एक और हादसा
जब तक बाहर से आने वाले लोग हिमाचल की सर्पीली सड़कों पर वाहन चलाने में लापरवाही बरतेंगे तब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे
पहाड़ी प्रदेश हिमाचल की सर्पीली सड़कें हर रोज खून से लाल हो रही हैं। शायद ही कोई ऐसा दिन बीते, जिस दिन हादसे में किसी की जान न गई हो। सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में औसतन तीन लोगों की जान रोजाना सड़क हादसों में जा रही है। प्रदेश का सरकारी अमला तभी नींद से जागता है, जब कोई हादसा सामने आता है। हादसों के लिहाज से प्रदेश का कोई भी जिला सुरक्षित नहीं है। चंबा से लेकर सिरमौर व मंडी से लेकर किन्नौर तक हर जगह सड़कें समान रूप से संवेदनशील हैं। अधिकतर सड़कें ऐसी हैं कि सावधानी हटते ही दुर्घटना होने का अंदेशा बना रहता है। ऐसी स्थिति में बाहर से आने वाले वाहन चालकों को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए ताकि वे हादसे का शिकार न हों। ऊना जिले के नैहरियां में सोमवार को हुए हादसे में पंजाब के बटाला व बाबा वकाला तहसीलों के छह लोगों की मौत हो गई जबकि 10 लोगों को जख्म मिले। हैरानी की बात है कि क्वालिस में 16 लोग कैसे बैठा लिए गए? अगर बैठाए गए थे तो पुलिस ने उन्हें क्यों नहीं रोका और कैसे सफर करने की अनुमति प्रदान कर दी।
अगर पुलिस प्रशासन ने सक्रियता दिखाई होती तो असमय छह लोगों को मौत के मुंह में न जाना पड़ता। चालक के नशा करने व लापरवाही से वाहन चलाने की बात भी सामने आई है जो गंभीर विषय है। किसी भी व्यक्ति की सुरक्षा उसके हाथ ही में होती है। अगर व्यक्ति खुद ही सचेत नहीं होगा और खतरों के बावजूद कदम उठाएगा तो परिणाम सुखद नहीं हो सकते हैं। विशेषकर ऐसा व्यक्ति, जिस पर अपने साथ-साथ दूसरों की जिंदगी को बचाने की जिम्मेदारी भी है, उसे ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए जिसमें कोई जोखिम हो। मैदानी इलाकों से आने वाले चालक पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियों में वाहन चलाने के अभ्यस्त नहीं होते, इसलिए उन्हें वाहन चलाते समय अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए। यातायात नियमों का पालन केवल मजबूरी के लिए करने की आदत छोड़नी होगी बल्कि इसे अपनी व दूसरों की सुरक्षा के लिए अपनाना चाहिए। हादसे हिमाचल में ऐसा नियमित क्रम बनते जा रहे हैं, जिन्हें रोकने के लिए धरातल पर मजबूत कदम उठाने होंगे। इसके लिए हर पक्ष को जिम्मेदारी से आचरण करना होगा और उन उपायों को धरातल पर लागू करने की दिशा में कदम उठाने होंगे।
[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]