[ तसलीमा नसरीन ]: तकरीबन 25 साल पहले मुझे मेरे मुल्क बांग्लादेश से मेरी ही सरकार ने बाहर कर दिया था। क्या मैंने चोरी, डकैती, कत्ल, दुष्कर्म या कोई अपराध किया था? नहीं। मैंने सिर्फ किताबें लिखीं। उन किताबों में लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, मानवता, मानवाधिकार और नारी के समान अधिकारी होने की बातें लिखी थीं। हर तरह की विषमताओं, अन्याय और अत्याचार मुक्त, समता युक्त समाज का सपना देखा था। 25 साल में कई बार मेरे देश में सरकारें बदलीं, लेकिन किसी भी सरकार ने मुझे मेरे वतन लौटने नहीं दिया। क्यों लौटने नहीं दिया, मुझे इसका कोई अंदाजा नहीं?

पश्चिम बंगाल को ही बना लिया अपना घर

इस 25 साल के निर्वासन का एक युग यूरोप और अमेरिका में बीता, लेकिन देश लौटने की उत्कंठा तीव्र थी इसलिए अपने देश के दरवाजे बंद होने के बावजूद बंगभूमि के रंग-रूप, गंध एवं स्वाद की तलाश में भारत के पश्चिम बंगाल आना-जाना शुरू किया। बांग्ला भाषा एवं बांग्ला संस्कृति के परिवेश को बांग्लादेश से बाहर फिर से जीने के लिए पश्चिम बंगाल को ही अपना घर बना लिया।

भारत सरकार से मिला रेजिडेंशियल परमिट

टूरिस्ट वीजा पर तो रहना संभव नहीं था इसलिए कुछ दिन स्थायी रूप से रहने के लिए भारत सरकार से रेजिडेंट परमिट मिल गया। इसकी मियाद खत्म होने पर इसे बढ़ा दिया जाता है। भारत में 2004 से रहना शुरू किया। शुरुआत में मेरा परमिट पांच-पांच महीने पर बढ़ाया जाता था। 2008 से यह एक साल के लिए मिलने लगा, लेकिन हर साल की परेशानी से मुक्ति के लिए पांच या 10 साल का परमिट मिल जाता तो अच्छा था। ऐसे कई विदेशी नागरिक हैं, जो भारत में लंबी अवधि का रेजिडेंशियल परमिट लेकर रह रहे हैं।

आसमान से गिरी, खजूर पर लटकी

वाममोर्चा ने जब मौलवियों को खुश करने के लिए मुझे 2007 में पश्चिम बंगाल से निकाल दिया था तब केंद्र की संप्रग सरकार ने मुझे दिल्ली में गृहबंदी बनाकर लगातार दबाव बनाया और 2008 में भारत छोड़ने के लिए बाध्य किया। तब मेरा रेजिडेंशियल परमिट 2011 तक बढ़ाया गया, लेकिन मुझे भारत में रहने नहीं दिया गया। तब कई लोगों ने मुझसे कहा था कि भाजपा की सरकार बनने के बाद आपको परमिट के लिए कोई समस्या नहीं होगी। नागरिकता भी मिल सकती है। मैं कोलकाता में भी रह सकती हूं। मैंने भी वही सोचा था, लेकिन 2014 में जब भाजपा सत्ता में आई और मेरा रेजिडेंशियल परमिट एक साल से घटाकर दो महीने कर दिया गया तब मुझे लगा कि मैं आसमान से गिरी हूं। 2019 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद मेरे परमिट को फिर एक साल से घटाकर तीन महीने कर दिया गया, जिसे बाद में एक साल किया गया।

