अनंत मित्तल। कारखानों, दफ्तरों एवं दुकानों के संचालन, सेवा शर्तो, पारिश्रमिक, कार्यस्थल की परिस्थितियों एवं श्रमिकों के अधिकारों संबंधी कानूनों में फेरबदल करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने औद्योगिक उत्पादन में तेजी लाने की कवायद की है। ये बदलाव कोविड-19 महामारी से ध्वस्त अर्थव्यवस्था को सुधारने के नाम पर किए गए हैं, जबकि तमाम विपक्षी दल इन्हें असुरक्षित कार्यस्थलों और मजदूरों के शोषण का पर्याय बता रहे हैं।

संसद द्वारा पारित संशोधनों में पेशेगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य परिस्थिति संहिता 2020 के तहत किसी संस्थान में कार्यरत कामगारों के उक्त हितों एवं संबद्ध मामलों से संबंधित नियमों एवं कानूनों को एकीकृत किया गया है। इस संहिता के अंतर्गत सरकार ने विभिन्न स्थानों पर एक ही लाइसेंस के जरिये ठेकेदारों को ठेका मजदूरी के लिए कामगारों की नियुक्ति की इजाजत दे दी है। अब तक इसके लिए अलग-अलग लाइसेंस की जरूरत पड़ती थी। इस संहिता में ठेका मजदूरों की संख्या भी 20 से 50 तक बढ़ाई गई है। इसके अलावा अब हरेक काम के लिए ठेका मजदूर लगाए जा सकेंगे।

औद्योगिक संबंध संहिता 2020 के संशोधित प्रावधानों के तहत श्रमिक संगठनों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों या उपक्रमों में रोजगार की परिस्थितियों तथा औद्योगिक विवादों की जांच एवं निष्पादन संबंधी कानूनों को एकीकृत किया गया है। अब 300 कर्मचारियों वाली कंपनियां भी जब चाहे अपने कर्मचारियों की छंटनी कर सकेंगी। इसके लिए सरकार से अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी यानी नौकरी पर रखना और निकालना पूरी तरह कंपनी मालिकों के हाथ में है। विरोधियों का कहना है कि महामारी से फैली चौतरफा बेरोजगारी के बीच मजदूरों को उनके रहे-सहे अधिकारों से भी वंचित करके सरकार ने अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता बेनकाब कर दी। हालांकि सरकार इनकी बिना पर आने वाले निवेश के जरिये बड़ी संख्या में रोजगार पैदा होने के प्रति आशान्वित है।

इसके तहत तमाम कामगारों को समान सामाजिक सुरक्षा देने का दावा सरकार कर रही है। इनमें अधिकांश असंगठित कामगार शामिल हैं। इन असंगठित कामगारों की संख्या देश में करीब 47 करोड़ है, जो कुल कामगारों का लगभग 93 फीसद है। श्रम मंत्रलय के अनुसार बिना सरकारी इजाजत कारखाना मालिकों को छंटनी के अधिकार की सीमा 100 से तीन गुना बढ़ाकर 300 करने के प्रस्ताव का अनुमोदन विभाग की स्थायी संसदीय समिति ने भी किया है। मंत्रलय का दावा है कि इसके अलावा कामगारों के सभी लाभ एवं अधिकार ज्यों के त्यों हैं। दूसरी ओर एक तथ्य यह भी है कि अब कामगारों को छंटनी से पहले नोटिस तो मिलेगा, मगर उसकी सुनवाई बेनतीजा रहने की भी आशंका है। हां, जितने साल उन्होंने काम किया उस दौरान सालाना 15 दिन के हिसाब से उन्हें मुआवजा मिलेगा।

औद्योगिक संबंध संहिता में री-स्किलिंग यानी कुशलता में बदलाव कोष के तहत 15 दिन का वित्तीय लाभ देने का प्रावधान किया गया है। श्रम मंत्रलय का दावा है कि अधिक कामगारों की छंटनी का हक देने पर उन्हें काम से हटाने का कोई आंकड़ा सामने नहीं आया। मंत्रलय ने इससे कारखानों को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने का अवसर मिलने की उम्मीद जताई है। मंत्रलय के अनुसार, निजी प्रतिष्ठानों में 100 कामगारों तक छंटनी का हक सीमित रहने से रोजगार के अवसर बढ़ने में दिक्कत आ रही थी।

