[ अवधेश कुमार ]: हमारे देश में कुछ महापुरुषों के नाम और चित्र लेकर कैसे लोगों को भ्रमित किया जा सकता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण डॉ. बाबा साहब भीमराव आंबेडकर हैं। इन दिनों नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए का विरोध करने वाले उनकी तस्वीरें लहाराते देखे जा रहे हैं। वहीं कुछ समय से अनेक दलित और मुस्लिम नेता आपसी गठजोड़ के लिए मीम और भीम के नारे का भी प्रयोग कर रहे हैं। इससे ध्वनि यह निकलती है कि भीम यानी डॉ. आंबेडकर दलितों और मुसलमानों का राजनीतिक और सामाजिक गठजोड़ का सपना देखते थे। उनके अनुसार वह होते तो सीएए का विरोध अवश्य करते, लेकिन यह सच्चाई नहीं है। अगर आप बाबा साहब की कथनी-करनी को देखेंगे तो बिल्कुल अलग ही तस्वीर दिखाई देगी।

अनुसूचित जातियों को पाक में जबरन मुसलमान बनाया जा रहा, आंबेडकर ने 1947 को लिखा

संप्रग सरकार ने वर्ष 2013 में ‘डॉ. बाबा साहब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेस’ नाम से उनके सभी भाषणों एवं लेखन को प्रकाशित किया था। उसके 17वें वॉल्यूम की पृष्ठ संख्या 366 से 369 तक की कुछ पंक्तियों को यहां उद्धृत करना आवश्यक है। 27 नवंबर, 1947 को उन्होंने लिखा कि ‘मुझे पाकिस्तान और हैदराबाद के अनुसूचित जातियों के लोगों की ओर से असंख्य शिकायतें मिल रही हैं और अनुरोध किया जा रहा है कि उनको दुख और परेशानी से निकालने के लिए मैं कुछ करूं। पाकिस्तान से उन्हें आने नहीं दिया जा रहा है और जबरन उन्हें इस्लाम में परिवर्तित किया जा रहा है। हैदराबाद में भी उन्हें जबरन मुसलमान बनाया जा रहा है, ताकि मुस्लिम आबादी की ताकत बढ़ाई जाए।’

आंबेडकर ने लिखा, अनुसूचित जातियों के लिए जैसी स्थिति भारत में है वैसी ही पाकिस्तान में है

वह आगे लिखते हैं, ‘मैं यही कर सकता हूं कि उन सभी को भारत आने के लिए आमंत्रित करूं।’ जैसा हम जानते हैं कि भारत में भी दलितों की स्थिति को लेकर वह चिंतित रहते थे और इसके खिलाफ जितना आक्रोश प्रकट करना चाहिए, वह करते थे। उन्होंने लिखा है कि अनुसूचित जातियों के लिए जैसी स्थिति भारत में है वैसी ही पाकिस्तान में है।

पाक में जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा, भारत में कांग्रेस उनका राजनीतिक धर्म परिवर्तन कर रही

वह यह भी लिखते हैं कि पाकिस्तान में उनका इस्लाम में जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा है तो भारत में कांग्रेस उनका राजनीतिक धर्म परिवर्तन कर रही है। भारत में अनुसूचित जातियों के लिए निराशाजनक संभावनाओं के बावजूद मैं पाकिस्तान में फंसे सभी लोगों से कहना चाहूंगा कि आप भारत आइए।

आंबेडकर पाकिस्तान में फंसे अनुसूचित जाति के लोगों को हर हाल में भारत लाना चाहते थे

पृष्ठ संख्या 368 पर वह लिखते हैं कि ‘जिन्हें हिंसा के द्वारा इस्लाम धर्म में परिवर्तित कर दिया गया है, मैं उनसे कहता हूं कि आप अपने बारे में यह मत सोचिए कि आप हमारे समुदाय से बाहर हो गए हैं। मैं वादा करता हूं कि यदि वे वापस आते हैं तो उनको अपने समुदाय में शामिल करेंगे और वे उसी तरह हमारे भाई माने जाएंगे जैसे धर्म परिवर्तन के पहले माने जाते थे।’ इसे पढ़ने के बाद क्या तथाकथित आंबेडकरवादियों के पास कोई जवाब है? क्या इन पंक्तियों से ऐसा नहीं लगता कि डॉ. आंबेडकर पाकिस्तान में फंसे अनुसूचित जाति के लोगों को हर हाल में भारत लाना चाहते थे?

