छल-कपट, लालच और जोर-जबरदस्ती से होने वाले मतांतरण को रोकने के लिए कानून बनाने की मांग करने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय कुछ भी हो, इस सच से कोई भी मुंह नहीं मोड़ सकता कि देश में कुछ समूह और संगठन यह काम बिना किसी रोक-टोक करने में लगे हुए हैं। इन संगठनों के निशाने पर आम तौर पर गरीब-अशिक्षित जनता और खासकर दलित-आदिवासी हैं। मतांतरण में लिप्त संगठनों ने पहले पूर्वोत्तर राज्यों को अपने निशाने पर लिया और फिर झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा सरीखे आदिवासी बहुल राज्यों को।

अब तो वे पंजाब और दक्षिण भारत के राज्यों में भी सक्रिय हो गए हैं। इनकी सक्रियता के नतीजे अच्छे नहीं होंगे। ऐसे संगठन केवल इस धार्मिक विश्वास से ही लैस नहीं हैं कि दुनिया का भला तभी हो सकता है, जब वह उपासना पद्धति विशेष की शरण में आएगी, बल्कि इस मानसिकता से भी ग्रस्त हैं कि अन्य मत-पंथ वालों को तथाकथित सही राह पर लाना उनकी जिम्मेदारी है। इसी सनक के चलते कुछ समय पहले एक अमेरिकी ईसाई मिशनरी आधुनिक सभ्यता से पूरी तरह कटे हुए अंडमान-निकोबार के आदिवासियों को ईसाइयत का पाठ पढ़ाने पहुंच गया था। इस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था, लेकिन कोई नहीं जानता कि ऐसे लोगों पर लगाम लगाने के ठोस उपाय क्यों नहीं किए गए? कम से कम अब तो कुछ किया जाना चाहिए।

इसमें संदेह नहीं कि मतांतरण में लिप्त संगठनों से सबसे अधिक त्रस्त हिंदू समाज है, क्योंकि वह न तो मतांतरण पर यकीन रखता है और न ही ऐसी किसी धारणा से ग्रस्त है कि अन्य उपासना पद्धतियों के अनुयायी गलत राह पर हैं। लोगों की गरीबी अथवा अन्य किसी मजबूरी का लाभ उठाकर या फिर प्रलोभन का सहारा लेकर उन्हें मतांतरित करने वालों ने देश के कई हिस्सों में आबादी के संतुलन को गड़बड़ा दिया है। इससे कई समस्याएं पनप रही हैं। आखिर क्या कारण है कि आम तौर पर गरीब लोग ही मतांतरण कर रहे हैं? चूंकि मतांतरण कराने वाले इस कोशिश में भी रहते हैं कि मतांतरित लोग अपनी उपासना पद्धति का परित्याग करने के साथ ही अपनी संस्कृति से भी दूर हो जाएं, इसलिए समस्याएं अधिक गंभीर रूप ले रही हैं।

पिछले कुछ समय से दलितों और आदिवासियों को गैर हिंदू बताने का जो अभियान छिड़ा है, उसके पीछे भी मतांतरण में लिप्त संगठनों की सोची-समझी साजिश ही नजर आती है। उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों को भी छल-कपट से होने वाले मतांतरण पर रोक लगाने के लिए सक्रिय होना चाहिए, क्योंकि ऐसे मतांतरण देश के मूल चरित्र को बदलने की मंशा से भी हो रहे हैं।