कोविड महामारी की दूसरी लहर कितनी घातक साबित हुई, इसका एक प्रमाण सैकड़ों बच्चों का अनाथ हो जाना भी है। राष्ट्रीय बाल आयोग के अनुसार इस भयंकर महामारी ने 17 सौ से अधिक बच्चों के सिर से मां-बाप का साया छीन लिया है। हो सकता है कि ऐसे बच्चों की संख्या और अधिक हो, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में इसका ठीक-ठीक रिकार्ड नहीं कि कितने बच्चे अनाथ हुए। उचित होगा कि ऐसे सभी बच्चों का पता लगाया जाए।

यह अच्छी बात है कि राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार भी अनाथ बच्चों की सुध ले रही है और इसी सिलसिले में गत दिवस यह घोषणा की गई कि महामारी में अनाथ हुए बच्चों के अभिभावक जिलाधिकारी होंगे, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है। अनाथ बच्चों के पालन-पोषण के लिए कोई सुव्यवस्थित एवं पारदर्शी तंत्र बनना चाहिए। यह तंत्र ऐसा होना चाहिए कि अनाथ बच्चों को र्आिथक सहायता मिलने के साथ ही भावनात्मक संबल भी मिले। उचित होगा कि सरकारों की ओर से ऐसी भी कोई पहल की जाए, जिससे अनाथ बच्चों के नाते-रिश्तेदार उनका पालन-पोषण करने के लिए खुशी-खुशी आगे आएं। इससे बच्चों को वह पारिवारिक माहौल मिलेगा, जो उनके स्वाभाविक विकास के लिए आवश्यक है।

सरकार के साथ समाज को भी संवेदनशीलता एवं दायित्व बोध जगाने की जरूरत है। यह सही समय है कि समाजसेवी संगठन अनाथ बच्चों की समुचित देखरेख के लिए आगे आएं। निश्चित रूप से सरकारों को ऐसी भी कोई व्यवस्था बनानी चाहिए, जिससे यह पता चल सके कि अनाथ बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी लेने वाले उनकी सही तरह देखभाल कर रहे हैं या नहीं? केवल ऐसे बच्चों की ही सुध नहीं लेनी चाहिए, जिनके माता-पिता गुजर गए हैं। इसके साथ-साथ उन बच्चों के भी पालन-पोषण की चिंता की जानी चाहिए, जिनके पिता महामारी की चपेट में आ गए और उनकी देखभाल के लिए मां है तो, लेकिन उसके पास आय का कोई जरिया शेष नहीं। ऐसे बच्चे आर्थिक अभाव का सामना न करने पाएं, यह देखना भी सरकारों की जिम्मेदारी है।

ध्यान रहे कि नौ हजार से अधिक बच्चे ऐसे हैं, जिनके माता-पिता में से किसी एक की मृत्यु हो चुकी है। इनमें से अनेक ऐसे हो सकते हैं, जिनके पिता की मृत्यु के साथ ही परिवार अपने एकमात्र कमाऊ सदस्य से वंचित हो गया हो। इसी तरह इसकी भी आशंका है कि कुछ बुजुर्ग ऐसे हों, जिनके बेटे या बहू अथवा दोनों ही कोरोना के शिकार हो गए हों। स्पष्ट है कि ऐसे बुजुर्गों को भी सहारा देने की जरूरत है। नि:संदेह सभी अनाथ असहाय लोगों की पहचान एवं गणना में उन्हें भी शामिल किया जाना चाहिए, जो महामारी की पहली लहर का शिकार बने।