काले धन की अर्थव्यवस्था पर करारा प्रहार करने के लिए पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने के मोदी सरकार के फैसले से देश का हतप्रभ होना स्वाभाविक है। इस फैसले का अप्रत्याशित होना ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। काले धन के कारोबार का एक बड़ा जरिया बन गए इन नोटों को चलन से बाहर करने का इसके अतिरिक्त अन्य कोई माकूल उपाय भी नहीं था। मोदी सरकार ने बड़े नोटों को बाहर करने के कठिन सुझाव को अमल में लाकर दिखा दिया कि वह बड़े फैसले लेने में सक्षम है। इस फैसले के बाद जनता को थोड़ी-बहुत परेशानी होना स्वाभाविक है। आम लोगों को समस्याओं का सामना करना भी पड़ रहा है। चूंकि पैसे के लेन-देन से जुड़ी समस्याएं कुछ समय तक ही रहनी हैं इसलिए जनता को संयम का परिचय देना होगा। जब वह यह समझ रही है कि चंद दिनों की यह परेशानी कुल मिलाकर उसके अपने हित में है तब फिर जो कठिनाइयां आ रही हैं उनका सामना करते समय आपाधापी का परिचय नहीं दिया जाना चाहिए।

बड़े नोटों को चलन से बाहर करने के फैसले से उपजी समस्याओं के समाधान के मामले में जहां यह आवश्यक है कि जनता धैर्य धारण करे वहीं यह भी कि राज्य सरकारें भी सहयोग करें। उम्मीद है कि परेशानी का दौर तीन-चार सप्ताह में खत्म हो जाएगा, लेकिन यह बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि मोदी सरकार और उसकी एजेंसियां कैसे कार्य करती हैं? एक तरह से मोदी सरकार की कार्यक्षमता का प्रदर्शन होने जा रहा है। उसके पास इसके अलावा और कोई उपाय नहीं कि वह कसौटी पर खरा उतरे, क्योंकि यदि हालात जल्द सामान्य होते नहीं दिखे तो विरोधी नेताओं को बड़े बोल बोलने का अवसर मिलने के साथ ही अर्थव्यवस्था के समक्ष समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं। केंद्र सरकार को यह भी देखना होगा कि काले धन के कारोबार में लिप्त लोग किसी भी रियायत का लाभ उठाने में सक्षम न हों। इस फैसले का एक लक्ष्य जहां नकली नोटों के जरिये देश को क्षति पहुंचाने वाले तत्वों के दुष्चक्र को तोड़ना है वहीं दूसरी ओर काले धन के कारोबारियों पर नकेल कसना भी है। ये दोनों कार्य प्रभावी ढंग से होने चाहिए और हर स्तर पर ऐसे उपाय किए जाने चाहिए जिससे भविष्य में न तो काले धन के कारोबारी और न ही नकली नोट छापने वाले अपने काले कारनामे जारी रख सकें। ऐसा होने पर ही जनता का सहयोग भाव सार्थक साबित होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]