पटना में एक युवक द्वारा अपनी परिचित लड़की पर तेजाब फेंके जाने की घटना विचलित करने वाली है। गनीमत है कि तेजाब लड़की के चेहरे पर नहीं गिरा। इसके बावजूद इस घटना का प्रभाव लंबे समय तक लड़की और उसके परिवारजनों को बेचैन करता रहेगा। प्रशासन की जिम्मेदारी है कि न सिर्फ पीड़ित लड़की का सर्वोत्तम इलाज करवाए बल्कि उसकी और उसके परिवारजनों की काउंसलिंग भी करवाए ताकि वे लोग जल्द इस घटना के अवसाद से बाहर निकल सकें। यूं तो लड़कियों के प्रति कोई र्भी हिंसा या अत्याचार घृणित आपराधिक कृत्य है किन्तु लड़की का चेहरा तेजाब से जलाकर विकृत कर देने की सोच पूरी तरह अमानवीय एवं जंगली है। यह असंभव नहीं कि व्यक्तिगत रिश्ते या किसी अन्य संदर्भ में लड़की दोषी हो, पर परिवार, समाज और कानून का भरोसा छोड़कर इतने क्रूर ढंग से प्रतिशोध की साजिश रचना सिर्फ विकृत मानसिकता हो सकती है। जिन व्यक्तियों के चेहरे तेजाब से झुलसकर विकृत हो जाते हैं उनका जीवन नारकीय हो जाता है।

ऐसे दुर्लभ उदाहरण हैं जब तेजाब से विकृत हो चुके अपने चेहरे से ध्यान हटाकर कोई लड़की अपनी इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास के बल पर जिंदगी में वापस लौटी। तेजाब हमले की प्रत्येक घटना प्रशासन की लचर कार्यशैली का सुबूत पेश करती है। तेजाब की बिक्री प्रतिबंधित है, इसके बावजूद यह कैसे उपलब्ध हो जाता है? कटु सत्य यही है कि अधिकतर दुकानों पर बाकी घरेलू सामान की तरह तेजाब भी आसानी से बिक रहा है। अपराधी इस सुविधा का लाभ उठाते हैं। प्रशासन को अभियान चलाकर तेजाब की बिक्री पूरी तरह बंद करवानी चाहिए। तेजाब उपलब्ध नहीं होगा तो ऐसी घटनाओं में स्वत: कमी आने लगेगी। इसके अलावा तेजाब हमले से संबंधित कानून की समीक्षा की जानी चाहिए और यदि इसमें किसी भी स्तर पर कोई ‘सूराख’ है तो उसे अविलंब बंद किया जाना चाहिए। इस कानून को इस तरह कठोर एवं धारदार बनाने की जरूरत है कि अपराधियों के दिल में इसका खौफ रहे। तेजाब हमलों के मामलों में आरोपितों के खिलाफ प्रभावशाली ढंग से पैरवी की जानी चाहिए ताकि आरोपितों को कठोरतम एवं अधिकतम सजा दिलाई जा सके।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]