आंबेडकर ने अनुसूचित जाति के लोगों को पाक से भारत आने के लिए नेहरू को पत्र लिखा था

डॉ. आंबेडकर ने 18 दिसंबर, 1947 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र लिखा था। जिसके अनुसार ‘पाकिस्तान सरकार अनुसूचित जाति के लोगों को भारत आने से रोकने के लिए हर हथकंडे अपना रही है। मेरी नजर में इसका कारण यह है कि वह उनसे निम्नस्तर का काम कराने के साथ यह भी चाहती है कि वे भूमिहीन श्रमिकों के रूप में उनकी जमीनों पर काम करें। नेहरू जी से उन्होंने अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान सरकार से कहें कि अनुसूचित जातियों के लोगों को भारत आने में कोई रुकावट पैदा न करे।’ नेहरू जी ने 25 दिसंबर, 1947 को इसके जवाब में लिखा कि ‘हम अपनी ओर से जितना हो सकता है, पाकिस्तान से अनुसूचित जातियों को निकालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।’

आंबेडकर ने लिखा था- पाकिस्तान बनने से हिंदुस्तान सांप्रदायिक समस्या से मुक्त नहीं हो जाएगा

डॉ. आंबेडकर की एक पुस्तक है, ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ जिसे बाद में ‘पाकिस्तान ऑर द पार्टिशन ऑफ इंडिया’ के नाम से महाराष्ट्र सरकार ने 1990 में प्रकाशित किया था। इसमें पृष्ठ संख्या 103 पर लिखीं ये पंक्तियां शायद बहुत लोगों की आंखें खोल दें, ‘यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि पाकिस्तान बनने से हिंदुस्तान सांप्रदायिक समस्या से मुक्त नहीं हो जाएगा। सीमाओं का पुनर्निर्धारण करके पाकिस्तान को तो एक सजातीय देश बनाया जा सकता है, परंतु हिंदुस्तान तो एक मिश्रित देश बना ही रहेगा।

जनसंख्या की बिना अदला-बदली के हिंदुस्तान एक सजातीय देश नहीं बन सकता- आंबेडकर

हिंदुस्तान को सजातीय देश बनाने का एकमात्र तरीका है, जनसंख्या की अदला-बदली की व्यवस्था करना। यह अवश्य विचार कर लेना चाहिए कि जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा, हिंदुस्तान में बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक की समस्या और हिंदुस्तान की राजनीति में असंगति पहले की तरह बनी ही रहेगी।’

आंबेडकरवादी सीएए का विरोध कर आंबेडकर की आत्मा को धोखा दे रहे हैं

अब आप स्वयं ही कल्पना कीजिए कि आज डॉ. आंबेडकर होते तो सीएए का समर्थन करते या विरोध। स्पष्ट है कि आंबेडकरवादी डॉ. आंबेडकर के नाम पर नागरिकता कानून का विरोध कर या उसमें तीनों देशों के मुसलमानों को शामिल करने की मांग करके उनकी आत्मा को ही धोखा दे रहे हैं। सच कहा जाए तो वे उनके विचारों की हत्या कर रहे हैं। उन्होंने हैदराबाद की चर्चा बार-बार इसलिए की है, क्योंकि उस समय निजाम और उनके समर्थक हर हाल में भारत से अलग होना चाहते थे और उसके लिए हिंसा कर रहे थे।

अनुसूचित जाति चाहे पाक में हों या हैदराबाद में मुसलमानों पर विश्वास करना घातक होगा

दलितों के मुसलमानों से संबंधों पर भी उन्होंने प्रकाश डाला है। डॉ. बाबा साहब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेस की पृष्ठ संख्या 367 पर वह लिखते हैं कि ‘अनुसूचित जातियों के लिए चाहे वे पाकिस्तान में हों या हैदराबाद में उनका मुसलमानों तथा मुस्लिम लीग पर विश्वास करना घातक होगा।

मुसलमान कभी अनुसूचित जाति के दावों पर विचार नहीं करेंगे

अनुसूचित जातियों का यह सामान्य व्यवहार हो गया है कि वे चूंकि हिंदुओं को नापसंद करते हैं, इसलिए मुस्लिमों को मित्र के रूप में देखने लगते हैं। यह गलत सोच है। मुसलमान एवं मुस्लिम लीग जितनी तेजी से हो सके अपने को शासक वर्ग बनाने के लिए तत्पर हैं, इसलिए वे कभी अनुसूचित जाति के दावों पर विचार नहीं करेंगे। यह मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं।’

सीएए का विरोध या भीम का नारा दोनों आंबेडकर की सोच के बिल्कुल उलट है

साफ है कि डॉ. आंबेडकर के नाम पर चाहे नागरिकता कानून का विरोध हो या मीम और भीम का नारा दोनों उनकी सोच के बिल्कुल उलट है। ऐसे लोग कुछ भी हों बाबा साहब के अनुयायी तो नहीं हो सकते।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैैं )