अभिषेक कुमार सिंह। अब तक जिन देशों के पास तेल और अमेरिकी डॉलर जैसी विदेश मुद्रा के बड़े भंडार होते थे, वे ही अमीर माने जाते थे, लेकिन पिछले कुछ अरसे से यह मिथक टूटता नजर आ रहा है। इसे असल में अब आभासी मुद्रा (वर्चुअल करेंसी) से चुनौती मिल रही है, जो ‘क्रिप्टोमाइनिंग’ तकनीक से पूरे विश्व में फैलती जा रही है। इनमें भी सबसे ज्यादा चर्चा बिटकॉइन नामक वर्चुअल करेंसी की है। हालांकि अब दुनिया के चुनिंदा देशों और स्टारबक्स तथा माइक्रोसॉफ्ट जैसी कुछ कंपनियों में एक समानांतर मुद्रा के तौर पर बिटकॉइन एक स्वीकार्य करेंसी है, पर अभी भी कई देश अपने यहां चोरी-छिपे चल रहे इसके कारोबार को मान्यता नहीं देते। जैसे कि हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल, 2018 में रिजर्व बैंक के उस सर्कुलर पर रोक लगा दी, जिसमें बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को वर्चुअल करेंसी में डील करने या डील करने की सुविधा देने की बात थी।

इधर इस आभासी मुद्रा की चर्चा जिन वजहों से उठी है, उसमें दुनिया के सबसे धनी शख्स एलन मस्क की कंपनी टेस्ला की ओर से बिटकॉइन में 1.5 अरब डॉलर का निवेश किया जाना है। इस निवेश ने बिटकॉइन को एक नई बुलंदी पर पहुंचा दिया है। एक बिटकॉइन की कीमत 50 हजार डॉलर (37 लाख भारतीय रुपये) को पार कर गई है। अभी भी इसमें तेजी का जो माहौल है, उससे अनुमान यह लगाया जा रहा है कि कुछ ही वर्षो में एक बिटकॉइन के बदले एक करोड़ रुपये मिल जाएंगे। दावा है कि भारतीय निवेशकों ने बिटकॉइन समेत अन्य क्रिप्टोकरेंसी में कुल मिलाकर करीब 1.5-2.0 करोड़ डॉलर तक का निवेश किया हुआ है। हालांकि अभी इन सारे निवेशकों की सांसें अटकी हुई हैं। इसकी दो बड़ी वजहें हैं। पहली वजह इस सूचना का सामने आना है कि भारत सरकार बिटकॉइन और इस जैसी दूसरी आभासी मुद्राओं पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है।

हाल में (10 फरवरी, 2021 को) राज्य सभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि एक हाई लेवल कमेटी ने उन सभी क्रिप्टोकरेंसी को बैन करने का सुझाव दिया है, जिन्हें सरकार यानी रिजर्व बैंक जैसे सरकारी केंद्रीय बैंक जारी नहीं करते हैं। उनके अलावा वित्त राज्य मंत्री भी इस बात पर जोर दे चुके हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी के पास क्रिप्टोकरेंसी को रेगुलेट करने का कोई तरीका नहीं है। इसलिए देश में इसके कारोबार को इजाजत नहीं मिलनी चाहिए। दूसरी बड़ी वजह बिटकॉइन की कीमतों में होने वाली उठापटक है। भले ही हाल में इसकी कीमतें नई बुलंदियों पर पहुंची हैं, लेकिन किसी रोज यदि इसकी बिकवाली शुरू हुई तो इसमें भारी गिरावट से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। हालांकि हर तरह के निवेश में कोई जोखिम अवश्य होता है, ऐसे में पूंजी लगाने के इच्छुक लोग बिटकॉइन में निवेश का रास्ता देने का आग्रह सरकार से कर रहे हैं। उनका एक तर्क है कि ऐसी मुद्राओं पर कोई कानूनी फ्रेमवर्क बनने से पहले के निवेशों को छूट दी जाए। ऐसी व्यवस्था को वाणिज्य की भाषा में निवेश को ग्रांडफादर करना कहते हैं। यह एक कानूनन वैध विकल्प है, लेकिन इसका फैसला सरकार को लेना है।

