[ संजय गुप्त ]: बीते सप्ताह एक दिन के जनता कर्फ्यू के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन का एलान किया वह अनिवार्य हो गया था। इस लॉकडाउन की आवश्यकता तभी महसूस होने लगी थी जब जनता कफ्र्यू जारी था। वैसे तो इस जनता कर्फ्यू के दौरान देश की जनता ने अभूतपूर्व संयम और एकजुटता का परिचय दिया, लेकिन कुछ स्थानों पर लोगों ने लापहरवाही भी दिखाई। इसी कारण देश के करीब 80 जिलों में लॉकडाउन करना पड़ा।

सोशल डिस्टेंसिंग के प्रति लापरवाही के कारण पीएम को करना पड़ा 21 दिन का लॉकडाउन

इस दौरान भी कई लोग सोशल डिस्टेंसिंग यानी एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बरतने के प्रति लापरवाह दिखे। इसके अगले दिन प्रधानमंत्री जब एक बार फिर देश को संबोधित करने आए तो उन्होंने इस लापरवाही पर क्षोभ व्यक्त किया और इसी के साथ 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा करते हुए लोगों को समझाया और यह कहकर चेताया भी कि हर किसी को अपने घर पर रहते हुए एक लक्ष्मण रेखा खींचनी है, अन्यथा वायरस के घर के भीतर प्रवेश कर जाने का खतरा है। चूंकि यह खतरा वास्तविक है इसलिए कोई कुछ भी कहे, 21 दिन का लॉकडाउन जरूरी हो गया था।

यूरोपीय देशों और अमेरिका से सबक लेने की जरूरत, जहां कोरोना वायरस तेजी से बढ़ रहा

यूरोपीय देशों और अमेरिका में कोरोना वायरस का संक्रमण जिस तेजी से बढ़ता जा रहा है उससे हमें सबक लेने की सख्त जरूरत है, लेकिन यह देखने में आ रहा है कि लॉकडाउन के दौरान कई लोग अपेक्षित संयम दिखाने से इन्कार कर रहे हैं। कोई अपनी जरूरत का सामान लेने के बहाने बाहर निकल रहा है तो कोई बेवजह घरों से बाहर आ रहा है।

बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर घर-गांव लौटने के कारण कर रहे हैं लॉकडाउन का उल्लंघन

एक बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर और कामगार शहरों से अपने घर-गांव लौटने की कोशिश में लॉकडाउन की बंदिशों का उल्लंघन कर रहे हैं। यह राहत की बात है कि राज्य सरकारें एक ओर जहां आम जनता को उसकी जरूरत का सामान पहुंचाने के लिए हरसंभव कदम उठा रही हैं वहीं दूसरी ओर वे शहरों से गांव लौटते मजदूरों-कामगारों को वहीं पर रोकने एवं ठहराने की व्यवस्था कर रही हैं जहां पर वे हैं। केंद्र सरकार भी इस दिशा में सक्रिय है।

कोरोना वायरस के कहर ने देश के गरीब तबके को मुश्किल में डाल दिया

केंद्र और राज्य सरकारों की यह सक्रियता जरूरी थी, क्योंकि यदि गांव लौटते लोगों के बीच संक्रमण फैला तो एक अन्य समस्या खड़ी हो जाएगी। चूंकि कोरोना वायरस के कहर ने देश के गरीब तबके को बेहद मुश्किल में डाल दिया है इसलिए उनका विशेष ध्यान रखना ही होगा।

लॉकडाउन के दौरान पीएम मोदी ने गरीब- बेसहारा लोगों को दिया राहत पैकेज

यह अच्छा हुआ कि मोदी सरकार ने लॉकडाउन के बाद बिना समय गंवाए एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की। इस पैकेज को इस तरह बनाया गया है कि गरीब- बेसहारा लोगों को हरसंभव राहत मिले और साथ ही मध्य वर्ग की भी समस्याएं कम हों। राहत पैकेज के तहत करीब 80 करोड़ गरीबों को हर महीने मुफ्त अनाज, 20 करोड़ जनधन महिला खाताधारकों को तीन माह तक 500 रुपये देने की तो घोषणा की ही गई, छोटे किसानों, बुजुर्गों, दिव्यांगों, विधवाओं, मनरेगा मजदूरों आदि के लिए भी खजाना खोला गया। उज्ज्वला योजना के तहत आने वालों को मुफ्त गैस सिलेंडर देने के साथ एक उल्लेखनीय काम स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कर्मियों को 50 लाख रुपये का बीमा कवर देने का है।

लोगों की जान बचाने के लिए दिन-रात एक किए हुए स्वास्थ्यकर्मियों की चिंता करनी चाहिए

