जम्मू के खेल मैदानों में उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद राजनीतिक दलों व गैर सरकारी संगठनों द्वारा रैलियां आयोजित करना दुर्भाग्यपूर्ण है। नि:संदेह इससे खिलाड़ियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह सर्वविदित है कि जम्मू शहर में पहले से ही गिने-चुने पांच खेल मैदान हैं। इनकी देखरेख जम्मू कश्मीर खेल परिषद करती है। हर दिन इन मैदानों में खेलने के लिए सैकड़ों की संख्या में बच्चे व युवा आए होते हैं। विडंबना है कि राजनीतिक दल इन खेल मैदानों को भी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने से परहेज नहीं करते। कुछ वर्ष पूर्व एक जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय ने राज्य के सभी खेल मैदानों को सिर्फ खेल गतिविधियों के लिए ही इस्तेमाल करने के आदेश दिए थे। चिंता की बात है कि राजनीतिक दल इन आदेशों की धज्जियां उड़ाने में सबसे आगे हैं। बीते दो महीने में ही जम्मू के दशहरा मैदान में कांग्रेस, सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी रैलियां आयोजित कर चुकी हैं। रैलियों के कारण इस मैदान को पहले ही खिलाड़ियों के लिए बंद कर दिया जाता है। रैली के बाद मैदान पर गंदगी के कारण भी एक सप्ताह तक खेल गतिविधियां ठप रहती हैं। राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि युवा ही इस देश का भविष्य हैं। एक ओर केंद्र सरकार खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए आए दिन योजनाएं बनाने और खिलाड़ियों को राज्य, राष्ट्रीय, एशियन और ओलंपिक खेलों के लिए तैयार करने को कह रही है, वहीं बच्चों के साथ इस प्रकार का खिलवाड़ इन पर पानी फेरने का काम कर रहा है। राज्य सरकार के लिए इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है कि उच्च न्यायालय को विगत दिवस फिर से यह आदेश देने पड़े कि खेल मैदानों का इस्तेमाल सिर्फ खेल गतिविधियों के लिए किया जाए। सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं के दौरान ही ख्ेाल मैदानों का अन्य गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। राजनीतिक दलों को गंभीरता के साथ इन आदेशों की समीक्षा कर उनका पालन करना चाहिए। इससे खेल गतिविधियां भी बाधित नहीं होंगी, बच्चों को भी खेलों में भविष्य बनाने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा।

[स्थानीय संपादकीय- जम्मू-कश्मीर]