कहां से आए बिटकॉइन : आज की तारीख में तकरीबन हर देश के पास अपनी मुद्रा है। उस मुद्रा पर देश के प्रमुख बैंक का नियंत्रण होता है। देश की अर्थव्यवस्था की ताकत के हिसाब से उस देश की मुद्रा की कीमत भी तय होती है। हालांकि इस वक्त अमेरिकी डॉलर को विश्व मुद्रा का रुतबा हासिल है, लेकिन उस पर भी अमेरिकी सरकार और वहां के फेडरल बैंक का नियंत्रण है। ऐसे में दुनिया की सारी मुद्राएं नियमों-कानूनों से बंधी हैं और लोगों को उनके जरिये लेनदेन करते वक्त कानूनों एवं शर्तो का पालन करना पड़ता है। ऐसे में बिटकॉइन के रूप में एक ऐसी मुद्रा के बारे में सोचा गया, जो किसी भी सरकार और बैंक के नियंत्रण से बाहर हो और उस पर सरकारी नियमों-कानूनों की बंदिश न हो। वर्ष 2009 में डिजिटल यानी वर्चुअल करेंसी के रूप में बिटकॉइन अस्तित्व में आए। बताया गया कि इसे सातोशी नाकामोतो ने बनाया है। हालांकि सातोशी एक छद्म नाम था, क्योंकि वर्ष 2015 में एक ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायी क्रेग राइट ने दावा किया कि वही असल में बिटकॉइन का आविष्कारक है।

उल्लेखनीय है कि नोट या सिक्के जैसा न होकर बिटकॉइन एक तरह के कंप्यूटर कोड होते हैं। इन कोड्स की खरीद-फरोख्त इंटरनेट के जरिये कंप्यूटर पर ही होती है और खरीदने के बाद इन्हें ऑनलाइन वॉलेट में स्टोर करके रखा जा सकता है। इस क्रिप्टोकरेंसी को कंप्यूटर पर कम्युनिटी आधारित सॉफ्टवेयर के जरिये बनाया यानी किसी के नाम जारी (इश्यू) किया जाता है। मौजूदा व्यवस्था के तहत हर 10 मिनट पर नए बिटकॉइन बनाए जाते हैं। मौजूदा मॉडल के मुताबिक दुनिया में कुल 2.1 करोड़ बिटकॉइन बनाए जाने हैं, जिनमें से 1.5 करोड़ बिटकॉइन अभी चलन में हैं। चूंकि एक बिटकॉइन को दशमलव के आठवें हिस्से तक विभाजित किया जा सकता है इसलिए कोई व्यक्ति कम धनराशि के साथ भी बिटकॉइन में निवेश कर सकता है।

इंटरनेट पर मौजूद कई एक्सचेंज वेबसाइटें प्रचलित प्रमुख करेंसियों के बदले में बिटकॉइन उपलब्ध कराती हैं। कंप्यूटर पर इसका सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने पर एक खास कोड मिलता है। इसे बिटकॉइन एड्रेस कहा जाता है। रकम की लेनदेन यानी ट्रांजेक्शन में यह कोड ही सबकुछ होता है, क्योंकि यह बैंक अकाउंट की तरह काम करता है। बिटकॉइन से किसी भी तरह की खरीदारी या लेनदेन के लिए यह कोड जरूरी है। अगर आपको किसी को रकम भेजनी है तो उसका बिटकॉइन एड्रेस आपके पास होना चाहिए। अगर आपको रकम हासिल करनी है तो आपको अपना एड्रेस उसे भेजना होगा। मोबाइल फोन पर मौजूद सॉफ्टवेयर या कंप्यूटर पर इंस्टॉल किए गए प्रोग्राम से इस कोड के जरिये रकम भेजी जा सकती है। एक बार बिटकॉइन जेनरेट होने के बाद इस कोड को यूजर अपनी हार्ड ड्राइव या पेन ड्राइव में सेव कर सकते हैं या अपने वर्चुअल वॉलेट में रख सकते हैं। इसके अलावा कागज पर कोड को प्रिंट करके भी सुरक्षित रखा जा सकता है। बिटकॉइन चूंकि कंप्यूटर के माध्यम से बनाई यानी क्रिएट की जाने वाली क्रिप्टोकरेंसी है इसलिए इसे बनाना काफी मुश्किल है। बिटकॉइन बनाने की पूरी प्रक्रिया माइनिंग कहलाती है। इसे माइनिंग कहने का आशय यह साबित करना है कि इसे बनाना किसी खदान में खोदाई करने जितना ही मुश्किल काम है।

हालांकि भारत सहित पूरी दुनिया में अभी बिटकॉइन से बहुत ज्यादा चीजों की खरीद-फरोख्त नहीं की जा रही है। फिर भी बिटकॉइन से कोई सामान खरीदने का पहला उदाहरण पिज्जा खरीद का है। भारत में कंप्यूटर कंपनी डेल, पे-पाल, माइक्रोसॉफ्ट अपनी वस्तुएं खरीदने के लिए एक अरसे तक बिटकॉइन के इस्तेमाल की इजाजत देते रहे हैं। इसके अलावा साल 2017 में जापान में पीच एयरलाइंस ने अपनी उड़ानों की टिकट खरीदने के लिए बिटकॉइन में भुगतान स्वीकार करने की बात कही थी। वहीं कुछ ई-कॉमर्स वेबसाइटों के बारे में दावा किया जाता है कि वे एक्सचेंज के तहत अपने ग्राहकों के लिए ऐसे वाउचर प्रोग्राम चलाती रही हैं, जिनमें बिटकॉइन का इस्तेमाल होता है।