परीक्षा की इस कठिन घड़ी में स्वास्थ्यकर्मियों का विशेष ध्यान रखा ही जाना चाहिए, क्योंकि वही लोगों की जान बचाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। स्वास्थ्यकर्मियों के साथ आवश्यक सेवाओं से जुड़े कर्मी भी एक तरह से जान जोखिम में डालकर अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं। इन सबका उत्साहवर्धन भी होना चाहिए और इसकी चिंता भी की जानी चाहिए कि उन्हें कोई समस्या न आने पाए। इसे लेकर सरकार के साथ समाज को भी संवेदनशील होना होगा। यही हमारे असली नायक हैं। इन नायकों में पुलिसकर्मी भी शामिल हैं, जो हर वांछित काम बेहद मुस्तैदी से कर रहे हैं। ये सभी अभिनंदन के पात्र बनने चाहिए। 

कोरोना वायरस की जंग में रिजर्व बैंक ने भी दी लोगों को आर्थिक राहत

राहत पैकेज की घोषणा के अगले ही दिन रिजर्व बैंक सामने आया और उसने ऐसे कई कदम उठाए जिनसे अर्थव्यवस्था पर दबाव कुछ कम हो और साथ ही लोगों की आर्थिक राहत भी मिले। उसने कर्ज की किस्त चुकाने के लिए तीन माह की मोहलत देने के उपाय किए, कर्ज सस्ता किया और साथ ही करीब तीन लाख 74 हजार करोड़ रुपये बैंकिंग व्यवस्था में डाले। इससे वेतन भोगी वर्ग के साथ कारोबारी तबके को भी राहत मिलेगी। यह राहत देना जरूरी था, क्योंकि कोरोना वायरस के कारण जिस मंदी की आशंका उभर आई थी वह अब एक हकीकत बन चुकी है।

दुनिया भले ही मंदी के दौर में प्रवेश कर चुकी, लेकिन पहली प्राथमिकता लोगों की जान बचाना है

दुनिया मंदी के दौर में प्रवेश कर चुकी है, लेकिन पहली प्राथमिकता लोगों की जान बचाना ही होना चाहिए। शायद इसीलिए भारतीय प्रधानमंत्री ने जी-20 देशों की बैठक में यह कहा कि आर्थिक हितों के बजाय मानवता का बचाव केंद्रीय बिंदु होना चाहिए। इस बैठक की पहल भारतीय प्रधानमंत्री ने ही की थी। ऐसी ही पहल उन्होंने दक्षेस देशों के बीच सहयोग को लेकर भी की थी।

जी-20 बैठक में पीएम मोदी ने एक साझा चिकित्सा व्यवस्था बनाने की जरूरत पर बल दिया

जी-20 की बैठक में पीएम मोदी ने यह भी रेखांकित किया कि वैश्विक स्तर पर एक साझा चिकित्सा व्यवस्था बनाने की जरूरत है। यह जरूरत इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि कोरोना के चलते हालात खराब हो रहे हैं। चीन तो किसी तरह कोरोना संकट से बाहर आ गया, लेकिन यूरोप और अमेरिका सरीखे कहीं संपन्न देश इससे पार पाते नहीं दिख रहे हैं। ये देश लॉकडाउन ढंग से नहीं कर पाए तो इसका एक कारण लोगों का असहयोग भी रहा। लोकतांत्रिक अधिकारों का हवाला देकर लोगों ने सरकारी निर्देशों की अनदेखी करने की जो भारी भूल की उसके ही बुरे नतीजे उन्हें भुगतने पड़ रहे हैं। यह संतोष की बात है कि भारत में आम जनता की ओर से ऐसा रवैया नहीं दिखाया जा रहा।

लॉकडाउन- लंबे समय तक संयम और अनुशासन का परिचय देना है

अपने देश में अभी लॉकडाउन के चार दिन ही बीते हैं। अभी लंबे समय तक संयम और अनुशासन का परिचय देना है। इसी के साथ खुद को मानसिक रूप से इसके लिए मजबूत भी करना है कि हम सब मिलकर कोरोना वायरस से उपजी महामारी को परास्त करके रहेंगे।

संयम और अनुशासन के साथ मानसिक मजबूती भी वक्त की जरूरत है

संयम और अनुशासन के साथ मानसिक मजबूती भी वक्त की जरूरत है। 21 दिन के लॉकडाउन को सफल बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें दलगत सीमाओं को लांघते हुए एकजुट होकर युद्धस्तर पर जो कुछ कर रही हैं उसमें अपना सहयोग देना हमारा फर्ज बनना चाहिए। जैसे राजनीतिक दल अपने मतभेद भुलाकर एकजुट हो गए हैं वैसे ही जनता को भी एकजुट हो जाना चाहिए।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]