गणतंत्र दिवस की परेड में सिख रेजीमेंट की गैर मौजूदगी से मन में निश्चित रूप से एक सवाल जरूर खड़ा होता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। सिख रेजीमेंट की बहादुरी की कहानियां इतिहास के पन्नों में भरी पड़ी हैं। यह देश ही नहीं विदेश में भी अपनी शक्ति और सूझ-बूझ का लोहा मनवा चुकी है और आज भी यह भारतीय सेना का महत्वपूर्ण अंग है। इस रेजीमेंट की बहादुरी पर पूरा देश गर्व करता है। इसके गौरवशाली इतिहास को देखते हुए इसे परेड में जगह न मिलने पर पंजाब के लोग खासतौर पर निराश और दुखी हैं। कदाचित यही दुख और निराशा मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में व्यक्त भी किया है। उन्होंने न सिर्फ सिख रेजीमेंट को परेड में शामिल न करने पर दुख व्यक्त किया है अपितु भविष्य में इस रेजीमेंट का परेड में शामिल होना सुनिश्चित करने की अपील भी की है। यही नहीं प्रदेश कांग्रेस प्रधान कैप्टन अमङ्क्षरदर सिंह ने भी इसे बड़ी गलती करार दिया है। देखा जाए तो मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में जो सवाल उठाए हैं वे कहीं न कहीं सही भी हैं। मुख्यमंत्री का कहना है कि फ्रांस में सिखों को अपने धर्म से जुड़ी निशानियों को लेकर खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहां उन्हें पांच धार्मिक चिन्हों में से एक पगड़ी बांधने की भी आजादी नहीं है। चूंकि इस बार फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि थे तो उनके सामने सिखों की भारतीय समृद्ध सांस्कृतिक पहचान और आजादी के संघर्ष में इनके योगदान को दर्शाने का उचित अवसर था। इसलिए सिख रेजीमेंट को परेड में शामिल करना ही चाहिए था। निश्चित रूप से केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री की चिंता का निवारण करना चाहिए और इसके पक्ष में तार्किक उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट किया जाना चाहिए, ताकि किसी प्रकार का भ्रम व संदेह न रहे। साथ ही सभी को इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि इसे लेकर किसी प्रकार की सियासत न हो। यदि ऐसा होता है तो इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।

[स्थानीय संपादकीय: पंजाब]