कर्नाटक सरकार के संकट के बीच गोवा में जिस तरह दस कांग्रेसी विधायक टूटकर भाजपा में शामिल हो गए वह कांग्रेस के लिए एक और बड़ा झटका है। ऐसे झटके कांग्रेस को कमजोर करने का ही काम कर रहे हैैं। 2017 में गोवा के विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी, लेकिन उसे बहुमत हासिल नहीं हो सका था। वह जब तक छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों से मिलकर बहुमत का प्रबंध करती तब तक भाजपा ने ऐसा कर लिया। कांग्रेस हाथ मलती रह गई। अब उसके 15 में से दस विधायक भाजपा में शामिल हो गए।

जाहिर है कि कांग्रेस को भाजपा से तमाम शिकायतें होंगी, लेकिन इस सवाल का जवाब तो उसे ही देना होगा कि आखिर उसके विधायक एकजुट क्यों नहीं रह सके? सवाल यह भी है कि क्या आम चुनाव नतीजों के बाद असमंजस से घिरे कांग्रेस नेतृत्व को इसकी परवाह है कि विभिन्न राज्यों में पार्टी में क्या हो रहा है? यह किसी से छिपा नहीं कि कई राज्यों में कांग्रेसी नेताओं के बीच उठापटक जारी है और कहीं-कहीं तो पार्टी नेताओं का आपसी झगड़ा बाहर भी आ गया है।

कर्नाटक में संकट के पीछे भी कांग्रेसी नेताओं की कलह को जिम्मेदार माना जा रहा है। इसमें दोराय नहीं कि भाजपा इस कलह का फायदा उठाने में लगी हुई है, लेकिन क्या किसी राजनीतिक दल को यह उम्मीद करनी चाहिए कि विरोधी दल उसकी कमजोरियों का फायदा न उठाए? आम धारणा है कि कर्नाटक में कांग्रेस और जद-एस के जो विधायक इस्तीफा देने में लगे हुए हैैं वे भाजपा की शह पर ऐसा कर रहे हैैं, लेकिन क्या अपने विधायकों को संतुष्ट रखना और उन्हें भाजपा के प्रभाव में न आने देना कांग्रेस और जद-एस के नेतृत्व की जिम्मेदारी नहीं?

इसमें संदेह है कि न्यायपालिका कर्नाटक के राजनीतिक संकट को सुलझा सकेगी, क्योंकि बागी विधायक इस्तीफा देने पर अडिग दिख रहे हैैं। यह हास्यास्पद है कि जब वे यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि उन्होंने किसी दबाव या लालच में इस्तीफा दिया है तब कांग्रेस और जद-एस नेता यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैैं कि उन्होंने किसी मजबूरी में इस्तीफा दिया है।

यह कहना कठिन है कि कांग्रेस और जद-एस विधायकों की बगावत के बाद भाजपा कर्नाटक में अपनी सरकार बनाने में सफल होगी या नहीं, लेकिन यह पहले दिन से स्पष्ट था कि जद-एस और कांग्रेस की साझा सरकार कुल मिलाकर मजबूरी की ही सरकार है। दोनों दलों के बीच न केवल खटपट जारी रही, बल्कि एक-दूसरे के खिलाफ शिकायतें भी सार्वजनिक होती रहीं।

कुमारस्वामी के नेतृत्व में यह साझा सरकार जैसे-तैसे ही चल रही थी। कांग्रेस और जद-एस के नेता चाहे जो दावा करें, लगता यही है कि कुमारस्वामी सरकार अल्पमत में आ चुकी है। जो कुछ गोवा में हुआ और कर्नाटक में हो रहा है उसे लेकर सोनिया, राहुल गांधी समेत अन्य कांग्रेसी नेताओं ने संसद में धरना देकर यह संदेश देने की कोशिश की कि इस सबके पीछे भाजपा का हाथ है, लेकिन वे यह समझें तो बेहतर कि ऐसे धरने गहरे संकट से घिरी कांग्रेस को मजबूती नहीं दे सकते।