जम्मू कश्मीर में वन माफिया किस तरह सक्रिय हैं, इसकी बानगी विगत दिवस संभाग के कठुआ, सांबा व जम्मू जिले में देखने को मिली। वन विभाग व पुलिस ने पिछले दो दिन के भीतर पांच कत्था फैक्टरियों में छापेमारी कर वहां से सैकड़ों ट्रक खैर की लकड़ी बरामद की है। ये वह लकड़ी है जिसे वन माफिया ने जंगलों से काट कर फैक्टरियों में पहुंचा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया। वन भूमि पर लगे खैर के पेड़ों की कटाई पर राज्य में पूरी तरह से प्रतिबंध है लेकिन बावजूद इसके इतनी बड़ी तादाद में खैर की लकड़ी का कत्था फैक्टरियों से मिलना वन विभाग की सतर्कता पर भी सवाल खड़े करता है? राज्य में वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, जिससे राज्य की लाखों हेक्टेयर वन भूमि माफिया के कब्जे में जा ही रही है। वनों की कटाई से पर्यावरण संतुलन भी खराब हो रहा है। इसी का नतीजा है कि अब अप्रैल माह में राज्य में बेमौसमी बरसात और बर्फबारी हुई। वन लोगों के लिए ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। अगर यह वन इस तरह कटते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब पर्यावरण असंतुलन जैसी समस्याएं पैदा होनी शुरू हो जाएंगी।

वन माफिया को पुलिस और राजनेताओं का भी संरक्षण प्राप्त है जिस कारण वह जंगलों को काट कर लकड़ी को आराम से फैक्टरियों तक पहुंचा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वनों की हदबंदी करे और वन माफिया के खिलाफ अभियान चलाए। यह अच्छी बात है कि वन विभाग ने कत्था फैक्टरियों में छापेमारी कर वन तस्करों व फैक्टरी संचालकों के बीच साठगांठ का पर्दाफाश किया। यह बात भी किसी से नहीं छुपी कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के दौर में वनों की कटाई और कब्जा सबसे अधिक हुआ है। राज्य सरकार को चाहिए कि वनों को बचाने के लिए कठोर कदम उठाए। सरकार अगर वनों को बचाने में गंभीर है तो अपने इस अभियान को किसी के दबाव में आकर बंद न करे। जिस तरह से कत्था फैक्टरियों पर दो दिनों के भीतर छापेमारी कर वहां से सैकड़ों ट्रक खैर की लकड़ी बरामद की है। उसी तरह हुए वन तस्करों व उनके साथ साठगांठ रखने वालों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई करे।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]