[अनंत मित्तल]। Lockdown India: वर्तमान समय में देश भर में घरों में बंद लोगों के लिए चारदीवारी के भीतर समय काटना मुश्किल हो रहा है। खासकर एकाकी जीवन बिता रहे लोगों तथा बुजुर्गों के लिए इस समय मानसिक अवसाद से बचने की सामाजिक चुनौती सबसे गंभीर है। बच्चों को व्यस्त रखने की चुनौती मांओं पर भारी पड़ रही है। बच्चों की खाने-पीने से लेकर साथ खेलने तक फरमाइशें मांओं और किसी हद तक पिता को भी उन्हें खुश करने और बाहर निकलने से रोकने के लिए पूरी करनी पड़ रही हैं।

घर में बंद होने से बच्चे हलकान हैं, जो स्कूल के साथियों की तो बात ही छोड़िए अपने पड़ोस के हमजोलियों के साथ खेलने से भी वंचित हैं। उनके पास समय काटने का सहारा या तो टीवी-इंटरनेट रह गया अथवा घर के भीतर भाई-बहनों के बीच खेले जाने लायक खेल ही हैं। वीडियो गेम्स विक्रेताओं की मानें तो लॉकडाउन के आरंभिक हफ्ते में ही उनके गेम्स की मांग में 25 से 30 फीसद इजाफा हो चुका है। हालांकि ऐसे समय में दूरदर्शन ने रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों का फिर से प्रसारण करके घर में बैठे लोगों को स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने की अच्छी पहल की है।

कामकाजी पति-पत्नी के लिए तो यह समय और भी कठिन है, क्योंकि उन्हें जहां घर की चारदीवारी के भीतर ही अपना पेशेवर काम रोजाना नियत समय के भीतर पूरा करना है वहीं बच्चों को व्यस्त रखकर माहौल को शांतिपूर्ण बनाए रखने की भी चुनौती है। घर के भीतर से ही अपना पेशेवर काम करने की चुनौती ने दफ्तर के सारे तनावों को भी घर की चारदीवारी के भीतर ला खड़ा किया है। कामकाजी मांओं को घर में रहते हुए ही अपना पेशेवर काम करके परिवार की जरूरतें भी पूरी करनी हैं। उन्हें यह दोहरी जिम्मेदारी इस पूरे महीने बिना किसी सहायक के निभानी है। इससे उन पर शारीरिक और मानसिक दबाव बढ़ रहा है।

बच्चों को चूंकि स्कूल नहीं जाना इसलिए उनकी पढ़ाई को घर पर जारी रखना भी चुनौती है। उन्हें दिन भर घर के भीतर बांधे रखना तभी संभव होगा जब उन्हें किसी उपयोगी एवं मनोरंजक गतिविधि में व्यस्त रखा जाए। इसलिए उनको घर के काम में हाथ बंटाने के लिए प्रशिक्षित करने का यह सबसे उपयुक्त समय है। घर के सभी सदस्य अगले कम से कम दस दिनों तक तो चौबीसों घंटे घर के भीतर ही रहने वाले हैं इसलिए उनमें सामंजस्य आवश्यक है। बड़े-बुजुर्गों की देखभाल, उनकी खुराक और कोरोना की छूत से बचाए रखने तथा व्यायाम संबंधी जरूरतों का ख्याल भी उतनी ही जरूरी है।

यदि किसी घर में कोरोना की छूत से ग्रस्त कोई मरीज है अथवा उसके लक्षणों से ग्रस्त घर के किसी सदस्य को 14 दिन क्वारंटाइन यानी घर में सबसे अलग- थलग रखना है तो सामाजिक चुनौती और भी विकराल है। छूतग्रस्त परिवारों में घर के सभी बालिगों को खुद तो बेहद सावधानी बरतनी ही पड़ रही है, बच्चों और बुजुर्गों का भी विशेष ख्याल रखना पड़ रहा है। ऐसे परिवारों के सामने आर्थिक चुनौती भी बढ़ रही है, क्योंकि कोरोना की प्राथमिक जांच ही सरकार ने 4,500 रुपये तय की है। कोरोना कर्मवीरों के सामने एक नई समस्या सामने आई है। कोरोना की चपेट में आए या आशंकित लोग व उनके परिजन स्वास्थ्यकर्मियों की मदद करने के बजाय उन पर कई तरीकों से हमले कर रहे हैं।

बीते तीन-चार दिनों से देश भर में कई जगहों से स्वास्थ्यकर्मियों पर पथराव करने और उनके साथ दुव्र्यवहार करने की अनेक शिकायतें आई हैं जो निश्चित रूप से निंदनीय कृत्य है। ऐसे लोग समाज के अपराधी हैं और उन्हें इसकी सजा मिलनी ही चाहिए। मध्य प्रदेश समेत कई राज्य सरकारों ने ऐसे लोगों के साथ सख्ती से पेश आने की बात कही है जिसे जल्द से जल्द अमल में लाया जाना अनिवार्य है। इस निहायत अमानवीय रवैये की शिकायत मिलने पर सरकार तो कार्रवाई करेगी ही, मगर क्या समुदाय और समाज के रूप में हम इतने खोखले हो गए हैं कि मानवता के इन सेवकों पर हम इसलिए पथराव कर रहे हैं, क्योंकि वे हमारी जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं?