राजस्थान में बढ़ी कारखानों की संख्या : राजस्थान में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने वर्ष 2014 में ही 300 कामगारों वाले प्रतिष्ठानों को छंटनी का हक दे दिया था जिससे वहां बड़े कारखानों की संख्या बढ़ी है। अब तक देश के कुल 15 राज्य छंटनी की सीमा बढ़ाकर 300 कर्मचारी कर चुके हैं। निजी प्रतिष्ठानों को सीमित अवधि के लिए कामगारों को रोजगार देने का अधिकार देने की अधिसूचना केंद्र सरकार सहित कुल 14 राज्य जारी कर चुके हैं। मंत्रलय का दावा है कि अब ठेका कामगारों की पगार को ठेकेदार हड़प नहीं सकेंगे। इसके बजाय ठेका मजदूरों को भी ईएसआइ, पीएफ आदि की सुविधा मिलेगी। अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार कानून 1979 खत्म करके उसे पेशागत सुरक्षा स्वास्थ्य संहिता में समाहित किया गया है। हालांकि प्रवासियों के लिए अलग कानून का कोई लाभ तो महामारी से हुए उलट पलायन में कामगारों को कहीं होता भी नहीं दिखा। वरना उन्हें अपने गांव नहीं लौटना पड़ता।

इस संहिता में ठेका मजदूरों के साथ साथ नियमित रोजगार पाने वालों को भी प्रवासी कामगार का दर्जा मिल गया तथा वह आधार कार्ड से इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। संहिता में प्रवासी एवं असंगठित मजदूरों के आंकड़े जमा करके उनकी कार्यकुशलता के हिसाब से उन्हें रोजगार तथा सामाजिक सुरक्षा लाभ देने की पहल का भी प्रावधान है। सरकार इन असंगठित मजदूरों के लिए इन आंकड़ों पर आधारित कल्याण नीतियां भी बना सकती है। प्रवासी मजदूरों के लिए हेल्पलाइन भी चालू की जाएगी जिससे मुश्किल परिस्थिति में वे मदद की गुहार लगा सकेंगे। वन नेशन वन राशन कार्ड का फायदा भी उन्हें मिलेगा।

कई राज्यों ने किया लागू : श्रमिक संगठनों के पंजीकरण की प्रक्रिया विकेंद्रित कर दी गई है। अब हड़ताल के लिए 14 दिन पूर्व नोटिस देना होगा जिसे सरकार बातचीत से समस्या हल करने के लिए मिला समय बता रही है। संशोधित श्रम कानून उत्तर प्रदेश समेत गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, असम, गोआ, हिमाचल प्रदेश और ओडिशा में लागू किए जा चुके हैं। अब कामगारों को एक पाली में आठ की जगह 12 घंटे तक काम करना पड़ सकता है। फैक्ट्री मालिक हफ्ते में 72 घंटे ओवरटाइम भी करा सकेंगे। सवाल यह है कि दिन के 24 घंटे में कोई 12 घंटे की शिफ्ट और फिर 12 घंटे ओवरटाइम कैसे कर पाएगा? ठेके पर नौकरी वाले लोगों की छंटनी, काम के दौरान हादसे का शिकार होने और समय पर वेतन देने जैसे नियमों को छोड़ बाकी नियमों से तीन साल तक छूट दी गई है।

अब केवल भवन एवं अन्य निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा शर्तो का विनियमन) अधिनियम, 1996 लागू होगा। साथ ही उद्योगों को कामगार क्षतिपूíत अधिनियम और बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 का पालन करना होगा। उद्योगों पर अब पारिश्रमिक भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा पांच के तहत बाल मजदूरी और महिला मजदूरों से जुड़े प्रावधान लागू रहेंगे। बाकी सभी कानून अगले एक हजार दिनों के लिए स्थगित किए गए हैं। विवादों के निपटारे, मजदूरों के स्वास्थ्य, काम करने की अवधि और काम की सुरक्षा, ट्रेड यूनियन को मान्यता संबंधी कानून निरस्त हैं। उद्योगों में अगले तीन माह तक अपनी सुविधानुसार काम कराने की सभी राज्य और केंद्रीय इकाइयों में छूट है।

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के अनुसार राज्य में कम से कम 1,200 दिन कार्यरत रहने का वादा करने वाली सभी नई परियोजनाओं अथवा पिछले 1,200 दिनों से काम कर रही परियोजनाओं को श्रम कानूनों के सभी प्रावधानों से छूट रहेगी। फिर भी उन्हें न्यूनतम मजदूरी के भुगतान, सुरक्षा मानदंडों तथा औद्योगिक दुर्घटनाओं में श्रमिकों को पर्याप्त मुआवजा देने संबंधी कानूनों का पालन करना पड़ेगा। चीन से अपना कारोबार स्थानांतरित करने को उत्सुक वैश्विक कंपनियों को गुजरात में अपना उद्यम शुरू करने के लिए राज्य सरकार उनसे संपर्क कर रही है।

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