कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से जूझ रहे भारत की ओर अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब समेत करीब 40 देशों ने मदद का जो हाथ बढ़ाया, वह संकट की गंभीरता को बयान करने के साथ ही विश्व समुदाय की चिंता को भी प्रकट कर रहा है। इस मदद से यह भी रेखांकित होता है कि विश्व समुदाय इसी कोरोना काल में भारत की उस सहायता को भूला नहीं है, जो उसने दुनिया के तमाम देशों को दी थी-पहले कुछ दवाओं की आपूर्ति करके और फिर वैक्सीन भेजकर। भारत ने 90 से अधिक देशों को वैक्सीन भेजी। इनमें से कुछ देशों को तो मुफ्त अथवा रियायती दरों पर दी। इसके अलावा भी भारत समय-समय पर संकट में फंसे देशों की मदद करता रहा है। एक तरह से अब जो मदद मिल रही है, उसके पीछे भारत की साख भी काम कर रही है। इस सबके अतिरिक्त दुनिया के बड़े देश यह भी जान रहे हैं कि भारत विश्व अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यदि वह संकट में फंसा रहा तो इससे उनके आर्थिक हितों को भी चोट पहुंचेगी। भारत एक अर्से से विश्व अर्थव्यवस्था को बल देने में न केवल महती योगदान दे रहा है, बल्कि तमाम मुश्किलों के बाद भी इस संभावना से लैस है कि उसकी अर्थव्यवस्था सबसे तेजी से बढ़ेगी। संक्रमण की दूसरी लहर के बीच ही एशियाई विकास बैंक ने यह कहा है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है।

यह सही है कि भारत को लंबे समय बाद विदेश से सहायता न लेने की अपनी नीति बदलनी पड़ी है, लेकिन हालात के हिसाब से फैसले लेना ही नीतिसंगत होता है। अब जब विदेश से चिकित्सा उपकरणों और दवाओं के रूप में मदद मिलनी शुरू हो गई है तब फिर यह देखा जाना चाहिए कि वह समय रहते प्रभावित क्षेत्रों और लोगों तक सही तरह पहुंचे। इसके लिए उपयुक्त तंत्र बनाकर उसकी निगरानी भी की जानी चाहिए। चूंकि एक मई से 18 से 44 साल के आयु वर्ग के लोगों का टीकाकरण भी शुरू हो रहा है, इसलिए भारत की प्राथमिकता विदेश से ज्यादा से ज्यादा टीके हासिल करनी की भी होनी चाहिए, क्योंकि कम समय में अधिक से अधिक लोगों का टीकाकरण करके ही मौजूदा संकट से उबरने के साथ ही संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका को भी कम किया जा सकता है। यह समय टीकाकरण अभियान की हर बाधा को दूर करने और साथ ही यह समझने का भी है कि जब सरकार और समाज एकजुट होंगे, तभी संकट से आसानी से पार पाया जा सकेगा।