वैसे ध्यान रहे कि बिटकॉइन दुनिया की अकेली क्रिप्टो या वर्चुअल करेंसी नहीं है। दुनिया में इस वक्त करीब 70 वर्चुअल करेंसी अस्तित्व में हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही ज्यादा प्रचलन में हैं या उनके जरिये कुछ लेनदेन होता है। इनमें से कुछ प्रमुख वर्चुअल करेंसी हैं- 

ईथरम : बिटकॉइन के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय करेंसी के रूप में ईथरम या ईथर का नाम लिया जाता है।

रिप्पल : 2012 में बनाई गई इस वर्चुअल करेंसी के बारे में भी दावा है कि इसे खरीदने और बेचने वाले लोगों की गोपनीयता सुरक्षित रहती है।

लाइटकॉइन: मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के ग्रेजुएट और गूगल के एक पूर्व इंजीनियर चार्ली ली ने इसे वर्ष 2011 में बनाया था। खासियत यह है कि

इसमें बिटकॉइन के मुकाबले ज्यादा तेजी से ब्लॉकचेन बनती हैं इसलिए इसमें कोई भी ट्रांजेक्शन तेजी से संपन्न होता है। इनके अलावा जेडकैश, डैश, मोनेरो, लिटेकॉइन आदि अन्य वर्चुअल करेंसियां भी चलन में हैं, पर इनमें वैसी सनसनी नहीं है जैसी बिटकॉइन में देखने को मिली है।

काले कारोबार में इस्तेमाल की आशंका: अभी भले ही टेस्ला ने बिटकॉइन में निवेश किया हो और चंद कंपनियां अपने स्तर पर इस मुद्रा में लेनदेन को मंजूर करती हों, पर बिटकॉइन समेत ज्यादातर क्रिप्टोकरेंसी के साथ यह तोहमत जुड़ी हुई है कि उनका अवैध कारोबारों में इस्तेमाल हो रहा है। कुछेक उदाहरण तो हमारे देश के ही हैं। जैसे जुलाई, 2016 में देश में ड्रग्स (नशीले पदार्थो) की अवैध तस्करी पर नजर रखने वाली एजेंसी एनसीबी (नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) ने दो तरह के आपराधिक सिस्टम को प्रतिबंधित किया था, जिनमें से एक बिटकॉइन से जुड़ा हुआ था।

एनसीबी ने तब बताया था कि ड्रग्स का कारोबार डार्कनेट और अवैध मुद्रा बिटकॉइन के जरिये अंजाम दिया जा रहा है। डार्कनेट इंटरनेट का बेहद गुप्त नेटवर्क है, जिसका इस्तेमाल विशेष सॉफ्टवेयर के जरिये ही किया जा सकता है। ऐसे में वर्चुअल करेंसी बिटकॉइन में हुए लेनदेन का एक सामान्य कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल और पोर्ट के जरिये पता लगाना बेहद मुश्किल हो जाता है। सिर्फ ड्रग्स की खरीद-फरोख्त ही नहीं, बल्कि बिटकॉइन का मनीलांडिंग यानी काले धन को सफेद धन में बदलने की प्रक्रिया में भी काफी इस्तेमाल हो रहा है। भारत में कोई निवेश बिटकॉइन में कर लिया जाए और उस निवेश को दुनिया में कहीं भी जाकर डॉलर में भुना लिया जाए तो उसकी धरपकड़ नहीं हो सकती। हवाला, टैक्स चोरी, मादक पदार्थो की खरीद-फरोख्त, हैकिंग और आतंकी गतिविधियों में बिटकॉइन के बढ़ते इस्तेमाल ने अर्थशास्त्रियों, सुरक्षा एजेंसियों और सरकारों तक की नींद उड़ा दी है। एक बड़ी घटना मई, 2017 की है, जब वानाक्राई नामक कंप्यूटर वायरस (रैंसमवेयर) के साइबर हमलावरों ने 150 देशों के करीब तीन लाख कंप्यूटरों को अपने कब्जे में लेकर (हैक करके) उन्हें छोड़ने के एवज में फिरौती किसी अन्य मुद्रा के बजाय बिटकॉइन में मांगी थी।

[संस्था एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध]