पुलवामा में भीषण आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में सभी राजनीतिक दलों की ओर से जो एकजुटता दिखाई गई वह समय की मांग थी। यह अच्छा हुआ कि इस सर्वदलीय बैठक में आतंकवाद को नष्ट करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करने के साथ ही सीमा पार आतंकवाद की कड़े स्वर में निंदा भी की गई, लेकिन यह समझ नहीं आया कि पाकिस्तान का नाम लेने से क्यों बचा गया? आखिर जब पुलवामा हमले के बाद विदेश मंत्रालय की ओर से आधिकारिक रूप से यह कहा गया कि पाकिस्तान इस हमले के लिए जिम्मेदार आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद पर लगाम लगाए तब फिर सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान का जिक्र क्यों नहीं हो सका?

यह ठीक नहीं कि पुलवामा हमले के बाद जब अमेरिका तक साफ तौर पर कह रहा है कि पाकिस्तान अपने यहां के आतंकी संगठनों को सुरक्षित ठिकाना उपलब्ध कराने से बाज आए तब भारत के राजनीतिक दल ऐसा कोई प्रस्ताव पारित नहीं कर सके जिसमें पाकिस्तान का साफ-साफ नाम लिया गया होता। यह एक तर्क हो सकता है कि पाकिस्तान का नाम लेने या न लेने से कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि दुनिया जान रही है कि भारत का यही पड़ोसी देश है जो किस्म-किस्म के आतंकी संगठनों को पालने-पोसने का काम कर रहा है।

बावजूद इसके यह सवाल तो उठता ही है कि आखिर सर्वदलीय बैठक में पारित प्रस्ताव की भाषा यह क्यों नहीं कहती कि भारत को अपने जिस पड़ोसी देश की शत्रुतापूर्ण हरकतों से निपटने की जरूरत है वह पाकिस्तान है? हमारे राजनीतिक नेतृत्व को यह समझने की जरूरत है कि पुराने तौर-तरीकों से काम चलने वाला नहीं है। तौर-तरीकों के साथ हमारी भाषा भी बदलनी चाहिए, क्योंकि इससे ही मानसिकता बदलती है। क्या यह बेहतर नहीं होता कि सर्वदलीय बैठक में पारित प्रस्ताव में देश की संकल्पशक्ति की स्पष्ट झलक मिलती?

सर्वदलीय बैठक में जहां सरकार ने यह भरोसा दिलाया कि वह वह पुलवामा हमले का मुंहतोड़ जवाब देगी वहीं विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी यह कहा कि वे सरकार के साथ हैैं। यह महज औपचारिकता नहीं होनी चाहिए। इस समय राजनीतिक नेतृत्व को देश के साथ दुनिया को यह दिखाने और साफ-साफ बताने की जरूरत है कि संकट के समय वह पूरी तौर पर एकजुट है। दुनिया को यह भी संदेश जाना चाहिए कि इस बार भारत तब तक चैन से नहीं बैठेगा जब तक आतंकवाद को खाद-पानी दे रही ताकतों को सबक नहीं सिखाता। ऐसे प्रस्ताव जमीन पर भी उतरने चाहिए।

ध्यान रहे कि एक समय संसद ने यह प्रस्ताव पारित किया था कि पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय भू-भाग को वापस लिया जाएगा। सवाल यह है कि क्या कभी इस प्रस्ताव के अनुरूप कदम उठाए गए? यह अच्छा हुआ कि सर्वदलीय बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सांप्रदायिक सदभाव बनाए रखने की जरूरत जताई। यह भी समय की मांग है और इसकी पूर्ति हो, इसे देश के आम लोगों को सुनिश्चित करना चाहिए। वास्तव में आज जितनी जरूरत राजनीतिक एकजुटता की है उतनी ही सामाजिक एकजुटता की भी। यही एकजुटता हर चुनौती से लड़ने में सहायक बनेगी।