[ रमेश दुबे ]: बिजली क्षेत्र में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि बिजली के मामले में देश बल्ब जलाने के सीमित दायरे से आगे निकल गया। बिजली उत्पादन, आपूर्ति और हर गांव तक बिजली पहुंचाने में मिली अभूतपूर्व कामयाबी से उत्साहित मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में अब देश के हर घर को सातों दिन चौबीसों घंटे रोशन करने की कवायद में जुट गई है। इसके लिए सरकार प्रीपेड रीचार्ज कूपन वाली रणनीति अपना रही है। इसके तहत अगले तीन वर्षों में देश के समूचे बिजली क्षेत्र में प्रीपेड मीटर लगा दिए जाएंगे।

मोदी सरकार की बिजली क्रांति

पहले मीटर रीचार्ज कराइए और फिर बिजली जलाइए। देश में हुई बिजली क्रांति को देखते हुए मोदी सरकार समूचे परिवहन तंत्र को पेट्रोल-डीजल के बजाय बिजली आधारित करने जा रही है। गौरतलब है कि 70 फीसद डीजल और 99 फीसद पेट्रोल की खपत परिवहन क्षेत्र में होती है। इसी को देखते हुए सरकार ने 2020-21 तक रेलवे के समूचे ब्रॉडगेज नेटवर्क के विद्युतीकरण का लक्ष्य रखा है।

डीजल इंजनों की खरीद पर रोक

इसी के साथ रेलवे ने इस साल से डीजल इंजनों की खरीद पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। ऐसा होने पर भारतीय रेलवे दुनिया का पहला ऐसा रेल नेटवर्क बन जाएगा जो सौ प्रतिशत विद्युतीकृत होगा। इससे रेलवे को हर साल 2.8 अरब लीटर डीजल की बचत होगी जिससे 13000 करोड़ रुपये की दुर्लभ विदेशी मुद्रा बचेगी। विद्युतीकरण पूरा होने पर रेलवे की रफ्तार भी 10.15 प्रतिशत बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर मालगाड़ियां भी बिजली वाले इंजन से चलेंगी। रेल लाइनों के विद्युतीकरण के साथ-साथ सरकार ने 2030 तक कुछ वाहनों के 30 प्रतिशत को बिजली आधारित करने का लक्ष्य रखा है। इसे बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री ने बजट में इलेक्ट्रिक वाहनों पर जीएसटी की दर को 12 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत करने के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वाले ग्राहकों को डेढ़ लाख रुपये के ब्याज पर आयकर छूट देने की घोषणा की है।

इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में भारत पीछे

इसके अलावा इन वाहनों के कुछ पुर्जों को सीमा शुल्क से भी मुक्त किया जा रहा है। नीति आयोग पहले ही कह चुका है कि 2022 के बाद से देश में 150 सीसी से कम क्षमता के केवल बिजली चालित दोपहिया और 2023 के बाद सिर्फ बिजली से चलने वाले तिपहिया वाहनों का ही निर्माण होगा। यात्री कारों के लिए यह समय सीमा 2030 रखी गई है। यह ध्यान रहे कि इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में भारत अभी बहुत पीछे है। इलेक्ट्रिक व्हीकल आउटलुक-2019 के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में जहां चीन ने 2.6 करोड़ इलेक्ट्रिक दोपहिया का उत्पादन किया वहीं भारत में यह आंकड़ा महज एक लाख वाहन का है। चीन की सड़कों पर जहां 25 करोड़ इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन दौड़ते हैं जबकि भारत में यह संख्या महज छह लाख है।

इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दे रही मोदी सरकार

इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने 2015 में फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल यानी फेम शुरू किया था। इसे मिली कामयाबी को देखते हुए सरकार ने फेम के दूसरे चरण को मंजूरी दे दी है। इसके यानी फेम-2 के तहत सरकार ने देश के 64 शहरों में आवागमन के लिए 5585 इलेक्ट्रिक बसों को मंजूरी दे दी है। फेम-2 के अंतर्गत सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद को सस्ता बनाने और चार्जिंग स्टेशनों की पर्याप्त व्यवस्था पर काम कर रही है। सरकार देश भर के पेट्रोल पंपों और गैस स्टेशनों पर चार्जिंग स्टेशन लगा रही है। हाल में लखनऊ में देश का सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक बस चार्जिंग स्टेशन बना है। सरकार बिजली से चलने वाले वाहनों को अनिवार्य करने से पहले देश को बैटरी विनिर्माण की धुरी बनाना चाहती है। मोदी सरकार इस बात से वाकिफ है कि इलेक्ट्रॉनिक सामान और मोबाइल क्षेत्र में समय से नीतिगत बदलाव न करने का ही नतीजा है कि आज भारत सोलर सेल वैफर्स इलेक्ट्रॉनिक एवं मोबाइल उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक बना हुआ है।

इलेक्ट्रिक वाहनों का हब बनाने का रोडमैप पेश

संसद में पेश 2018-19 की आर्थिक समीक्षा में देश को इलेक्ट्रिक वाहनों का हब बनाने का रोडमैप पेश किया गया है। ऐसे वाहनों के प्रोत्साहन में सरकार का पूरा जोर लिथियम इयान बैटरी से चलने वाले वाहनों पर है। सौ साल लंबे सफर के बाद वाहन उद्योग अब आंतरिक दहन वाले इंजन की जगह लिथियम ऑयन बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहन की ओर बढ़ रहा है। दुनिया भर की दिग्गज ऑटोमोबाइल कंपनियां ने पेट्रोल-डीजल वाहनों से तौबा करना शुरू कर दिया है। इसे देखते हुए मोदी सरकार वाहन तकनीक में हो रहे परिवर्तन के साथ कदमताल कर रही है। यदि भारत इस वैश्विक मुहिम में पिछड़ता है तो न सिर्फ वाहन उद्योग एवं निर्यात बल्कि 30 अरब डॉलर सालाना राजस्व देने वाला कलपुर्जा उद्योग भी पिछड़ जाएगा।

इलेक्ट्रिक वाहन लांच करने की तैयारी

यद्यपि देश की प्रमुख कार और बाइक निर्माता कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहन लांच करने की तैयारी कर रही हैं, लेकिन इस दिशा में सबसे बड़ी बाधा कीमत है, लेकिन एलईडी बल्ब का उदाहरण सरकार के लिए प्रेरणा का काम कर है। ध्यान रहे कि प्रारंभ में एलईडी बल्ब बहुत महंगे पड़ते थे, लेकिन जब देश में इनका बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा तब उनकी कीमतों में तेजी से कमी आई। इसी तरह बैटरी रिक्शा और सोलर पंप को मिल रही लोकप्रियता भी सरकार का उत्साह बढ़ा रही है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी पेट्रोलियम पदार्थ आयात करता है। ऐसे में परिवहन क्षेत्र में हो रही बिजली क्रांति से न केवल आयात पर निर्भरता घटेगी, बल्कि पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी। निश्चित रूप से यह भविष्य के लिए किया जा रहा निवेश है।

( लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा में अधिकारी हैैं )