[सतीश सिंह]। आखिरकार जेट एयरवेज के अध्यक्ष नरेश गोयल और उनकी पत्नी अनीता गोयल ने बोर्ड की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जेट एयरवेज के कर्जदाताओं ने जेट के बोर्ड और प्रबंधन को अपने नियंत्रण में ले लिया। भारतीय स्टेट बैंक की अगुआई में बैंकों के समूह जेट में 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी हासिल करने के लिए 1,500 करोड़ रुपये तत्काल डालने पर सहमत हो गए हैं। इसके लिए 11.4 करोड़ नए शेयर जारी किए जाएंगे। जेट एयरवेज पर 26 बैंकों का लगभग आठ हजार करोड़ रुपये कर्ज बकाया है। बड़ी संख्या में जेट के विमान परिचालन से बाहर हो चुके हैं, जिसका असर देश के कई हवाई अड्डों पर देखा जा रहा है। बहरहाल गोयल के इस्तीफे के बाद बीएसई में जेट के शेयर में उछाल आया है। सरकारी विमान सेवा एयर इंडिया की स्थिति भी खस्ताहाल है। पूर्व में एयर सहारा, किंग फिशर, ईस्ट-वेस्ट एयरलाइन, स्काइलाइन एनईपीसी, मोदीलुफ्त आदि एयरलाइंस बंद हो चुके हैं। बंद होने के समय एयर सहारा की बाजार में 17 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या चमकदमक वाले विमानन क्षेत्र की हालात उतनी अच्छी नहीं है, जितनी बाहर से दिखती है।

कौन होगा खरीदार

जेट एयरवेज का घाटा बढ़ कर 13 अरब रुपये से भी अधिक हो गया है और इसे मार्च 2021 तक 63 अरब रुपये का कर्ज चुकाना है। हालांकि इसकी माली दशा विगत 11 वर्षों से अच्छी नहीं है। अब तक जेट एयरवेज के शेयरों की कीमत 71 प्रतिशत गिर चुकी है। ऐसे में इसके बेचे जाने की बात कही जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक मुकेश अंबानी या टाटा संस जेट एयरवेज को खरीद सकते हैं। जेट एयरवेज में नरेश गोयल की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत है। वर्ष 2013 में गोयल ने अपनी 24 प्रतिशत की हिस्सेदारी एतिहाद एयरवेज को बेच दी थी। टाटा संस की पहले से दो एयरलाइंस विस्तारा और एयर एशिया इंडिया में हिस्सेदारी है। विस्तारा में इसकी 41 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। विस्तारा, टाटा और सिंगापुर एयरलाइंस का ज्वाइंट वेंचर है। लोकसभा चुनाव नजदीक होने के कारण सरकार चाहती है कि देश की ही कोई कंपनी जेट को खरीदे, ताकि सरकार की नीतियां स्वदेशी कंपनियों को तरजीह देने वाली लगे।

जेट एयरवेज के पतन के कारण

बढ़ते घाटे के कारण जेट अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा रहा है। जेट का जेटलाइट में विलय नहीं होने से भी इसकी वित्तीय स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के कारण आयकर विभाग द्वारा कंपनी के मुंबई और दिल्ली स्थित दफ्तरों पर छापे डालने से भी इसकी साख को धक्का लगा। जेट एयरवेज इंडिगो की तुलना में ईंधन की लागत को छोड़कर अन्य खर्चों पर प्रति किमी एक रुपये ज्यादा खर्च कर रही थी जिससे वर्ष 2015 के अंत में जेट को इंडिगो की तुलना में हर सीट पर प्रति किमी 50 पैसे ज्यादा कमाई हो रही थी। जेट को पीछे छोड़ने के लिए इंडिगो ने टिकट सस्ता किया, जिसका नुकसान भी उसे हुआ। उसे सबसे ज्यादा नुकसान 2017 में हुआ जब ईंधन की कीमतें बढ़ने लगीं। पहले से कर्ज में डूबे होने के कारण उसकी स्थिति और भी ज्यादा खराब हो गई।

भले ही कर्जदाताओं के समूह ने जेट के प्रबंधन को अपने हाथ में ले लिया है, लेकिन खरीदार ढूंढना आसान नहीं होगा। दरअसल बैंकों को विमानन क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं है। एतिहाद एयरवेज ने भारतीय स्टेट बैंक को एक पत्र लिख कर कहा है कि वह जेट में 150 रुपये प्रति शेयर पर निवेश करने को तैयार है, जबकि शेयर का मौजूदा भाव 275 रुपये के करीब है। इस तरह की समस्याओं का सामना करने में कर्जदाता बैंकों को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

