[ अभिषेक कुमार सिंह ]: कोरोना संकट के इस दौर में कोई नहीं जानता कि कोविड-19 महामारी का कहर कब थमेगा और कब जिंदगी पुराने ढर्रे पर वापस लौटेगी? सिर्फ पढ़ाई-लिखाई ही नहीं, कई ऐसे कामकाज भी इस मजबूरी में घर बैठे और ऑनलाइन संपन्न कराए जा रहे हैं, जिनके बारे में इस महामारी के पहले सिर्फ विमर्श के स्तर पर सोच-विचार होता था। ज्यादातर दफ्तरों में अधिकारी इसे लेकर ज्यादा विचार नहीं करते थे कि बहुत से ऐसे काम हैं, जिन्हें घर से किया जा सकता है, लेकिन कोरोना संकट से पैदा अनिश्चय ने वर्क फ्रॉम होम यानी घर से काम करने की मजबूरी को एक जरूरत में बदल दिया है। अब दफ्तरी कामकाज के अलावा खरीद-फरोख्त और निजी-सरकारी बैठकों से जुड़े तमाम काम या तो ऑनलाइन संपन्न हो रहे हैं या ऑनलाइन करने की तैयारी है, ताकि कोविड-19 का दौर लंबा खिंचने पर दुनिया के चलने में कोई ज्यादा मुश्किल न हो।

कंपनियां वर्क फ्रॉम होम की मजबूरी को अब स्थायी प्रबंधों में बदलना चाहती हैं

ऐसी खबरें पिछले साल ही चर्चा में आ गई थीं कि देश और दुनिया की ज्यादातर आइटी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को अगले कई महीनों तक के लिए वर्क फ्रॉम होम की छूट दे दी है। भारत की पांच शीर्ष आइटी कंपनियों ने बढ़ती मांग की भरपाई के लिए अपने यहां बंपर भर्तियां करने की योजना बनाई है। नई बंपर भर्तियों की सूचना यह भी बताती है कि बदले हुए हालात के मुताबिक देश की तमाम कंपनियां अपना ज्यादातर कामकाज डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाना चाहती हैं, पर इसके लिए उनके पास कोई विशेषज्ञता या अनुभव नहीं है। इसीलिए वे आइटी कंपनियों की मदद लेना शुरू कर रही हैं। इस सूचना का एक सिरा इससे भी जुड़ा है कि हाल तक आइटी से इतर जिन कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम की मजबूरी को आपात उपायों के तौर पर अपनाया, अब वे उन सारे फौरी उपायों को स्थायी प्रबंधों में बदलना चाहती हैं। यह भी संभव है कि उन्हें इस नई व्यवस्था में कई फायदे नजर आ गए हों।

दफ्तर के बजाय घर से काम करने का मूल सुझाव सबसे पहले एक अमेरिकी प्रबंधक ने दिया था

दफ्तर के बजाय घर से काम करने का मूल सुझाव सबसे पहले एक अमेरिकी प्रबंधक डेम स्टीफन शर्ली ने दिया था। उन्होंने यह विचार कंपनियों के सामने रखा था कि यदि आधुनिक तकनीक की मदद ली जाए तो कई दफ्तरी काम ऐसे हैं, जिन्हें कर्मचारी घर से कर सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ाई ने भी इस बहस को आगे बढ़ाया है कि यदि पढ़ाई और परीक्षा के प्रबंध स्कूल-कॉलेज आए बगैर हो सकते हैं तो कई अन्य जरूरी कार्यों को भी घर से ही संपन्न क्यों नहीं कराया जा सकता? औद्योगिक संगठन-एसोचैम ने गत वर्ष देश की साढ़े तीन हजार कंपनियों के प्रबंधकों के बीच एक सर्वेक्षण कराकर इस योजना की टोह ली थी। इस सर्वेक्षण का निष्कर्ष था कि मार्च, 2020 के लॉकडाउन के बाद कंपनियां अपने दफ्तरों की रूपरेखा बदलने में लग गई थीं। टाटा कंसल्टेंसी र्सिवसेज ने तो उसी दौरान यह घोषणा कर दी थी कि उसकी योजना 2025 तक अपने 75 फीसदी कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम नीति के तहत काम करने देने की है। यह सही है कि सभी तरह के कार्यों को कार्यस्थलों से हटाकर घर नहीं भेजा जा सकता। इसमें कई व्यावहारिक अड़चनें भी हैं, लेकिन इसके रास्ते भी निकल सकते हैं।