हमें यह समझना होगा कि देश भर में अभी तक ऐसा एक भी मामला सामने नहीं आया कि कोरोना की छूत लगने के डर से कोई अस्पतालकर्मी नौकरी छोड़ कर भागा हो अथवा कोई पुलिसकर्मी वर्दी खूंटी पर टांग कर अपने घर पर बैठ गया हो या फिर किसी दवा दुकानदार अथवा मदर डेयरीसफल सब्जी-फल बूथ संचालक ने दुकान खोलने तथा जनता को उनकी रोजमर्रा की जरूरत की खुराक देने से मना कर दिया हो। इसके बावजूद कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सामाजिक एवं औद्योगिक संगठनों तथा विभिन्न हस्तियों ने आर्थिक एवं महामारी से निपटने के साजो-सामान की सहायता का खुले दिल से एलान किया है। अनेक सार्वजनिक उद्योगों ने हजारों मास्क दान में दिए हैं। रोज इस तरह की खबरें आ रही हैं कि देश भर की जेलों में और समाजसेवियों द्वारा मास्क तैयार किए जा रहे हैं और वितरित किए जा रहे हैं।

हालांकि आज विभिन्न समाजसेवी संगठन और व्यक्ति अपने-अपने स्तर से लोगों की मदद करने में जुटे हैं, फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोरोना से किसी न किसी तरह से आर्थिक रूप से प्रभावित लोगों की मदद के लिए जो पीएम केयर्स फंड का गठन किया है उसमें दान देने के लिए लोग व्यापक संख्या में आगे

आ रहे हैं। भले ही आरंभ में इसमें आने वाली रकम प्रभावित लोगों को मुहैया कराई जाने वाली रकम के अनुपात में कम प्रतीत हो रही हो, लेकिन अच्छी बात यह है कि इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। टाटा से लेकर अंबानी तक ने सरकार को अनेक तरीकों से मदद मुहैया कराने की पेशकश की है। और कर भी रहे हैं।

कोरोना से बचाने को करीब 50 देशों की सरकारों ने ढाई अरब से ज्यादा लोगों को जनबंदी के तहत अपने घरों में सीमित कर रखा है। दुनिया भर में 50,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। भारत में वैसे तीन-चार दिन पहले तक ऐसा लग रहा था कि 14 अप्रैल तक जारी लॉकडाउन की अवधि में उस लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा जिस मकसद से ऐसा किया गया था, लेकिन बीते तीन-चार दिनों में जिस तरह से लगातार मामले बढ़ते जा रहे हैं, वैसी दशा में शायद 14 अप्रैल तक इस लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल दिख रहा है। देश में कोरोना प्रभावितों की संख्या दो हजार तक पहुंच चुकी है, जबकि मरने वालों की संख्या भी पचास से अधिक हो चुकी है। हालांकि बड़े पैमाने पर लोगों की जांच नहीं होने के कारण कोरोना पीड़ितों की सही संख्या इससे कहीं ज्यादा होने की आशंका स्वास्थ्य विशेषज्ञ जता रहे हैं।

अब सरकार के सामने जनता के बीच जाकर बड़ी संख्या में उनकी जांच करने की चुनौती है। देश में उपलब्ध इलाज सुविधाओं के बूते चूंकि कोरोना पीड़ितों की आशंकित संख्या का इलाज संभव नहीं था इसलिए अस्थाई स्वास्थ्य सुविधा तैयार की जा रही है। इसकी जांच में इतालवी सरकार की आपराधिक लापरवाही से सबक लेना जरूरी है। देखना यही है कि भारत सरकार कोरोना की छूत का घर-घर विस्फोट होने पर घुटती सांसें थामे नागरिकों के अस्पताल दौडने का इंतजार करेगी या फिर उनकी बड़े पैमाने पर जांच करके उसकी छूत से बेखबर दूसरों को मौत बांटने वालों को चिन्हित करके उनकी जान बचाने के कर्तव्य का चुस्ती से निर्वाह करेगी?

भारत की एक अरब तीस करोड़ से अधिक आबादी इन दिनों कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए अपने-अपने घरों में बंद है। इसके सामाजिक प्रभाव बड़े पैमाने पर दिखाई दे रहे हैं। इनमें सबसे अधिक प्रभावित जहां गरीब तबका है, वहीं घर चलाने वाली और कामकाजी महिलाओं के कंधों पर भी बोझ बढ़ गया है। जाहिर है जब समाज पूरी तरह से घरों में बंद हो तो फिर सबके लिए चुनौतियां भी बढ़ जाती हैं, लेकिन हम सबको मिलकर इस चुनौती से निपटना होगा।

[वरिष्ठ पत्रकार]