खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) के दावों की लगातार खुलती पोल के बीच खूंटी के उपायुक्त रहे डॉ. मनीष रंजन की गांव-गांव शौचालय बनवाने की पहल सराहनीय कही जा सकती है। कुछ दिनों पहले कोडरमा जिले के जयनगर प्रखंड में खुले में शौच गई एक नाबालिग बच्ची को कुत्तों ने काट खाया जिससे उसकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। सरकार भले ही खुले में शौच से मुक्त होने का लाख दावा कर ले लेकिन हकीकत यह है कि आज भी कई ग्रामीण इलाके ऐसे हैं जहां लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। खूंटी जिले के 211 गांवों में भी शौचालय का निर्माण नहीं कराया जा सका था। यहां अफसर शौचालय बनवाने के लिए जाते भी थे तो ग्रामीण तैयार नहीं होने देते थे। कारण यह था कि गांव के ही कुछ लोगों ने ग्रामीणों को बरगला दिया था कि सरकार यदि शौचालय बनवाएगी तो बाद में टैक्स भी वसूलेगी। बड़ी बात यह थी कि जिले की बड़ी आबादी मुंडारी भाषा ही जानती और समझती है, वह अफसरों की हंिदूी या अंग्रेजी नहीं समझती। अफसर भी ग्रामीणों की बात नहीं समझ पाते थे।

यह बात जब वहां हाल तक डीसी रहे मनीष रंजन तक पहुंची तो उन्होंने सबसे पहले खुद पहल की और मुंडारी भाषा सीखी। इसके बाद उन्होंने गांव-गांव जाकर शौचालय निर्माण के फायदे से लोगों को अवगत कराया। नतीजा यह हुआ कि 211 में से 206 गांवों के ग्रामीण शौचालय बनवाने को तैयार हो गए। फिर क्या था तेजी से इन गांवों में शौचालय का निर्माण कराया गया।

प्रधानमंत्री के स्वच्छता मिशन के प्रति यह खूंटी डीसी की दृढ़ इच्छाशक्ति को परिलक्षित करता है। यह राज्यभर के सभी उपायुक्तों के लिए एक संदेश भी है कि यदि प्रशासन चाह ले तो सरकार की किसी भी योजना को आसानी से धरातल पर उतार सकता है। जरूरत है मजबूत इच्छाशक्ति की। सरकार को चाहिए कि जहां भी शौचालय निर्माण में शिथिलता बरती जा रही है वहां के अधिकारियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे। इसके साथ ही सरकार को मॉनीटरिंग तंत्र को और अधिक दुरुस्त करना होगा। वैसे पंचायत प्रतिनिधियों को चिह्न्ति करना होगा जो इस महत्वाकांक्षी योजना में उदासीनता बरत रहे हैं। इससे अन्य पंचायत प्रतिनिधियों में यह संदेश जाएगा और वे शौचालय निर्माण के प्रति संवेदनशील होंगे।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]