राज्य के सरकारी विभागों में वर्क कल्चर के अभाव से लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलना गंभीर चिंता का विषय है। इसकी बानगी विगत दिवस जम्मू संभाग के साथ लगते चौकी चोरी, राजौरी के सुंदरबनी और कालाकोट स्थित चिकित्सा केंद्रों में देखने को मिली, जहां अधिकतर डॉक्टर और मेडिकल ऑफिसर अपनी ड्यूटी से गैरहाजिर थे। यह अच्छी बात है कि स्वास्थ्य मंत्री ने कार्रवाई करते हुए दो मेडिकल आफिसरों एक एक असिस्टेंट डेंटल सर्जन और 19 अन्य नर्सिग स्टाफ के सदस्यों को निलंबित कर दिया। इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। लोग अक्सर इसकी शिकायतें उच्चाधिकारियों से करते हैं, लेकिन बावजूद इसके अनुशासन की कमी देखने को मिल रही है। ड्यूटी से कोताही का यह पहला मामला नहीं है, इससे पहले स्वास्थ्य मंत्री ने गत वर्ष जम्मू और उसके आसपास के करीब सात अर्बन हेल्थ सेंटरों में छापे मार कर सोलह डॉक्टरों को गैरहाजिर पाए जाने पर उन्हें निलंबित कर दिया था। चीफ मेडिकल आफिसर को डायरेक्टर हेल्थ आफिस में अटैच कर दिया। सरकारी कार्यालयों में गैरहाजिर रहना एक प्रथा बनती जा रही है।

अगर हेल्थ सेंटरों में ताला जड़ा रहेगा तो निसंदेह लोग शहर के अस्पतालों में आएंगे। पहले से ही जम्मू राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भीड़ रहती है, जिससे कई बार डॉक्टर भी मरीजों के साथ पूरा न्याय नहीं कर पाते। इन हेल्थ सेंटरों में मरीजों को इलाज मिल जाए तो शहरों के अस्पतालों में भीड़ को कम किया जा सकता है। वहीं कई सरकारी स्कूल और विभाग ऐसे हैं, जहां अधिकारी केवल हाजिरी लगाने में विश्वास रखते हैं। आरएसपुरा, विजयपुर और सांबा के कई स्कूलों में भी गत वर्ष शिक्षक गैर हाजिर पाए गए थे। अगर शिक्षकों और डॉक्टरों का डयूटी के प्रति यह रवैया रहेगा तो निसंदेह यह लोग अपने पेशे से न्याय नहीं कर रहे। चिकित्सा केंद्र, और स्कूल सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य और बच्चों की शिक्षा से जुड़े होते हैं। इस पर डॉक्टरों को स्वयं भी सोचने की जरूरत है। यह सही है कि सभी डॉक्टरों को एक ही तराजू में नहीं तोला जा सकता, लेकिन यह भी सही है कि ऐसे अनुशासनहीन डॉक्टरों के कारण पूरे विभाग की छवि धूमिल होती है। सरकार को चाहिए कि वे गैरहाजिर रहने वाले डॉक्टरों के खिलाफ

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]