[ संतोष त्रिवेदी ]: तमाम बुरी खबरों के बीच बड़े दिनों बाद आखिरकार एक अच्छी खबर आई है। देश की राजधानी में भीख मांगना अब अपराध नहीं है। इसके शुरुआती संकेत बड़ी उम्मीद जगाने का काम कर रहे हैं। भीख मांगने वाले अब अपने पात्र रुपयों से ही नहीं सम्मान से भी भर पाएंगे। कोई भी कहीं भीख मांगने बैठ सकता है। हवलदार साहब अब हर ‘हफ्ते’ उसे परेशान नहीं कर सकते। अगर इस फैसले से उनका हाथ तंग होने लगे तो वह खुद भी चौराहों पर, बाजारों में हाथ पसार कर आत्मनिर्भर हो सकते हैं। बशर्ते पकड़े जाने पर उन्हें यह बताना जरूरी होगा कि यह विशुद्ध भीख है। इसके सिवा कुछ नहीं। कुछ लोग बाकायदा प्लान करके सपरिवार पर्यटन के नाम पर भिक्षाटन पर भी जा सकते हैं। इससे देश की अर्थव्यवस्था तो मजबूत होगी ही, साथ ही सरकार का सिरदर्द भी कम होगा। इस सेक्टर में अचानक नई संभावनाएं दिखने लगी हैं। पारंपरिक भिखारी भीख मांगने के नए ‘फ्रंट’ खोल सकते हैं। वे ‘डिजिटल-भीख’, ‘पॉलिटिकल-भीख’ और ‘इंटरनेशनल भीख’ के जरिये देश की तकदीर बदल सकते हैं।

डिजिटल-भीख के माध्यम से जहां ऑनलाइन ठगी को वैधता मिलेगी, वहीं ‘इंटरनेशनल-भीख’ बड़े-बड़े कर्जदाताओं और डिफॉल्टरों को कर्जमुक्ति के साथ-साथ संपूर्ण सुरक्षा भी देगी। सबसे क्रांतिकारी परिवर्तन तो ‘पॉलिटिकल-भीख’ के माध्यम से आने वाला है। पहले नेताओं को वोट के बदले कुछ वादे करने की जहमत उठानी पड़ती थी। अब अपनी झोली में वोट लेना उनका बुनियादी हक होगा। वे इसे भीख के रूप में ही स्वीकार करेंगे ताकि आश्वासन चुकाने का भी कोई झंझट न हो।

भिखारियों के बारे में रहीम जी बहुत पहले कह गए हैं, ‘रहिमन वे नर मर चुके जो कछु मांगन जांहि’। इस पर यकीन न रखने वाले और ‘पॉलिटिकल-भीख’ सेक्टर में अपनी संभावनाएं तलाश रहे एक घुटे हुए नेता से मेरी भेंट हुई। उन्होंने बताया कि भीख मांगने का एक स्टार्ट-अप खोलने जा रहे हैैं। इससे भिखारियों की ‘मैनपॉवर’ बढ़ जाएगी। नेताजी ने आगे बताया, ‘हम जमीनी स्तर पर तो भीख मांग ही रहे हैं, डिजिटल-भीख को भी प्रोत्साहित करने जा रहे हैं। जो भी हमें डिजिटल-भीख देगा, हम उसे इनाम में ‘भीखबैक’ देंगे। यानी ठीक ढंग से भीख देने लायक बनाएंगे। यह हमारी ऐसी योजना है जिसमें भीख देने वाला लालच से मुक्त होगा। जनता को भिखारी बनाने का टारगेट हम समय से पहले पूरा करके दिखाएंगे।’

‘तो क्या अब आप संकल्प-पत्र भी नहीं पेश करेंगे?’ हमने बहुत झिझकते हुए उनकी ओर सवाल सरकाया। नेताजी अनुभवी थे। कहने लगे-आजादी के सत्तर साल बीत गए हैं। आज तक हमारे मतदाता आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं। हर चुनाव से पहले उन्हें नामुराद वोट के बदले कुछ पाने की तलब मचने लगती है। यह बात न लोकतंत्र के लिए ठीक है न भारतीयता के लिए। हमारे यहां पेड़ फल के बदले कुछ नहीं लेते, नदियां नि:स्वार्थ भाव से जल देती हैं। हम तो फिर भी आदमी ठहरे। पांच साल तक शांति से क्यों नहीं ठहर सकते?

हम संकल्प लेते हैं कि अपने वोटर को चुनावों से पहले अपना मुंह नहीं दिखाएंगे। क्या यह कम त्याग है इस जमाने में? उनके कहने के अंदाज से हम बिल्कुल लाजवाब हो गए। तभी एक आर्थिक भिखारी महाशय न जाने कहां से प्रकट हो गए! कहने लगे, ‘देश की आजादी सेलिब्रेट करने के लिए लंदन के ठंडे मौसम को छोड़कर यहां आया हूं। देश हमसे और उम्मीद न करे। हमें जरूर देश से उम्मीद है।

देश की राजधानी में भीख मांगने की आजादी हमारी आर्थिक आजादी की ओर महत्वपूर्ण कदम है। हम चाहते हैं कि इसे पूरे देश में लागू किया जाए। इससे सरकार की बेरोजगारी की एक बड़ी समस्या बैठे-बिठाए हल हो सकेगी। पढ़े-लिखों के लिए इस क्षेत्र में कई मौके आने वाले हैं। वे अपने इलाके की सीमा के पार भी जाकर ‘भीखबारी’ कर सकते हैं। इस कार्रवाई से बेरोजगारी के कई अड्डे तो तबाह होंगे ही भीख की क्वालिटी सुधरेगी सो अलग। सरकार चाहे तो हमें ‘इंटरनेशनल भीख’ का ब्रांड एंबेसडर घोषित कर सकती है। देसी-विदेशी फंड हड़पने का हमें व्यापक अनुभव है।’

हम देश और आजादी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के आगे नतमस्तक हो गए। हमारी यह एक्सक्लूसिव बातचीत साथ बैठे बुज़ुर्ग ने सुन ली। उन्होंने कुछ बोलने की आजादी मांगी। हम आजादी के फुल मूड में थे, दे दी। बुज़ुर्ग कहने लगे, ‘भाई, आज हम सब हर तरह से आजाद हैं। जिसे देखो वही ‘हम लेके रहेंगे आजादी’ के मिशन में लगा हुआ है। सब अपनी-अपनी आजादी चाहते हैं। भीड़ को इंसाफ करने की आजादी चाहिए, सड़कों पर पूजा-पाठ और हुड़दंग करने की आजादी चाहिए। भ्रष्ट आचरण को देशभक्ति समझने की आजादी चाहिए। जब इतनी सारी आजादियां हमारे इर्द-गिर्द नाच रही हों तब भीख मांगने की आजादी मिलना कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।’ इतना कहकर वह चलते बने। तैश में या शायद ख़ुशी में वह अपना चश्मा वहीं भूल गए। हम उनको ढूंढ़ रहे हैं ताकि वे आजादी के जश्न को अपने चश्मे से भलीभांति देख सकें।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार है ]