डॉ. जयंतीलाल भंडारी। पिछले दिनों प्रकाशित वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट-2024 में 143 देशों की सूची में भारत को 126वां स्थान दिया गया। तब से लोग इसे अतार्किक और अविश्वसनीय बताते हुए टिप्पणियां कर रहे हैं। यूरोपीय विद्वानों द्वारा निर्धारित विभिन्न मापदंडों पर आधारित देशों को खुशहाली की रैंकिंग देने वाली यह सूची हास्यास्पद और भ्रमित करने वाली है। इसमें भारत से चार पायदान ऊपर 122वें स्थान पर स्थित पाकिस्तान दुनिया भर में महंगाई, कर्ज, धार्मिक आजादी एवं लोकतांत्रिक चुनौतियों से ग्रस्त एक ऐसा देश है, जिसकी सत्ता में सांप्रदायिक कट्टरपंथी जमात अग्रिम पंक्ति में हैं।

कदम-कदम पर मजहबी पाबंदियों वाला कुवैत दुनिया का 13वां सबसे खुशहाल देश है। हमास के साथ युद्ध ने जिस इजरायल के हजारों लोगों को चिंतित कर रखा है, उसे दुनिया का पांचवां सबसे खुशहाल देश बताया गया है। इतना ही नहीं, युद्ध से पीड़ित, क्षतिग्रस्त, हजारों मौतों का सामना कर रहे रूस 72वें, फलस्तीन 103वें तथा यूक्रेन 105वें क्रम पर हैं। इस विश्व खुशहाली रिपोर्ट में बेमेल गणनाएं भी की गई हैं।

दुनिया की सबसे बड़ी आबादी के साथ सातवां सबसे बड़ा भू-भाग रखने वाले भारत की तुलना दुनिया के छोटे-छोटे, निम्न आबादी एवं कम चुनौतियों का सामना करने वाले देशों से कैसे की जा सकती है? खुशहाली को महज आर्थिक प्रगति और संसाधनों की अधिकता के मद्देनजर देखा जाना उपयुक्त नहीं है। जिन देशों को खुशहाल बताया गया है वहां आबादी, चुनौतियां बहुत कम हैं तथा धार्मिक विद्वेष भी नहीं है। ऐसे छोटे देशों की सरकारों को किसी समस्या को सुलझाने में ज्यादा समय नहीं लगता। उनकी तुलना बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना कर रहे भारत जैसे विशाल देश से कैसे की जा सकती है?

वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट में भारत के संबंध में कुछ चमकीले परिदृश्य को ध्यान में नहीं रखा गया है, जिनकी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक सहित दुनिया के कई संगठन अपने शोध पत्रों के आधार पर सराहना कर रहे हैं। भारत में मानव विकास के तहत गरीबी में कमी लाने के प्रयास को भारी सफलता मिली है। पिछले एक दशक में भारत में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। भारत आम आदमी को डिजिटल दुनिया से जोड़ने वाला विश्व का प्रमुख देश बना है।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है। सरकार द्वारा गरीबों एवं किसानों के बैंक खातों में सीधे 32 लाख करोड़ रुपये से अधिक धनराशि भेजकर उनका सशक्तीकरण किया गया है। इसमें संदेह नहीं कि खुशहाली की सूची में विभिन्न देशों की रैंकिंग अनुचित और अन्यायपूर्ण ढंग से की गई है, लेकिन यह याद रहे कि हमें आम आदमी के आर्थिक उत्थान के साथ खुशहाली के विभिन्न पैमानों पर आगे बढ़ने के लिए अभी मीलों चलना है। हमें देश में आय असमानता के अंतर को भी कम करने के लिए बड़े प्रयास करने होंगे।

गत दिनों प्रकाशित न्यूयार्क यूनिवर्सिटी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 में भारत की कुल आय का 22.6 प्रतिशत हिस्सा सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास गया। देश की सबसे अमीर एक प्रतिशत आबादी के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 39.5 प्रतिशत हिस्सा था, जबकि सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी के पास केवल 6.5 प्रतिशत। रिपोर्ट के अनुसार भारत में कर प्रणाली प्रतिगामी है, जिसका अर्थ है कि अमीर लोग अपनी संपत्ति के अनुपात में कम टैक्स दे रहे हैं।

हमें देश में मानव विकास के विभिन्न पैमानों पर भी तेजी से आगे बढ़ने पर ध्यान देना होगा। हाल में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी मानव विकास सूचकांक (एचडीआइ) रिपोर्ट-2022 में भारत 193 देशों की सूची में 134वें स्थान पर है। यद्यपि भारत की रैकिंग में पिछले वर्ष की रिपोर्ट के मुकाबले एक पायदान का सुधार हुआ है, लेकिन पिछले 34 वर्षों से वह 131 से 135वें स्थान पर ही झूल रहा है। एचडीआइ का तात्पर्य मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों-लंबा एवं स्वस्थ जीवन, शिक्षा तक पहुंच और सभ्य जीवन स्तर में औसत उपलब्धियों के आकलन से है।

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र ने नए मानव विकास सूचकांक में भारत की औसत बढ़त को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ कहा है। पिछले एक वर्ष में भारतीयों की औसत आमदनी में 6.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। भारत में जीवन प्रत्याशा में शानदार वृद्धि हुई है। कुछ वर्ष पहले भारत में जीवन प्रत्याशा का औसत 62.2 था, जो अब बढ़कर 67.7 हो गया है। भारत ने लैंगिक असमानता को कम करने में भी सफलता पाई है।

स्पष्ट है कि हमें गरीब एवं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की चिंताओं पर अधिक ध्यान देना होगा। पिछले दिनों एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि ऐसे सभी आठ करोड़ मजदूरों को अगले दो माह में राशन कार्ड उपलब्ध कराएं जाएं, जिनके पास अभी नहीं हैं, ताकि वे खाद्य सुरक्षा का लाभ उठा सकें। हमें देश में आर्थिक आजादी के लिए और प्रयास करने होंगे। सरकार द्वारा आम आदमी की प्रति व्यक्ति आय और खुशहाली बढ़ाने के लिए जो व्यय किए जाते हैं, वे बुनियादी ढांचे पर निवेश की तरह ही लाभप्रद होते हैं।

यह समय की मांग है कि देश में करोड़ों लोगों की गरीबी, भूख, कुपोषण, डिजिटल शिक्षा, रोजगार, उद्यमिता, ग्रामीण युवाओं के तकनीकी प्रशिक्षण और स्वास्थ्य की चुनौतियों को कम करने के लिए सरकार हरसंभव प्रयास करे। ऐसे प्रयासों से ही आम भारतीय के चेहरे पर मुस्कुराहट बढ़ेगी, देश में खुशहाली आएगी और वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट यदि दोषपूर्ण तरीके से तैयार न की गई तो उसमे भी हम ऊंचे क्रम पर दिखाई देंगे।

(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)