंपनी का दावा है कि वह तो कानूनों के हिसाब से काम करती है। दरअसल समस्या की असली जड़ कई देशों के वे कानून ही हैं जिनके तहत गोपनीय खाते खोलना, धन के स्नोत को छिपाना और कागजी कंपनियां बनाना आसान है। ऐसे नियम-कानूनों के चलते कई देश काला धन छिपाने के अड्डों में तब्दील हो गए हैं। कुछ छोटे-छोटे देशों में तो मुख्यत: यही काम होता है और वह भी डंके की चोट पर। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इन देशों के अति गोपनीय बैंकिंग नियमों का लाभ भ्रष्ट एवं माफिया तत्व भी उठाते हैं और टैक्स बचाने और छिपाने वाले भी। फिलहाल यह कहना कठिन है कि पनामा पेपर्स के जरिये जिन लोगों के नाम सामने आए हैं वे सभी टैक्स बचाने के आरोपी हैं या काले धन को सफेद करने के। इसी तरह अभी यह भी नहीं कहा जा सकता कि इन्होंने अपने-अपने देशों के नियमों का उल्लंघन किया है या फिर उनकी शिथिलता का लाभ उठाया है?

चूंकि भारत में काले धन का मसला पहले से ही सतह पर है इसलिए इस पर आश्चर्य नहीं कि पनामा पेपर्स में अच्छी-खासी संख्या में भारतीय हस्तियों का नाम सामने आते ही सरकार ने जांच की घोषणा कर दी। इसके बावजूद यह कहना कठिन है कि मामले की तह तक जाया जा सकेगा, क्योंकि काले धन का अड्डा समझे जाने वाले देश अपने उन बैंकिंग नियमों में फेरबदल करने के लिए तैयार नहीं जो मूलत: टैक्स चोरों की मदद करते हैं। इन देशों पर कोई ठोस दबाव इसलिए नहीं बनाया जा पा रहा है, क्योंकि विश्व समुदाय मामले की गंभीरता को समझने के लिए तैयार नहीं। भारत और कुछ देशों की तमाम पहल के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी व्यवस्था नहीं बन सकी है कि काले धन का कारोबार करने और टैक्स चोरी करने वालों पर सही तरह से कोई अंकुश लगाया जा सके। इसके पहले खोजी पत्रकारों के इसी समूह ने कुछ समय पहले बड़ी संख्या में उन लोगों के नाम सार्वजनिक किए थे जिन पर काले धन के संग्रह का संदेह था। तमाम देशों की सक्रियता के बावजूद तह तक नहीं पहुंचा जा सका। यह कहना कठिन है कि इस बार कुछ ठोस हासिल किया जा सकेगा, क्योंकि काले धन पर अंकुश लगाने के लिए जो कुछ उपाय किए गए हैं वे अगले वर्ष से प्रभावी होंगे। स्पष्ट है कि काला धन छिपाने और टैक्स चोरी करने वाले लोगों पर कोई ठोस कार्रवाई हो पाना मुश्किल ही नजर आ रहा है। इस मुश्किल के लिए विश्व के प्रमुख राष्ट्र जिम्मेदार हैं, जो काले धन पर यह जानते हुए भी कामचलाऊ रवैया अपनाए हुए हैं कि यह कारोबार किस तरह भ्रष्ट तत्वों का काम आसान कर रहा है और इसके चलते किस तरह गरीबी और असमानता की खाई बढ़ती जा रही है।

[ मुख्य संपादकीय ]