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प्रदेश का कोई भी शहर हो, यातायात जाम की समस्या से कतई अछूता नहीं है। जाम की स्थिति का प्रमुख कारण यातायात नियमों की अनदेखी है
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हिमाचल प्रदेश में वाहनों की संख्या बढऩे के साथ ही यातायात जाम की समस्या आम होने लगी है। शिमला, धर्मशाला, मंडी, मनाली या जैसे पर्यटकों से भरे रहने वाले शहर हों या छोटे कस्बे, कोई भी इस समस्या से अछूता नहीं है। यह कहना गलत नहीं होगा कि लोग जब तक सड़क पर चलने का सलीका नहीं सीख लेते तब तक यातायात जाम के मामलों में कमी आने की उम्मीद करना बेमानी होगा। प्रदेश में पंजीकृत निजी वाहनों की संख्या 12 लाख से अधिक है। यूं भी कह सकते हैं कि औसतन हर घर के पास एक वाहन है। सड़कों पर आमतौर पर देखा गया है कि अराजकता की स्थिति रहती है। यातायात नियमों का पालन सिर्फ चालान कटने के डर या पुलिस कर्मी को देखने पर ही किया जाता है। सबको यह लगता है कि आगे अगर यातायात पुलिस के कर्मचारी खड़े हैं तो सीट बेल्ट पहन लेनी चाहिए। किसी को लगता है कि चालान से बचने के लिए हेलमेट पहनना चाहिए। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि चालान न कटना महत्वपूर्ण माना जाता है जबकि जान को सुरक्षित रखने की बात दोयम दर्जे पर रह जाती है। लाल व हरी बत्ती तभी देखी जाती है जब ट्रैफिक पुलिस कर्मचारी ड्यूटी पर तैनात हो। सिर्फ अपने तक सीमित रहने की सोच सड़क पर अराजकता को बढ़ावा दे रही है और कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसे दूसरों की सुध हो। सड़क पर एंबुलेंस देखकर भी रास्ता देने के लिए कोई तैयार नहीं होता। ऐसे माता-पिता भी कम दोषी नहीं हैं, जो नाबालिग बच्चों को गाड़ी चलाने की अनुमति दे देते हैं। यातायात जाम की वजह से वाहनों की कतारों के बीच जिंदगी निरंतर असुरक्षित और छोटी हो चली है। यातायात व्यवस्था एक असाध्य रोग की तरह हिमाचल को विचलित कर रही है। एक पहलू यह भी है कि शहरी आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है, लेकिन उस अनुपात में आधारभूत ढांचे का विकास नहीं हुआ है, जिसकी वजह से शहरों में ट्रैफिक बड़ी समस्या बन कर उभरा है। इसका समाधान शासन-प्रशासन के साथ लोगों के हाथ में भी है। बिना पार्किंग की व्यवस्था के कोई वाहन पंजीकृत न किया जाए। सड़क पर खड़े वाहनों को उठाने के लिए कानून व प्रशासन को सख्त होना होगा। युवा पीढ़ी के वाहनों पर नजर रखनी चाहिए। सबसे जरूरी है कि लोग यातायात नियमों का पालन करें ताकि सड़कें सुगम व सुरक्षित होंगी।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]