अनिल प्रकाश जोशी।  एक बार फिर आज हम पृथ्वी दिवस मना रहे हैं, ताकि पृथ्वी के प्रति कुछ गंभीरता दिखा सकें। पर सच तो यह है कि आज तक हम पृथ्वी को समझ ही नहीं पाए हैं। उसकी समझ साथ में होती तो आज परिस्थितियां बदतर नहीं हो पातीं, जिसे अब गंभीरता का दर्जा दिया जा रहा है। असल में हमने कभी भी पृथ्वी के बनने और बनाने व इसकी तमाम तरह की प्रक्रियाओं और प्रतिक्रियाओं को कभी भी अपनी शिक्षा व समझ का हिस्सा बनाया ही नहीं। इतना ही नहीं, पृथ्वी को मां का दर्जा क्यों दिया गया, यह कभी हमने अपनी शिक्षा में परोसा ही नहीं। 'माता भूमि:, पुत्रो अहं पृथिव्या:Ó जो कि भारत की संस्कृति और शास्त्रों द्वारा पृथ्वी के विश्लेषण का सूत्र है, उसे बांटा ही नहीं। खुद हम नहीं समझ पाए तो शायद हम अन्य देश और दुनिया को कैसे बांट पाते।

लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले जब एक ब्रह्मांड की घटना जिसे सुपरनोवा का दर्जा दिया जाता है, उसमें सूर्य और पृथ्वी का जन्म हुआ। साथ में लगभग 20 और ग्रह भी अस्तित्व में आए। लेकिन इन सबमें जीवन अगर कहीं संभव था तो वह पृथ्वी में ही था। उसके बहुत से कारणों में यह था कि यहां पानी था, गुरुत्वाकर्षण की दृष्टि में यह बेहतर और सही ग्रह के बीच में था। तीसरी बात सूरज से अधिक दूरी होने के कारण यहां तापक्रम सहनीय होने के साथ सहज जीवन में लाने के लिए सक्षम था और इन्हीं कारणों से पृथ्वी में जीवन पनपा। लेकिन आज हम जिस तरह से पृथ्वी का शोषण कर रहे हैं या तथाकथित विकास के नाम पर अपनी सुविधाओं के रास्ते तैयार कर रहे हैं, यह पृथ्वी को समाप्ति की ओर ले जा सकता है।

पृथ्वी पर पहला जीवन लगभग 3.9 अरब वर्ष पहले अस्तित्व में आया। इस बात के लिए हमें आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए कि पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म महज एक लाख साल पुरानी घटना है और इस प्रजाति को पनपने में भी करीब 20 लाख साल लगे। दरअसल पहले मनुष्य से जुड़ी प्रजाति 20 लाख साल पहले होमियो हिबलिस और फिर रैक्टश के नाम से आई थी, लेकिन करीब 90 साल पहले होमोसेपियन जो वर्तमान मनुष्य है, उसने जन्म लिया और इसी कहानी में करीब 12 हजार साल पहले नई सभ्यता ने जन्म लिया, जहां मनुष्य ने अपने लिए तमाम तरह की सुविधाएं जुटाने की शुरुआत की, जिसे हमने सभ्यता का दर्जा दिया।इस सभ्यता में तब शायद संस्कृति और प्रकृति के प्रति सम्मान भी जुड़ा था, लेकिन इन 12 हजार वर्षों में हमने बहुत कुछ बदल दिया है और पांच हजार साल से हम जीवन की एक नई शैली की बढ़ चले हैं। पृथ्वी की बर्बादी की यात्रा यहीं से आरंभ हुई मानी जाती है।

यह भी वैज्ञानिक तथ्य है कि कितनी भी बड़ी घटना पृथ्वी पर हो जाए और एक बार सारे जीवन खत्म भी हो जाएं, फिर भी जीवन पनपेगा, क्योंकि समुद्र जीवन का सबसे बड़ा कारक है, परंतु वर्तमान मनुष्य जो अपनी जीवन की बेहतरी के लिए इतना लालायित है कि वह विकास के दंश को नहीं देख पा रहा है, उसे ही सोचना होगा कि जिस तरीके से उसकी जीवन शैली विकसित हो रही है, वह उसके अस्तित्व को ही नष्ट कर सकती है।

एक सरल सा आंकड़ा है कि अगर हम 4.6 अरब को 46 वर्षों में बदल दें तो मनुष्य का जन्म मात्र तीन से चार घंटे पहले हुआ और इसी समय करीब 40 से 45 मिनट पहले औद्योगिक क्रांति आई। यही वह समय था जब प्रदूषण और प्रकृति से बड़ी छेड़छाड़ हुई और मात्र इस 40 मिनट में हमने 46 साल की पृथ्वी मां को बर्बाद करना शुरू कर दिया, लेकिन हम भूल गए कि हम पृथ्वी को समाप्त नहीं कर पाएंगे, बल्कि जिस तरीके से हम अपनी जीवन शैली तय कर रहे हैं, हम खुद को समाप्ति की ओर ले जाएंगे।

( पर्यावरण विशेषज्ञ )