सरकार चाहती है सुधार

कहा जा रहा है कि राजनीतिक मजबूरियों की वजह से सरकार जेट को बचाना चाहती है। सरकार की पहली चिंता है इस धारणा को बरकरार रखना कि अर्थव्यवस्था बेहतर हालात में है। मोदी सरकार 2019 के आम चुनाव से पहले देश में अर्थव्यवस्था के हर सूचकांक एवं मानक के बेहतर होने का संदेश देना चाहती है। कुछ सालों से मोदी सरकार देश में वायु संपर्क सेवा को लेकर लगातार अपनी उपलब्धियों का गुणगान करती रही है। सरकार यह भी दावा करती रही है कि हवाई चप्पल पहनने वाला आम आदमी भी हवाई यात्रा कर सकता है। नए हवाई अड्डों और उड़ान सेवाओं को मोदी सरकार ने विकास के रूप में प्रचारित किया है। इसके लिए खास तौर से ‘उड़ान’ नाम से एक योजना भी शुरू की गई है। ऐसे में जेट एयरवेज जैसी विमानन क्षेत्र की बड़ी एवं नामचीन कंपनी के डूबने से मोदी सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े किए जाएंगे।

ठीक हो सकती है माली दशा

जेट के प्रदर्शन में सुधार लाने के लिए परिचालन को चाक-चौबंद, सभी तकनीकी कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रशिक्षित एवं जागरूक करने की जरूरत है, क्योंकि समय पर परिचालन के लिए कर्मचारियों की अहम भूमिका होती है। विमानों के बुद्धिमतापूर्ण इस्तेमाल से कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है, जैसे जिस मार्ग पर यात्रियों का आवागमन अधिक है वहां अधिक विमानों का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा वैसे विमानों का ज्यादा उपयोग किए जाने की जरूरत है जिसमें कम ईंधन की खपत होती है। यात्री किराया कम करना भी एक अच्छा विकल्प है। किराया कम करने की भरपाई विमानों के अधिक फेरे लगा कर की जा सकती है। प्रतिबद्ध तथा गुणवत्ता पूर्ण सेवा के द्वारा भी इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

एयर इंडिया भी घाटे में

एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय के वक्त यह 100 करोड़ रुपये के लाभ में था, लेकिन अनियमितता, कुप्रबंधन और अंदरूनी गड़बड़ियों के कारण एयर इंडिया आज खस्ताहाल स्थिति में है। अदालत में दायर एक जनहित याचिका के मुताबिक वर्ष 2004 से वर्ष 2008 के दौरान विदेशी विनिर्माताओं को फायदा पहुंचाने के लिए 67,000 करोड़ रुपये में 111 विमान खरीदे गए। करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करके विमानों को पट्टे पर लिया गया एवं निजी विमानन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए फायदे वाले हवाई मार्गों पर एयर इंडिया के उड़ानों को जानबूझकर बंद किया गया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी अपनी रिपोर्ट में इन तथ्यों की पुष्टि की है।

सुरक्षा में हो रही चूक

बीते दिनों मुंबई से जयपुर जा रही जेट एयरवेज की उड़ान में पायलट की भूल की वजह से कई यात्रियों के नाक और कान से खून निकलने लगे। ऐसा केबिन में वायु दाब बनाए रखने वाले बटन को नहीं दबाने के कारण हुआ। इस घटना में 31 यात्री घायल हुए। इसके कुछ ही दिनों बाद 30 सितंबर को हैदराबाद से चंडीगढ़ के लिए उड़ान भरने के बाद जेट एयरवेज की एक फ्लाइट का इंजन फेल होने के कारण उसे इंदौर में आपात लैंडिंग करना पड़ा। फिलहाल जेट एयरवेज के पायलटों को विगत पांच महीनों से वेतन नहीं मिल रहा है। ऐसी स्थिति यात्रियों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से खतरनाक है, क्योंकि मानसिक दबाव की स्थिति में चूक की संभावना बढ़ जाती है। जेट एयरवेज की फ्लाइट में हुए हालिया दुर्घटनाओं से सवाल का उठना लाजिमी है कि भारत में हवाई यात्रा कितनी सुरक्षित है? जेट एयरवेज में हुई पहली दुर्घटना के बाद नागरिक विमानन मंत्रालय ने सभी विमानन कंपनियों के ऑडिट का निर्देश जारी किया, लेकिन क्या ऐसी कवायद से मानवीय भूलों का निराकरण किया जा सकता है?

कहा जा सकता है विमानन क्षेत्र की चकाचौंध की दुनिया जितनी बाहर से चमकीली दिखती है, दरअसल अंदर से उतनी चमकीली है नहीं। जेट एयरवेज का घाटे में आना कुछकुछ इसी सच को दर्शाता है। पड़ताल से यह भी साफ है कि विमानन क्षेत्र में एयरलाइंस की लागत ज्यादा है, लेकिन राजस्व कम। गलाकाट प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के चक्कर में उनकी वित्तीय स्थिति और भी खराब हो जाती है। व्यस्त रूट में एयरलाइंस कितनी उड़ान भर रहा है, इस बात पर भी उनका वित्तीय प्रदर्शन निर्भर करता है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि इसे आम आदमी की परिवहन सेवा बनाने में अभी भी अनेक मुश्किलें है।
[आर्थिक मामलों के जानकार]