अनंत मित्तल। देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन का हाल ही में निधन हो गया है। भारत में टीएन शेषन के चुनाव आयुक्त बनने से पहले बहुत कम ही लोगों को चुनाव आयोग की शक्तियों के बारे में विस्तार से जानकारी थी। शेषन ने चुनाव सुधार पर व्यापक जोर दिया, लेकिन बहुत सी खामियां अब भी इसमें हैं, जिन्हें दूर करने की जरूरत है। विधि आयोग और सुप्रीम कोर्ट वर्तमान चुनाव प्रणाली एवं प्रक्रिया में आमूल-चूल सुधार सुझा रहे हैं, मगर संसद उस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही।

वर्ष 2019 का आम चुनाव गवाह है कि चुनाव आयोग यदि सख्ती न करे तो मतदाताओं को भरमाने के लिए राजनेताओं के बोल बिगड़ने में देर नहीं लगती, फिर चाहे वे सत्तारूढ़ हों अथवा विपक्षी। इसी आम चुनाव में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के कामकाज में दखल नहीं देने का स्पष्ट रुख दिखाकर उसकी स्वायत्त संवैधानिक हैसियत भी देश को समझा दी। कुछ विपक्षी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट से याचना की थी कि वह चुनाव आयोग को कतिपय चुनाव आचार संहिता उल्लंघन मामलों में कार्रवाई का निर्देश दे। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बयानों के विरुद्ध विपक्ष द्वारा की गई शिकायतों को मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा द्वारा ठुकराने पर दायर की गई थी।

निर्वाचन प्रक्रिया में सख्ती

लगभग 90 करोड़ मतदाताओं वाले इस देश को टीएन शेषन ने निर्वाचन प्रक्रिया संबंधी प्रावधान सख्ती से लागू करके पहली बार यह अहसास कराया था कि चुनाव लोकतंत्र की आत्मा है और उसकी शुचिता सर्वोपरि है। उन्होंने जता दिया कि चुनाव आयोग द्वारा चुनाव को भरसक निष्पक्ष संचालित कराने पर ही असली जन प्रतिनिधित्वकारी सरकार बन सकती है। बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह ने भी बहुत सख्ती से सारे प्रावधान लागू किए। लिंगदोह ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्र संघ चुनाव की भी आचार संहिता बना दी। लिंगदोह ने भी अपने मुख्य चुनाव आयुक्त काल में हुए तमाम चुनावों में भ्रष्ट तौर-तरीकों पर अधिकतम अंकुश लगाया।

टीएन शेषन ने जन समर्थन के मद में चूर नेताओं में सबसे अधिक सख्ती बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद पर की। उन्होंने होम गार्ड की सुरक्षा में बिहार का विधानसभा चुनाव कराने का लालू प्रसाद का दबाव सख्ती से दरकिनार करके पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों की निगरानी में मतदान कराया। बिहार में वर्ष 1995 का विधानसभा चुनाव पूरे तीन महीने और कई चरणों में संपन्न हुआ। बिहार के तत्कालीन चुनावी इतिहास में वह चुनाव अपेक्षाकृत बहुत कम हिंसा व चुनावी धांधली के साथ संपन्न हुआ माना जाता है।

नेताओं को कराया चुनाव आयोग की हैसियत का अहसास

टीएन शेषन ने अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल गुलशेर अहमद और बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव सहित तमाम नेताओं को चुनाव आयोग की हैसियत का अहसास कराया। उन्होंने केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती के लिए चरणबद्ध मतदान की परंपरा डाली जिसका आज राजनीतिक दलों को प्रचार के दौरान खूब फायदा मिल रहा है। शेषन के चुनाव आयोग संभालने से पहले देश में चुनावी सभाओं की न तो कोई समय सीमा तय थी और न ही प्रचार वाहनों और जुलूसों द्वारा शोर पर कोई लगाम।

प्रचार सामग्री को चुनाव के दौरान विभिन्न प्रत्याशियों के समर्थक कहीं भी लगाने, टांगने अथवा चिपकाने को स्वतंत्र थे। शेषन ने चुनाव प्रचार की समय सीमा रात के 10 बजे मुकर्रर की और प्रचार सामग्री को घरों अथवा सरकारी दफ्तरों की दीवारों पर चिपकाने पर रोक लगा दी। उन्होंने चुनाव प्रचार में खर्च की सीमा की निगरानी भी कड़ाई से कराई तथा मतदान की पूर्व संध्या में मतदाताओं को प्रभावित करने के शराब अथवा पैसे बांटने जैसे हथकंडों को नेस्तनाबूद किया। उन्होंने चुनाव आयोग के पर्यवेक्षकों को मैदानी वस्तुस्थिति के सटीक आंकलन तथा रिपोर्टिंग के लिए प्रोत्साहित किया।

