[शास्त्री कोसलेंद्रदास]। Corona Epidemic: दूरदर्शन पर 33 साल बाद एक बार फिर से प्रसारित रामायण धारावाहिक ने टीआरपी के मामले में सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। प्रसार भारती के हिसाब से रामायण की टीआरपी के सामने अभी कोई शो नहीं है। दरअसल रामायण के पुन: प्रसारण का संयोग ऐसे समय में बना है जब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की तैयारियां चल रही हैं।

चैत्रीय नवरात्र के दैवीय काल ने इस प्रसारण को अधिक ऊंचाई दी। कोरोना के बचाव में घर के भीतर बैठे लोगों को नवरात्र, रामनवमी और रामायण का दुर्लभ प्रसारण एक साथ मिला। ये कारण हैं कि रामायण का प्रतिदिन दो बार हो रहा प्रसारण सफल रहा है। प्रसार भारती की योजना कारगर सिद्ध हुई जिससे दूरदर्शन के दर्शकों में जोरदार इजाफा हुआ है।

मर्यादित स्वरूप भारतीय जन-मन में गहरा बैठा : रामायण एक लोकोत्तर काव्य है। उसमें एक साथ धर्म, ज्ञान, विवेक, राजनीति, मर्यादा, समानता और नागरिक आदर्श हैं। वह भारतीय परंपरा की पूरी तरह संवाहक है। राम के दुख-सुख और मर्यादा का वर्णन है। राम ऐतिहासिक नायक के रूप में रामायण में हैं। उनका लोकरंजक रूप ही नहीं, बल्कि मर्यादित स्वरूप भारतीय जन-मन में गहरा बैठा हुआ है। यही कारण है कि राम नायक के रूप में पर्दे पर उतरते हैं तो हरेक भारतीय तन-मन आंखें खोलकर राम के प्रति श्रद्धा से सिर नवाने के लिए आतुर हो उठता है। वे रस, शील और अध्यात्म की त्रिवेणी हैं। मानव जीवन में मर्यादा के विकास के सर्वोत्तम प्रतिमान हैं। उनके जीवन में पूर्णता है। तभी तो राम से सुंदर, शीलवान और आध्यात्मिक होना किसी काल के मानव के लिए संभव नहीं है।

राम राज्य में छिपा निहितार्थ : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के राम राज्य में छिपा निहितार्थ गहरा था। राम राज्य यानी पारदर्शी राज्य। उस राज्य में कोई दरिद्र, दुखी और दीन नहीं था। कोई बीमार नहीं होता था, महामारी नहीं होती थी। पिता के सामने पुत्र की मृत्यु नहीं होती थी। लोग स्वस्थ और धार्मिक होते थे। प्रजा केवल राजा से नहीं, बल्कि परस्पर भी प्रेम करती थी। रामायण का पहला शब्द है तप। सारी रामकथा तप को प्रतिष्ठित करती है जिसमें मानवीय स्तर पर एक से एक करुणाजनक दृश्य और चेहरे उपस्थित होते हैं, जिनके भीतर सूर्य तपता है और उन्हें मधुमय बनाता है। इन दृश्यों और पात्रों से युक्त ग्रंथ रामायण में श्रीराम की अमर गाथा है। राम मर्यादा, धर्म, उपकार, सत्य, दृढ़ प्रतिज्ञा तथा चरित्र शुचिता के अनुपम प्रतिमान हैं। जिनके प्रकाश से सारे चर और अचर चमक रहे हैं।

भागवत महापुराण के अनुसार श्रीराम ने अपना अवतार मनुष्य जाति को चरित्रशिक्षण देने में लगाया। उनका पूरा अवतार माता-पिता, बंधु-बांधव, परिवार, राजा- प्रजा और नारी के प्रति सम्मान को प्रकट करता है। श्रीराम जो विचारते हैं वह कहते हैं। जो कहते हैं वह करते हैं। वे मन, वचन और कर्म में एकरूप हैं। कथन की अपेक्षा कर दिखाना अधिक विश्वसनीय होता है। कथन मिथ्या हो सकता है, पर जिया हुआ जीवन एक तथ्य है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। इसीलिए राम हरेक मानव को हर दशा में प्रभावित करते हैं। राम का यह प्रभाव किसी के कथन पर नहीं, बल्कि उनके जीवन के सत्य पर आधारित है।

पश्चिम का समृद्ध समाज ही हमारा आदर्श : मौजूदा समाज की स्थिति, तृष्णाएं और इच्छाएं बदल रही हैं। वैज्ञानिक आविष्कारों के जंगल में फंसे लोगों को भोग की संस्कृति मार रही है। फिर भी पुरातन वैदिक संस्कृति जीवित है तो भला इसका रहस्य क्या है? दुनिया की किसी धार्मिक परंपरा ने दांपत्य जीवन को लेकर महाकाव्य नहीं रचा, जबकि हमारा स्वाभाविक इतिहास रामायण पवित्र दांपत्य जीवन का महाकाव्य है। आज के संदर्भ में जब पाश्चात्य संस्कृति हम पर बुरी तरह से हावी है, पश्चिम का समृद्ध समाज ही हमारा आदर्श बन चुका है। इस हालात में भारत के समाज का वैवाहिक जीवन कब तक पवित्र रह सकेगा? ऐसी हालत में सोचें तो लगता है कि हमारी नाव डूबने से तभी बच सकेगी जब राम हमारे आदर्श हों और रामायण का आदर्श हमारा आदर्श हो। जहां पर इतना उज्ज्वल चरित्र हमारे सामने हो कि दांपत्य में किसी अन्य के लिए कोई स्थान न हो। राम सिर्फ सीता के लिए और सीता सिर्फ राम के लिए हैं। उनके अवतार में काम का प्रलोभन और अवदमन, दोनों ही नहीं हैं।

राम और सीता के चरित की विशेषता है कि वे पूर्णत: मानवीय हैं। इस मानवीयता के कारण ही राम मानव अस्तित्व के सोपानों पर खरे उतरते हैं। वे रस, शील और अध्यात्म के मिलन बिंदु हैं। उनके जीवन में पूर्णता की चरम स्थिति है। सीता पति से वंचित होती हैं, पर राम पत्नी और संतान दोनों से। यह भी किसी ईष्र्या या आशंका से नहीं, बल्कि प्रजा की महत्ता से, जहां एक सामान्य प्रजा के कथन से राजा का जीवन तक प्रभावित होता है, इस आदर्श की स्थापना के लिए। राम का सारा जीवन एक परीक्षा है जिसमें एक राजकुमार युवावस्था से दुख भोगता हुआ राजा बनने के बाद भी दुख ही जीता रहता है, पर न्याय के पथ से जरा भी विचलित नहीं होता। ऐसे में रामायण जैसे प्रेरक और प्रदर्शक कार्यक्रमों के निरंतर प्रसारण की जरूरत है, जिससे भारतीय समाज अपने उदात्त स्वरूप में जीवित रह सके। रामायण का बचे रहना इसलिए भी आवश्यक है कि राम की कथा भारत की कथा है, भारत की पहचान है।

[असिस्टेंट प्रोफेसर, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विवि, जयपुर]