आम चुनावों के नतीजे आने के ठीक पहले इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम को लेकर एक बार फिर जो हल्ला-हंगामा मचाया जा रहा वह राजनीतिक शरारत का हिस्सा ही है, इसकी पुष्टि उन शिकायतों से होती है जो झूठी पाई गईं। चूंकि यह हल्ला-हंगामा एक्जिट पोल के आंकड़े सामने आने के बाद मचा इसलिए यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि विपक्ष अपनी संभावित हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने की पेशबंदी कर रहा है। क्या यह अजीब नहीं कि विपक्षी दल उन एक्जिट पोल के आंकड़ों से संशकित हो रहे हैैं जिनका ईवीएम से कोई लेना-देना ही नहीं? इस पर भी गौर करें कि वे एक्जिट पोल को खारिज भी कर रहे हैैं और ईवीएम से छेड़छाड़ की आशंका भी जता रहे हैैं।

यह पहली बार नहीं जब विपक्षी दलों की ओर से ईवीएम को संदिग्ध बताने का अभियान छेड़ा गया हो। बीते तीन-चार सालों से यही हो रहा है और इसके बावजूद हो रहा है कि इस दौरान इन्हीं दलों ने पंजाब, केरल के साथ-साथ मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल की है। इन राज्यों में चुनाव जीतने के पहले दिल्ली एवं बिहार के नतीजे भी ईवीएम से ही निकले थे और कई लोकसभा एवं विधानसभा सीटों के उपचुनावों के भी। विपक्षी दलों की ओर से ईवीएम पर संदेह जताने के साथ ही निर्वाचन आयोग पर जिस तरह हमले किए जा रहे हैैं वे भी उनकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा जान पड़ता है। ये वही दल हैैं जो संस्थाओं के क्षरण का भी रोना रो रहे हैैं। बेहतर हो कि वे यह देखें कि निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा से कौन खेल रहा है?

हैरत केवल इस पर नहीं कि विपक्षी दल ईवीएम को लेकर नित-नए संदेह खड़े कर रहे हैैं, बल्कि इस पर भी है कि वे मतपत्र से चुनाव कराने की मांग कर रहे हैैं। क्या वे यह नहीं जानते कि मतपत्र के जमाने में किस तरह धांधली होती थी? वे भूल गए हों तो कुछ समय पहले पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनावों की याद करें, जब मतपत्र लूटने के साथ मतपेटियों को तालाबों और कुओं में फेंक दिया गया था। यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मतदान बाद पर्चियों का सौ प्रतिशत मिलान ईवीएम से कराने की मांग की गई थी।

आखिर जब सुप्रीम कोर्ट विपक्षी दलों की 50 फीसद ईवीएम का मिलान मतदान बाद पर्चियों से कराने की मांग खारिज कर चुका था तब फिर फालतू की इस याचिका को क्यों सुना गया? ईवीएम पर बेवजह के शक और फालतू की याचिकाओं को महत्व देना ठीक नहीं, क्योंकि कुछ लोगों का लक्ष्य इन मशीनों पर सवाल उठाते रहना ही है। खेद की बात यह है कि ईवीएम के खिलाफ झूठी जानकारी के प्रसार में मीडिया का भी एक हिस्सा लिप्त दिखता है। निर्वाचन आयोग के लिए उचित यही है कि वह चुनाव प्रक्रिया को लेकर उठने वाले जायज सवालों का समाधान करने के साथ ही यह भी देखे कि इस प्रक्रिया को और सुगम एवं छोटा कैसे बनाया जाए, क्योंकि इतने बड़े देश में इतनी जटिल और लंबी चुनाव प्रक्रिया ठीक नहीं।

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