मैं हमेशा मोदी जी की कृतज्ञ रही हूं

मुझे आज भी याद है। पश्चिम बंगाल से जब मुझे भगाया गया था तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में कहा था कि अगर वे तसलीमा को सुरक्षा देने में असमर्थ हैं तो तसलीमा को गुजरात भेज दें। मैं उन्हें सुरक्षा दूंगा। चुनाव प्रचार के दौरान कोलकाता में मंच से उन्होंने पूछा था कि माकपा के सत्ता से जाने के बाद और तृणमूल की सरकार बनने के बाद भी क्यों मुझे कोलकाता नहीं लौटने दिया जा रहा है? भारत में मोदी जी की तरह ऐसे बहुत कम राजनेता हैं, जिन्होंने डंके की चोट पर मेरा समर्थन किया है। राजनीतिक तौर पर संपूर्ण निरपेक्ष रहने वाली मेरे जैसी निर्वासित साहित्यकार और धर्मनिरपेक्ष लेखिका को बिना शर्त समर्थन करने के लिए मैं हमेशा मोदी जी की कृतज्ञ रही हूं।

मेरी समस्या जस की तस

मोदी के सत्ता में आने के बाद लगा था कि मुझे साल दर साल परमिट लेने से मुक्ति मिल जाएगी। भारत में स्थायी रूप से रहने की अनुमति मिल जाएगी। निश्चिंत होकर अपनी बाकी निर्वासित जिंदगी सिर्फ साहित्य रचना में लगाऊंगी, लेकिन मेरी समस्या जस की तस है। मैं कोई अपराध तो नहीं कर रही। अपनी लेखनी से इस समाज में बच्चियों को शिक्षित और सचेतन होने की प्रेरणा देती हूं।

भाषाई आधार पर भारत को चुना

स्वीडन की नागरिक होने के बावजूद, यूरोपियन यूनियन से जुड़ाव, अमेरिका की स्थायी निवासी होने के बावजूद मैंने रहने के लिए भारत का चुनाव किया है, क्योंकि भारत में एक भाषा ऐसी है जो मेरी मातृभाषा है, जिसमें मैं खुद को अभिव्यक्त करती हूं, लिखती हूं, सोचती हूं और स्वप्न देखती हूं। भारत मुझे मेरे देश जैसा लगता है। इस उपमहाद्वीप में भारत ही एक ऐसा देश है, जहां मैं निवास कर सकती हूं। इस उपमहाद्वीप में रहने वाले अधिकतर लोग यूरोप और अमेरिका में रहने के लिए लालायित हैं और मैंने इस देश के प्यार में यूरोप और अमेरिका का त्याग किया है।

परमिट को लेकर चिंतित

विदेश की धरती पर मिलने वाले यश, ख्याति और सुरक्षा को तुच्छ समझते हुए मैंने भारत में मेरे लिए मौजूद अनिश्चितता के माहौल का चयन किया है। अभी भी कई बार मुझे चौंक जाना पड़ता है, जब मेरा परमिट अचानक से घटा दिया जाता है। घटते-घटते कहीं यह मेरे लिए खत्म न हो जाए, यह चिंता बनी रहती है।

मैं आम नागरिक की तरह रहती हूं

कइयों को लगता है कि मैं यहां भारत सरकार की मेहमान हूं, लेकिन वे गलत समझते हैं। मैं यहां अपने पैसे से रहती, खाती और पहनती हूं। मैं एकदम आम नागरिक की तरह साधारण जीवनयापन करती हूं। साधारण लोगों के साथ रहती हूं, साधारण लोगों में मेरा उठना-बैठना है। इस देश में कभी मुझे परदेसी होने का भाव नहीं आया। अब भारत ही मेरा देश है।

भारत को मैं प्यार करती हूं

मेरा मानना है कि जन्म लेने से ही कोई देश किसी का नहीं हो जाता है। देश तो प्रेम करने वाले का होता है। मेरा भरोसा है कि इस देश के कई लोग ऐसे हैं जिनसे कहीं ज्यादा इस देश को मैं प्यार करती हूं। मुझे पता है कि यूरोपियन यूनियन की नागरिकता मिलने या अमेरिका से ग्रीन कार्ड मिलने के बाद कई देशप्रेमी इस देश को छोड़ देंगे। मेरे पास सब है, लेकिन मैंने इस मुल्क के प्रति अपने प्रेम के कारण वह सब त्याग दिया है। अगर भारत के प्रति मेरे प्रेम का अगर कोई भी मूल्य है तो इस देश में रहने में मुझे कोई समस्या नहीं होगी।

( लेखिका जानी-मानी साहित्यकार हैैं )

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