[ निर्मल गुप्त ]: टिड्डी दल आजकल खतरनाक उड़ान पर है। उनके बारे में कहा जा रहा है कि आदमी घरों में कैद हैं और वे विश्व भ्रमण पर निकले हुए हैं। उन्हें ड्रोन और आतंकियों से भी अधिक खतरनाक घुसपैठिया माना जा रहा है। टिड्डियों की रोकथाम के लिए दवाएं छिड़की जा रही हैं। गनीमत यह है कि उनसे निपटने के लिए दवाएं तो पहले से मालूम हैं। ये उस मुए कोरोना जैसे नहीं जो अपनी दवा के बिना ही मुंह उठाकर चला आया। हालांकि कोरोना के कारण टिड्डियों से निपटने की राह में कुछ अड़ंगा जरूर लगा।

टिड्डियों से निपटने के सारे इंतजाम

चूंकि सरकार ने किसानों को आश्वस्त किया था कि टिड्डियों से निपटने के सारे इंतजाम किए जाएंगे, इसने किसानों के कान खड़े कर दिए। सरकारी वादों से जुड़ी अपनी यादों को याद करके उन्होंने तेल के खाली पीपे, घी के कनस्तर और कांसे की थालियों को ही अपना हथियार बना लिया। वे उन्हें बजा-बजाकर इस जंग में अपना काम चला रहे हैं। गांव की गलियों में अपनी बाइक की जलवाफरोशी करने वाले खलिहर लड़कों ने भी साइलेंसर निकालने के बाद अपनी-अपनी बाइक स्टार्ट कर धमाके की आवाज पैदा करने के लिए काम पर लगा दी हैं। उनसे कल्पित रहने वाले बुजुर्ग भी अब उनकी बलैया ले रहे हैं। वहीं नए लड़के ट्रैक्टर ट्रॉली में रखकर म्यूजिक सिस्टम ले आए और फुल वॉल्यूम पर गाना बजा रहे हैं।

जो लड़ाई हंसते-गाते जीती जा सकती है, उसके लिए टेंशन लेने की क्या जरूरत

मनभावन धुनों पर थिरकते लड़कों का कहना है कि यदि शोरोगुल ही निदान है तो उस काम को जरा ढंग से कर लिया जाए तो उसमें हर्ज ही क्या है। आखिर जो लड़ाई हंसते-गाते, नाचते-कूदते जीती जा सकती है, उसके लिए फिजूल मारधाड़ वाली टेंशन क्यों मोल ली जाए।

दम था तो चीन में जाकर दिखाते जहां लोग टिड्डी दल की चटनी बनाकर खा जाते

लोगों ने दुश्मन मुल्क से आए टिड्डी दल की अपने-अपने तरीके से खूब खबर ली और जमकर खिल्ली उड़ाई। कुछ तो उन्हें चुनौती देते दिखाई दिए कि दम था तो चीन में जाकर दिखाते जहां लोग उनकी चटनी बनाकर खा जाते। बहरहाल टिड्डियां इतनी बड़ी तदाद में आ रही हैं कि उनसे होने वाले नुकसान पर ललित निबंध तक लिखे जा रहे हैं। वैसे भी ग्रास हॉपर हो या आदमी, जो हार्मलेस है,उसे भला कौन पूछता है। बिल्कुल वैसे जैसे विषहीन भुजंग का किसी को कोई डर नहीं, लेकिन कोबरा देखते ही लोगों को काल दिखाई देने लगता है।

कोरोना के कारण शांत रहे डीजे वालों ने टिड्डी आपदा में अवसर तलाश लिया

बहरहाल इस टिड्डी संकट में म्यूजिक सिस्टम पूरे दमखम के साथ गुंजायमान हैं। चूंकि कोरोना के कारण तमाम शादियां भी टल गई हैं तो डीजे वालों ने भी टिड्डियों की इस आपदा में अवसर तलाश लिया है। वहीं खेत-खलिहानों में खड़ी फसल के बीचों-बीच खड़े बिजूके भी हवा के वेग से इस तरह हाथ-पैर हिला रहे हैं जैसे वे टिड्डी दल के संभावित हमले के खिलाफ संगीतमय हिफाजत की देसी तकनीक का भरपूर मजा ले रहे हों। ऐसे में कुछेक मनचले किशोरों ने मौका ताड़कर गांव के कुछ बुजुर्गों की दुखती रग छेड़ दी जो नियम कानूनों के चलते घरों में कैद रहने को मजबूर हैं।

टिड्डियां मरते-मरते लहलहाती फसलों को झटपट चट करने में लगी हैं

इधर सूचना यही है कि टिड्डी दल दनादन हताहत हो रहा है। फिर भी जिद पर अड़ा उड़ता ही जा रहा है। वहीं चीनी लोग टिड्डी दल के अपने यहां चले आने की अपुष्ट खबर पाकर बड़े मगन हैं, उन्होंने उनकी भजिया बनाकर उसे एक्सपोर्ट करने की तैयारी भी कर ली है। वैसे मानना पड़ेगा कि टिड्डियां हैं बड़ी चटोरी। ढेर होती जा रही हैं, पर मरते-मरते लहलहाती फसलों को झटपट चट करने में लगी हैं।

टिड्डियों को खदेड़ने के लिए कई हेलिकॉप्टरों का इंतजाम

यह भी खबर आ रही है कि सरकार ने टिड्डियों को खदेड़ने के लिए कई हेलिकॉप्टरों का इंतजाम भी किया हुआ है। पर आपदाग्रस्त किसानों को नहीं पता कि इनसे सरकार का क्या काम लेगी। रसायन का छिड़काव करेगी या टिड्डियों के कानों में कानफोड़ू गीत-संगीत बजवाएगी। एक तजुर्बेकार काश्तकार को तो यह कहते सुना गया कि सरकार बहादुर हेलिकॉप्टर पर सपत्नीक सवार होकर, उसी तरह हवाई निरीक्षण पर निकलेंगे जैसे बाढ़ आदि के मौके पर वे अक्सर एरियल पिकनिक मनाने जाते रहे हैं।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]