कोरोना काल में दुनिया में प्रचलित वर्क फ्रॉम होम

इस कोरोना काल में दुनिया में प्रचलित हुए वर्क फ्रॉम होम के फलसफे ने कुछ सकारात्मक नजारे भी दिखाए। यदि जरूरत पड़ने पर कई कार्य घर बैठे पूरे हो सकते हैं तो पृथ्वी के सामने मौजूद पर्यावरणीय चुनौतियों और शहरों पर पड़ रहे बेइंतहा दबावों का आसानी से सामना किया जा सकता है। वर्क फ्रॉम होम या कहें कि दुनिया चलाने के ऑनलाइन प्रबंधों का कितना ज्यादा फायदा हमारी पृथ्वी और प्रकृति को हो सकता है, यह बात बीती अवधि में स्वच्छ हुए पर्यावरण के रूप में दिखा।

घर को दफ्तर में बदलने की जरूरत, वर्क फ्रॉम होम के फायदे ही फायदे

घर को दफ्तर में बदलने की जरूरत असल में इसलिए भी ज्यादा है कि ज्यादातर शहरों में घरों से दफ्तर की दूरियां बढ़ रही हैं। कामकाजी आबादी को दफ्तर पहुंचने के लिए लंबी दूरी के अलावा ट्रैफिक जाम और परिवहन के बढ़ते खर्चों को भी वहन करना पड़ता है। व्यावसायिक इलाकों में दफ्तरों का किराया काफी महंगा है, जो कंपनियों को भारी पड़ता है। दफ्तरों में एयर कंडीशनिंग के प्रबंध में बिजली का बेइंतहा खर्च कई अन्य तरह के दबाव पैदा करता है। घर से काम करने से लोगों का तनाव घटता है तो बिजली और डीजल-पेट्रोल आदि संसाधनों का खर्च भी बचता है।

संपूर्ण लॉकडाउन, सेमी लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू के बावजूद कारोबार बदस्तूर चलता रहा

बेशक अनिश्चय तो अभी भी बहुतेरे हैं, लेकिन मानव इतिहास में यह पहला ऐसा मौका है, जब संपूर्ण लॉकडाउन, सेमी लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू जैसी तमाम बंदिशों के बावजूद कुछ चीजों को छोड़कर दुनिया का ज्यादातर कारोबार इस दौर में बदस्तूर चलता रहा है। लोगों को राशन-पानी मिल रहा है, दवाओं समेत कई अनिवार्य चीजों की आपूर्ति यथावत है, अखबार छप रहे हैं और परीक्षा में रुकावटों को छोड़कर शिक्षा का सिलसिला भी कमोबेश जारी है। पढ़ाई ही नहीं, इंटरनेट, स्मार्टफोन, लैपटॉप और कई तरह के एप्स ने यह तक मुमकिन कर दिखाया है कि फिल्मकारों से लेकर आम लोग भी घर बैठे कोई छोटी-मोटी फिल्म बना लें और उसे दुनिया भर में पहुंचा दें।

लैपटॉप-स्मार्टफोन खरीदने की मजबूरियां, ऑनलाइन कामकाज, पुरातन सोच बदलनी होगी

अगर किसी कारण प्रबंधकों ने अपने कर्मचारियों को दफ्तर आने पर दबाव डाला तो भविष्य में ऐसी ही कोई मुश्किल आने पर ऑनलाइन कामकाज को पटरी पर लाना आसान नहीं होगा। असल में अधिकांश प्रबंधकों को अभी भी लगता है कि घर बैठा कर्मचारी दफ्तर से ज्यादा घर के काम ही निपटाता है। यह पुरातन सोच बदलनी होगी। हालांकि इंटरनेट की रफ्तार और शिक्षा के मामले में छात्रों को लैपटॉप-स्मार्टफोन खरीदने की मजबूरियां भी हैं, लेकिन दुनिया को अगर बदलना है तो इनके रास्ते भी निकालने होंगे।

( लेखक तकनीकी विषयों के जानकार हैं )