कभी ऐसा समय था जब इंटरव्यू के नाम से मेधावी विद्यार्थियों के भी पसीने छूट जाते। पीएचडी के वाइवा पहाड़ की चढ़ाई होते। महीनों पहले से तैयारी होने लगती और ये परीक्षाएं पास कर चुके लोगों की शरण ली जाती। वे बताते कैसे कमरे में प्रवेश करना है और भले ही अंदर से कांप रहे हो पर कैसे परीक्षक के सामने अपने को आत्मविश्वास से लबालब प्रदर्शित करना है। सवालों की तैयारी होती और कपड़ों का चुनाव होता। इंटरव्यू का दिन अपने लिए रहस्य और रोमांच का ऐसा अनोखा अवसर उपलब्ध कराता जिसका आनंद वही ले सकता है जिसने किसी भी भूमिका में इसे साक्षात अनुभव किया हो। यह स्थिति अब बदल गई है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने मंगलवार को पीसीएस परीक्षा में इंटरव्यू के नंबर दो सौ से घटाकर सौ करने का निर्णय क्या किया, हजारों विद्यार्थी खुश हो उठे और फैसले की चौतरफा सराहना होने लगी। कहा गया कि अब उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की मनमानी नहीं चलेगी और योग्यता का मापदंड लिखित परीक्षा पर अधिक केंद्रित होगा। केवल यह एक बात यह बताने के लिए काफी है कि थोड़ा अरसा पहले तक आयोग में भर्तियां किस तरह की जाती रही हैं। पुरानी व्यवस्था में अधिकतम 140 और न्यूनतम 80 अंक दिये जाते। इससे कम या अधिक देना हो तो आयोग से पूछने का नियम था। बस, इसी का लाभ उठाकर नंबर बांटे गए। लिखित परीक्षा में अच्छे नंबर लाने वाले कितने ही छात्र इंटरव्यू में कम अंक पाने के कारण परीक्षा पास नहीं कर सके। इससे उलट वे अभ्यर्थी उत्तीर्ण हो गए जिन्हें लिखित में तो कम नंबर मिले थे लेकिन, इंटरव्यू में जिन पर आयोग की कृपा बरस गई। अपने सुखद भविष्य के लिए बच्चे दिन रात झोंक देते हैं। उनके सपनों से उनके परिवार के सपने जुड़े होते हैं। इन बच्चों को धोखा देना मानवता को धोखा देना है। योगी सरकार ने बच्चों की यह पीड़ा समझी और इसीलिए पहले समूह ‘ग’ की सभी परीक्षाओं से इंटरव्यू खत्म किए और अब पीसीएस से। राज्य सरकार को उन लोगों पर भी कार्रवाई करनी चाहिए जिन्होंने आयोग का नाम खराब किया था।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]