प्रमोद भार्गव। भारत में कोरोना का टीका लगाने की शुरुआत के साथ मानवता को निरोगी बनाए रखने के संकल्प ने गति पकड़ ली है। पूरी दुनिया में यह टीकाकरण बड़ी चुनौती इसलिए है, क्योंकि यह दुनिया का सबसे बड़ा अभियान है। इस संबंध में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि अमेरिकी टीका निर्माता फाइजर बायोएनटेक के बने टीके की समय पर आपूíत नहीं होने से टीकाकरण करा रहे दुनिया के 80 प्रतिशत देशों में संकट खड़ा हो गया है। रूस व चीन के इतर दुनिया में सबसे पहला कोरोना टीका फाइजर ने तैयार किया था, जिसकी खुराकों को बड़ी संख्या में ज्यादातर अमीर देशों ने अनुबंध कर लिया था। लेकिन समय पर टीके की आपूर्ति नहीं होने के कारण टीकाकरण लंबित हो रहा है। इटली और पौलेंड ने फाइजर पर कानूनी कार्रवाई करने की भी बात कही है। रोमानिया को अनुबंध के मुताबिक टीके की आपूíत नहीं हो पा रही है। चेक रिपब्लिक का भी यही हश्र हुआ है। कनाडा को भी यह टीका समय पर नहीं मिला।

इन सबके बावजूद भारत में टीकाकरण न केवल सुचारू रूप से चल रहा है, बल्कि कई देशों को टीका दान के रूप में दे दिए जाने के बावजूद दूसरे देशों को अनुबंध के मुताबिक टीके की खुराकों की प्रदायगी बराबर की जा रही है। टीका के क्षेत्र में सबसे पहले आत्मनिर्भर बनकर भारत ने वैक्सीन कोविशील्ड बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, भूटान, मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स को दान में दे दी है। इसके साथ ही सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, मोरक्को और ब्राजील जैसे देशों को व्यापारिक समझौतों के तहत टीकों की खेप पहुंचाने की शुरुआत हो गई है। ब्राजील के रियो डी जेनेरियो हवाई अड्डे पर जब विमान वैक्सीन लेकर पहुंचा तो उसे वाटर कैनन सैल्यूट दिया गया। इस वैक्सीन कूटनीति की तारीफ अमेरिका की नई बाइडन सरकार ने भी की है। अमेरिका ने कहा है कि भारत सच्चा मित्र है, जिसने दवा के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को महामारी से मुक्ति के लिए कोरोना टीका भेजने की शुरुआत कर दी है।

वैक्सीन के बहाने भारत ने कोविशील्ड और को-वैक्सीन का व्यापक पैमाने पर उत्पादन शुरू करके दुनिया को यह संदेश दे दिया है कि अब भारत फार्मास्युटिकल क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया है। अमेरिका के प्रसिद्ध अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि पड़ोसी देशों को उपहार में टीका उपलब्ध कराकर भारत ने मानवता के प्रति अपनी भावना को दर्शाया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने नरेंद्र मोदी के प्रति आभार जताते हुए कहा, कोरोना महामारी में नरेंद्र मोदी का अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सहायता के लिए आरंभ से ही दृष्टिकोण सकारात्मक रहा है। उन्होंने कोरोना संक्रमण पर शोध, विचार-विमर्श, टीका निर्माण और वितरण पर अपनी विलक्षण क्षमता का प्रदर्शन किया है।

पिछले लगभग एक साल से इस महामारी ने दुनिया भर में त्रहिमाम मचा रखा है, लेकिन इसने चिकित्सा के क्षेत्र में शोध और अनुसंधान के नए द्वार खोले, जिनके सकारात्मक परिणाम निकले और भारत जैसे विकाशील देश इस कड़ी में अग्रणी देश साबित हुए। इसके कूटनीतिक परिणाम भविष्य में हिंद महासागर क्षेत्र में नए आकार में दिखाई देंगे और भारत के प्रति विश्वास में वृद्धि होगी। दरअसल चीन की विस्तारवादी नीतियों के चलते यह क्षेत्र हमेशा भारत के लिए चिंता का कारण रहा है। नेपाल को भी दान के रूप में वैक्सीन देने के बाद वहां के राजनीतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं। चीन के प्रबल समर्थक रहे वहां के निवर्तमान राष्ट्राध्यक्ष केपी शर्मा ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के विद्रोही गुट ने प्राथमिक सदस्यता रद कर दी है। इसे टीका कूटनीति का पर्याय माना जा रहा है।

इसी तरह चीन ने जब बांग्लादेश से वैक्सीन के परीक्षण का खर्च मांगा तो बांग्लादेश ने चीन से सौदा रद कर दिया। ढाका में चीन बांग्लादेश को सिनोफॉर्म वैक्सीन देने का सौदा कर रहा था, लेकिन उसने इस सौदे की शर्तो में क्लीनिकल ट्रायल में होने वाले खर्च की मांग भी कर डाली। इस शर्त को बांग्लादेश ने मानने से इन्कार कर दिया। इधर भारत ने बांग्लादेश को मानवता के नाते एवं द्विपक्षीय संबंधों के चलते टीके की 20 लाख डोज उपहार में दी है। साथ ही, अनुबंध के तहत टीके की तीन करोड़ खुराकें भेजी जानी हैं। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत के प्रति कृतज्ञता जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वीडियो वार्ता के जरिये धन्यवाद दिया। साफ है, भारत की कूटनीति इस टीके के जरिये वैश्विक स्तर पर मजबूत व फलदायी होने जा रही है।

नरेंद्र मोदी ने दक्षिण एशियाई देशों के प्रति प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही मानवीय उदारता दिखाई है। इसी क्रम में भारत ने एक साझा उपग्रह उपहार में दिया था, जिसे पाकिस्तान को छोड़ सभी दक्षेश देशों ने सराहा था। पाकिस्तान की हरकतों की वजह से भले ही दक्षेश संगठन लगभग निष्क्रिय है, लेकिन बिम्सटेक के मंच के माध्यम से भारत पड़ोसी देशों के साथ व्यापार, तकनीक, वित्त और अब दवा के क्षेत्र में बहुपक्षीय सहयोग बढ़ा रहा है। महामारी से मुक्ति के लिए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन और अब टीके व अन्य जरूरी उपकरणों को दान में या सस्ती दरों पर देकर भारत ने अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। 

दुनिया जानती है कि कोविड विषाणु से बचाव का स्थाई उपाय केवल टीका है। ऐसे में चीन व अन्य अमीर व शक्तिशाली देश टीके की आड़ में उपचार की पूरी कीमत वसूलने में लगे हैं। चीन ने तो हृदयहीनता का परिचय देते हुए बांग्लादेश से ड्रग ट्रायल के खर्च की भी मांग कर डाली थी। भारत भी ऐसा कर सकता था। लेकिन उसने वैक्सीन के बहाने नाजायज प्रभाव जमाने की बजाय निस्वार्थ उदारता दिखाई और छोटे व बड़े देशों की समान रूप से मदद करने में लगा है। इसीलिए इसे टीका कूटनीति की बजाय टीका-मैत्री कहना कहीं ज्यादा उचित होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)