नई दिल्ली [अनु कुमारी]। सिविल सेवा परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल करने के बाद आज जब देश भर से लड़कियों और महिलाओं के फोन यह पूछने के लिए आते हैं कि ऐसी उपलब्धि कैसे अर्जित की जा सकती है तो खुशी होती है कि मेरी सफलता उन्हें प्रेरणा प्रदान कर रही है और शादी होने अथवा मां बनने के बाद भी वे अपने सपने पूरे करने के बारे में सोच रही हैं। वे अपने सपने साकार कर सकें, इसके लिए समाज को उन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है। उनकी शिक्षा के उचित प्रबंध करने के साथ ही उनकी सुरक्षा का माहौल बेहतर करने की सख्त जरूरत है। लड़कियों और महिलाओं के आगे बढ़ने के लिए समाज का नजरिया बदलना जरूरी है। यह काम शिक्षा के प्रसार और जागरूकता को फैलाकर ही किया जा सकता है। हरियाणा में लड़कियां हर क्षेत्र में बेहतर कर रही हैं तो इसका एक कारण यही है कि पहले के मुकाबले माहौल बेहतर हुआ है।

मुझे याद है कि जब मैं सोनीपत में आठवीं-दसवीं में पढ़ती थी तब के मुकाबले माहौल काफी कुछ बदला है। तब मेरा ध्यान पढ़ाई में ही लगा रहता है। घर का माहौल खुशनुमा था। मुझे कभी ट्यूशन की जरूरत नहीं पड़ी। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद मेरा इरादा एमबीबीएस करने का था और मैंने बिना कोचिंग के ही मेडिकल परीक्षा की तैयारी करने का फैसला भी किया। शायद यह पर्याप्त नहीं था या फिर नियति को कुछ और मंजूर था। एमबीबीएस में सेलेक्शन न होने के बाद मैंने दिल्ली आकर बीएससी करने का फैसला किया और हिंदू कॉलेज में एडमीशन लिया। यहां आने पर मुझे कल्चरल शॉक सा लगा। एक तो अंग्रेजी बोलने में दक्ष न होने के कारण मैं कुछ-कुछ हीनभाव से ग्रस्त थी और दूसरे मैंने महसूस किया कि मेरे पहनावे के कारण मुझसे कन्नी काटी जाती है। अच्छी बात यह रही कि बीएससी की पढ़ाई के दौरान मुझे कुछ सहेलियां मिलीं और मेरा एक्सपोजर भी हुआ।

बीएससी करने के बाद मैंने नागपुर से एमबीए किया। शुरुआत में घर-परिवार के लोगों की कमी महसूस हुई, लेकिन वहां का माहौल अच्छा था इसलिए कोई खास समस्या नहीं आई। धीरे-धीरे मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ा और आत्मनिर्भरता का भाव भी मजबूत हुआ, लेकिन उस दौरान सिविल सेवा परीक्षा देने का ख्याल नहीं आया। एमबीए की पढ़ाई के बाद मेरी पहली नौकरी मुंबई में आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल म्युचुअल फंड में लगी। इस नौकरी ने आर्थिक सुरक्षा प्रदान की और साथ ही एजूकेशन लोन चुकाने में भी मदद की। कुछ समय बाद मैंने गुड़गांव में अवीवा लाइफ इंश्योरेंस कंपनी ज्वाइन की। इसके बाद 2012 में मेरी शादी हो गई, लेकिन मैंने अपनी नौकरी जारी रखी। कुछ समय बाद नौकरी से मेरा मन उचटने लगा। ऐसा लगने लगा जैसे मैं केवल पैसे कमाने के लिए जी रही हूं। एक तरह की निरर्थकता का बोध होने लगा। इसी दौरान यह विचार आया कि सिविल सेवा में जाकर जीवन को कुछ सार्थक बनाया जा सकता है और समाज के लिए कुछ बेहतर किया जा सकता है।

इस बारे में जब परिवार के लोगों को बताया तो सभी ने उत्साहवद्र्धन किया, लेकिन कुछ ने आगाह भी किया कि अच्छे से सोच लो, केवल दो मौके ही मिलने हैं। थोड़ा डर भी लगा कि अगर सफलता नहीं मिली तो लोग क्या कहेंगे? मैंने एक विकल्प भी सोच रखा था और वह था शिक्षक बनने का, लेकिन मन में यह भरोसा भी था कि मैं सिविल सेवा परीक्षा पास कर लूंगी। इसके बाद मैंने घर-परिवार से दूर मौसी के पास गांव में रहकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने का फैसला किया। हालांकि गांव में अंग्रेजी अखबार नहीं आते थे, लेकिन मैंने अॉनलाइन पढ़ाई शुरू की। इससे समय की बचत भी हुई। पति और बेटे से दूर रहना मुश्किल था। चूंकि बेटा छोटा था और मैं उसके बर्थडे पर भी उसके पास नहीं जा सकी इसलिए भावनात्मक रूप से खुद को संभाले रखना मुश्किल था। आम तौर पर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी किसी कोचिंग के जरिये की जाती है, लेकिन मुझे अपने पर भरोसा था और फिर अॉनलाइन माध्यम कोचिंग की भरपाई करने में सक्षम था। प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में सफलता के बाद इंटरव्यू को लेकर हिचक इसलिए नहीं थी, क्योंकि मैं कॉरपोरेट कल्चर से परिचित थी। हालांकि इंटरव्यू के दौरान मैं तीन सवालों के जवाब नहीं दे पाई, लेकिन मैं संयत बनी रही। इंटरव्यू बोर्ड का रवैया भी सकारात्मक था।

मुझे सफलता का भरोसा तो था, लेकिन यह नहीं सोचा था कि एक करिश्मा सा हो जाएगा और मुझे सिविल सेवा परीक्षा में देश भर में दूसरा स्थान मिलेगा। मुझे लगता है कि मेरी मेहनत और लगन का ऐसा परिणाम भगवान की कृपा से मिला। बतौर आइएएस अभी कुछ कहना कठिन है, लेकिन इतना कह सकती हूं कि शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में सुधार के साथ महिलाओं की सुरक्षा मेरी प्राथमिकता में होगा। दरअसल महिला सुरक्षा सबके एजेंडे में होना चाहिए। इससे ही हमारे देश में लड़कियों और महिलाओं के लिए माहौल और सुरक्षित बनेगा। आज इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि इस माहौल को बेहतर बनाने की जरूरत है। यह बेहतर माहौल ही लड़कियों को उनके सपने पूरे करने में मददगार बनेगा।

(लेखिका ने इस वर्ष सिविल सेवा परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया है)