नई दिल्ली में जागरण फोरम के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास की जिस नई पंचधारा का उल्लेख किया उसे यदि आने वाले समय और अधिक वेग से प्रवाहित किया जा सके तो देश का सच में कायाकल्प हो सकता है। ऐसा किया जाना संभव है, इसका संकेत मोदी सरकार की उन अनेक उपलब्धियों से मिलता है, जिनका जिक्र प्रधानमंत्री ने किया। प्रधानमंत्री ने बीते 67 सालों में विभिन्न सरकारों और अपने चार वर्षों के कार्यकाल की उपलब्धियों का जिस तरह जिक्र किया उससे न केवल विकास की गति और उसकी व्यापकता का अंतर पता चलता है, बल्कि खुद उनकी ओर से रेखांकित यह सवाल भी उभरता है कि आखिर जैसे उल्लेखनीय काम चंद वर्षों में हुए वैसे पहले क्यों नहीं हो सके? इस सवाल के जरिये प्रधानमंत्री ने एक तरह से 67 साल बनाम चार साल को एक नारे की शक्ल दी है। यह समय ही बताएगा कि ऐसा कोई नारा कितना प्रभावी साबित होता है, लेकिन आज की जरूरत जितना इस पर चिंतन करने की है कि हम इतने पीछे क्यों रह गए उससे कहीं अधिक इस पर विचार करने की कि हम और तेजी से आगे कैसे बढ़ें? ऐसा करके ही उन देशों से बराबरी की जा सकती है जो हमसे आगे निकल गए। बेहतर हो कि देश को आगे ले जाने के मामले में कुछ प्रमुख मसलों पर राजनीतिक आम सहमति बने। दुर्भाग्य से इस चुनावी वर्ष में ऐसा कुछ होने के आसार कम ही हैं।

इसमें दोराय नहीं कि मोदी सरकार की जनकल्याण और विकास संबंधी विभिन्न योजनाओं और खासकर रसोई गैस, बैंक, बिजली आपूर्ति, डिजिटलीकरण, सड़क एवं आवास निर्माण संबंधी विभिन्न योजनाओं ने जमीन पर असर दिखाने के साथ ही करोड़ों लोगों के जीवन में बदलाव लाने का काम किया है, लेकिन अभी बदलाव का सिलसिला कायम रखने और उसे गति देने की भी जरूरत है। ऐसी ही जरूरत पढ़ाई, कमाई, दवाई, सिंचाई और सुनवाई के मामले में भी है। आखिर यह एक तथ्य है कि पढ़ाई यानी शिक्षा में सुधार की आवश्यकता अभी भी बनी हुई है। इसी तरह देश के स्वास्थ्य ढांचे को बेहतर बनाने का काम भी शेष है। यह ठीक है कि आयुष्मान भारत योजना बेहतर नतीजे देने और निर्धन तबके को एक बड़ी राहत देने वाली साबित हो रही है, लेकिन यह और प्रभावी हो सकती है। ऐसा तभी होगा जब ग्रामीण भारत का स्वास्थ्य तंत्र भी दुरुस्त होगा। यह सही है कि कमाई यानी रोजगार का सवाल सरकार की प्राथमिकता में है, लेकिन बात तब बनेगी जब अनुकूल नतीजे हासिल होते हुए भी दिखेंगे। कुछ ऐसी ही स्थिति सिंचाई यानी किसानों की हालत में सुधार लाने के मामले में भी है। इससे इन्कार नहीं कि बीते चार सालों में मोदी सरकार ने किसानों की हालत सुधारने के लिए तमाम प्रयास किए हैं, लेकिन उनका अपर्याप्त साबित होना चिंता का विषय है। अच्छा हो कि खेती के साथ किसानों की हालत सुधारने के लिए कुछ और उपायों पर विचार हो। प्रधानमंत्री ने विकास की पंचधारा में सुनवाई यानी शिकायतों के समाधान को भी शामिल किया। यह शायद वह मसला है जिस पर सबसे अधिक ध्यान देने की जरूरत है।