चुनाव आयोग ने मतदाताओं को उनके मत का महत्व बताने संबंधी जागरुकता अभियान भी चलाया। उन्होंने चुनाव आयोग को मतदाताओं की राय के रक्षक के रूप में पेश करके स्थानीय प्रशासन की मदद से उनके वोट लूटने पर रोक लगाई। तब से चले अभियानों की बदौलत ही आज अनेक राज्यों में लोग 70-80 फीसद तक

मतदान कर रहे हैं। उन्होंने 1990 से 1996 के दौरान चुनाव प्रणाली को मजबूत और जनोन्मुख बनाया। उनके काल में यह कहा जाता था कि नेता या तो भगवान से डरते हैं या फिर शेषन से।

चुनाव का गंभीरता से प्रबंधन

मुख्य चुनाव आयुक्त बनने पर टीएन शेषन ने दो अगस्त 1993 को अपने एक आदेश द्वारा चुनाव आयोग की स्वायत्त संवैधानिक हैसियत का अहसास सरेआम करवा दिया। उसी के जरिये उन्होंने नेताओं और नौकरशाही को जता दिया कि चुनाव प्रबंधन गंभीर कार्यपालिक कार्य है और उसमें कोताही सभी वर्गों को भारी पड़ेगी। उन्होंने साफ चुनौती दी कि सरकार जब तक चुनाव आयोग के संवैधानिक अधिकारों, शक्तियों को नहीं मानती, तब तक आयोग देश में कोई भी चुनाव आयोजित नहीं करेगा। हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इसे लोकतंत्र की तालाबंदी और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने उन्हें पागल बता दिया, मगर वे टस से मस नहीं हुए। इसलिए पश्चिम बंगाल में राज्यसभा चुनाव को बीच में ही रोकना पड़ा। अंतत: सरकार द्वारा चुनाव आयोग से सहयोग करने पर ही चुनाव संपन्न हुआ।

कांग्रेस की जिद के बावजूद 1993 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव भी शेषन ने फरवरी महीने में नहीं होने दिए थे। उन्होंने असम के पायेदार कांग्रेस नेता और केंद्रीय मंत्री संतोष मोहन देब के साथ चुनाव प्रचार में घूमने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई होने तक चुनाव स्थगित करने की घोषणा की। अंतत: सरकार को पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करनी पड़ी और अप्रैल में चुनाव आयोग ने मतदान कराया। मार्च 1991 में ही शेषन ने बयान जारी कर दिया था, ‘भूल जाइए कि संसद में गलत तौर- तरीकों का इस्तेमाल करके आप पहुंच जाएंगे, ऐसा करने की किसी को अनुमति नहीं होगी।’

वर्ष 1994 में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से उनके दो मंत्रियों सीताराम केसरी एवं कल्पनाथ राय को हटाने का अनुरोध किया। चुनाव आयोग के अनुसार उन दोनों ने मतदाताओं को लुभाने और चुनाव पूर्व आचार संहिता तोड़ने जैसी अवैधानिक हरकत की थी। चुनाव प्रबंधन के कायाकल्प के लिए शेषन को 1996 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। चुनाव आयोग की स्वायत्तता तथा संवैधानिक हैसियत का अहसास कराने के लिए शेषन सुप्रीम कोर्ट में भी पीछे नहीं हटे।

देश में सभी दलों के नेता उनसे इतने खफा हुए कि उन पर संसद में महाभियोग चलाकर उन्हें अपदस्थ करने की कोशिशें भी हुईं। इसके बावजूद वे अडिग रहे जिसकी तारीफ सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में फर्जी वोटों पर रोक संबंधी याचिका पर सुनवाई के दौरान भी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शेषन के कार्यकाल में चुनाव आयोग द्वारा अर्जित साख का सिक्का आज तक चल रहा है और अगला चुनाव भी उसी लीक पर आयोजित होना चाहिए। ताज्जुब ये है कि शेषन की सख्ती को चुनाव आयोग आज भी याद तो कर रहा है, मगर राजनीतिक जमात उसके प्रबंधन से खुश नहीं है। अब चुनाव आयोग ये सुझाव दे रहा है कि दो सीटों से चुनाव जीतने पर खाली होने वाली सीट पर उपचुनाव का खर्च उस प्रत्याशी से वसूला जाए जो जीतने पर एक सीट से इस्तीफा देगा।

