राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए जिस आक्रामकता के साथ मुहिम छेड़ी है, उसे राज्यवासियों का व्यापक समर्थन मिलना तय है। इसके बावजूद कुछ परंपरावादी लोग, खासकर राजनीतिक हस्तियों को राज्यपाल की यह शैली खटक सकती है यद्यपि उन्होंने इसे भांपते हुए पहले ही स्पष्ट कर दिया कि उन्हें किसी का डर नहीं है तथा संविधान, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अलावा वह किसी को जानते-मानते भी नहीं। राज्यपाल ने बीएड कॉलेजों के जरिए लूट-खसोट के लिए राजनेताओं पर अंगुली उठाई है। बेशक अपवादों को छोड़कर किसी भी दल के नेताओं को उनकी आक्रामकता पसंद नहीं आई होगी लेकिन राज्यपाल ने आम आदमी के मन की बात उठाई है। बीएड कॉलेजों में फीस के नाम पर लूट का कारोबार खुलेआम होता है। इसका विरोध इसीलिए नहीं होता क्योंकि इस कारोबार में नेताओं का वर्चस्व है। उनके खिलाफ मुंह खोलने की कोई जुर्रत नहीं करता। खुद राज्यपाल ने स्वीकार किया कि यह बेहद सशक्त लॉबी है।

सत्यपाल मलिक ने राज्यपाल का पद संभालने के बाद तुरंत उच्च शिक्षा में सुधार लाने की मुहिम छेड़ दी थी। वह कुलपतियों के साथ कई दौर मीटिंगें कर चुके हैं। उनकी पहल पर ही विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव भी हुए। जाहिर है कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के माहौल में सकारात्मकता आने लगी है यद्यपि प्रभावकारी सुधार की मंजिल अभी बहुत दूर है। इसके लिए राज्यपाल को केंद्र और राज्य सरकार तथा आम लोगों के सहयोग की जरूरत पड़ेगी। सुधार की राह में सबसे बड़ी बाधा कुलपतियों की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप है। यदि इसे खत्म या कम किया जा सके तो सुधारों की गति में तेजी आएगी। बिहार के लिए शुभ संकेत है कि राजभवन की कमान ऐसी शख्सियत के पास है जिन्हें सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में काम करने का बेहतरीन अनुभव है। इससे भी बड़ी बात यह कि वह रबर स्टैम्प राज्यपाल के बजाय अपनी सक्रियता से सूबे के विकास में सीधा योगदान कर रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्यपाल के अभियान को सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त होगा।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]