आयोग ने कानून मंत्रालय से आग्रह किया है कि यदि दो सीटों से चुनाव लड़ने पर रोक लगाना ठीक नहीं है, तो चुनाव सुधार के तहत कम से कम एक सीट के चुनाव का खर्च तो उसे छोड़ने वाले से वसूला जाए। इसके लिए मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कानून मंत्री को पत्र लिखा है। उसमें चुनाव सुधारों के प्रस्ताव पर अमल करने का अनुरोध है। आठ बिंदुओं वाले सुधार प्रस्ताव में मतदान से 48 घंटे पहले के ‘प्रचार थमने’ की अवधि में प्रिंट मीडिया को भी शामिल करने और चुनावी चंदे में राजनीतिक दलों को छूट देने का मामला है।

मतदाता पहचान पत्र की मुहिम

फर्जी मतदान रोकने के लिए मतदाता पहचान पत्र बनाने का काम टीएन शेषन ने ही शुरू करवाया था। वोट डालते वक्त इस पहचान पत्र को दिखाना भी उन्होंने अनिवार्य करवाया था। चुनाव आचार संहिता का उन्होंने सख्ती से पालन कराया। फर्जी मतदान पर रोक लगने से लोकतंत्र मजबूत हुआ। पर्यवेक्षक तैनात करके पार्टियों और प्रत्याशियों की मनमानी पर रोक लगाई। मतदान प्रक्रिया को केंद्रीय बलों की निगरानी में संपन्न कराने की परिपाटी शेषन ने ही डाली जिससे राज्य मशीनरी का दुरुपयोग कम हुआ औरोताओं की धौंस-पट्टी पर लगाम लगी।

कलेक्टर के रूप में करियर की शुरुआत

तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन ने अपना करियर तो जिला कलेक्टर और फिर ग्रामीण विकास सचिव जैसे सरकारी ओहदे से आरंभ किया, पर वर्ष 1989 में कैबिनेट सचिव जैसे नौकरशाही के सर्वोच्च पद तक पहुंचे। शेषन ने केआर नारायणन के खिलाफ राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ा। टीएन शेषन योजना आयोग के सदस्य भी रहे। देश का दसवां मुख्य चुनाव आयुक्त बनकर उन्होंने चुनाव प्रक्रिया का कायाकल्प कर दिया। उनके कार्यकाल में उम्मीदवारों के लिए आचार संहिता के अनुसार चुनाव खर्च की निगरानी बढ़ी और कम पैसे वाले प्रत्याशियों को भी बराबरी का मौका मिला। बिना अनुमति लाउडस्पीकरों का प्रयोग भी उनके कार्यकाल में रोका गया तथा देर रात प्रचार वाहनों पर उन्होंने पाबंदी लगाई।

चुनाव प्रक्रिया में सुधार की वर्तमान मुहिम

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के अनुसार, चुनाव सुधार संबंधी आठ बिंदुओं का सुझाव सरकार को दिया गया है। इसमें जन प्रतिनिधि कानून के तहत मतदाताओं को वर्ष में दो बार वोटर आइ कार्ड बनाने का मौका देने और गलत खबर तथा झूठे हलफनामे पर दो साल की सजा का प्रावधान करने की सिफारिश की गई है। पत्र के अनुसार, पारदर्शी और साफ-सुथरा चुनाव कराने के लिए जरूरी है कि चुनाव लड़ने का सबको समान अवसर दिया जाए।

इसकी सिफारिश हालांकि शेषन ने भी की थी। उन्होंने जात-पांत की दुहाई देकर वोट जुटाने को भी अपने चुनावी अमले से सख्ती से रुकवाया मगर हमारे चुनाव आज भी जातीय समीकरणों तथा धार्मिक धु्रवीकरण का शिकार हैं। चुनाव प्रक्रिया पैसे, शराब, उपहारों, ताकत और रसूख की मोहताज है। इसीलिए संसद में करोड़पतियों का बोलबाला है भले वे पक्ष में हों अथवा विपक्ष में। अत्यधिक खर्चीले चुनावों ने गरीबों के नुमाइंदों के लिए पंचायत से लेकर विधानसभा और संसद तक सभी विधायी संस्थाओं के दरवाजे बंद कर दिए हैं।

वरिष्ठ पत्रकार

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