[ सुनील अग्रवाल ]: चालू वित्त वर्ष में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे कारोबारी जगत को जश्न मनाने का अवसर मिलता। सुस्त होती अर्थव्यवस्था के बीच मार्च में राजस्व करीब 10 से 15 प्रतिशत घट गया। साल का यह वही पड़ाव होता है जब नौकरीपेशा वर्ग वेतन में बढ़ोतरी की उम्मीद लगाए बैठा होता है। माहौल को देखते हुए वह भी औसत से कम इजाफे की आस में ही था। वहीं कंपनियां आर्थिक परिदृश्य के हिसाब से अपनी रणनीतियां बनाने में जुटी थीं। तभी कोविड-19 जैसी आपदा आ धमकी और उसने पहले से बिगड़े समीकरण और बिगाड़कर रख दिए।

अपने नजरिये को नए सिरे से दुरुस्त कर क्रांतिकारी सुधारों का सूत्रपात करें

यह आपदा हमें अपने नजरिये को नए सिरे से दुरुस्त करने का अवसर भी प्रदान करती है। ऐसे में कुछ दिखावटी सुधारों के जरिये इसे व्यर्थ न जाने दें, बल्कि क्रांतिकारी सुधारों का सूत्रपात करें। रियल एस्टेट क्षेत्र को भी यह अवसर नहीं गंवाना चाहिए। रियल एस्टेट देश में दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता क्षेत्र है। अनुमान है कि वर्ष 2025 तक जीडीपी में इसका योगदान 13 प्रतिशत और वर्ष 2030 तक बाजार का आकार एक ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा।

भीमकाय उद्योग रियल एस्टेट क्षेत्र की अनदेखी 

तमाम अध्ययनों के अनुसार रियल एस्टेट क्षेत्र 248 से अधिक उद्योगों को प्रभावित करता है। इसके चलते सीमेंट, इस्पात, सेरेमिक, खनन, पेंट, इलेक्ट्रिकल, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स जैसे विनिर्माण के अलावा प्रबंधन, मॉर्गेज एवं वित्त और सुरक्षा एजेंसियों जैसी तमाम सेवाओं के लिए राह खुलती है, फिर भी अक्सर इस भीमकाय उद्योग की अनदेखी की जाती है। ऐसे में इस सुप्त उद्योग को तंद्रा से जगाने के लिए सुधारों की खुराक जरूरी हो गई है ताकि यह न केवल कोविड-19 के संकट में स्वयं को बचाए, बल्कि दीर्घकाल में हमारी अर्थव्यवस्था का अहम खेवैया भी बने।

हर तरह के मकानों के लिए अथाह मांग

वास्तव में रियल एस्टेट अच्छी खबरों की झड़ी लगाने में सक्षम है। इस बाजार में हर तरह के मकानों के लिए अथाह मांग की गुंजाइश है। खासतौर से मध्यम आमदनी यानी एमआइडी श्रेणी में किफायती मकानों के मोर्चे पर अपार संभावनाएं हैं। नीति-निर्माताओं और सरकारों ने अभी तक केवल निम्न आमदनी और ईडब्ल्यूएस मकानों पर ही पूरा जोर दिया है। इस राह में एमआइडी हाउसिंग, कॉमर्शियल ऑफिस और रिटेल स्पेस के अलावा औद्योगिक रियल एस्टेट को अनदेखा किया गया। इस रणनीति के बहुत अच्छे परिणाम नहीं निकले। इसने निजी कंपनियों के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर दीं। मसलन महंगी जमीन से लेकर नियमों की झड़ी और वित्तीय मोर्चे पर दुश्वारियां रहीं। इससे अर्थव्यवस्था को सीमित लाभ ही पहुंच सकता है।

मकान के बिक्री मूल्य में 40 फीसदी हिस्सा ड्यूटी, जीएसटी, अन्य करों एवं लेवी का होता है

मध्यम आमदनी वाले मकान अमूमन 2,000 वर्ग फीट में बनते हैं जो ईडब्ल्यूएस मकानों से आकार में दोगुने होते हैं। उनमें टाइल फ्लोरिंग, एमएस ग्रिल्स, शीशे वाले यूपीवीसी दरवाजे और खिड़कियां, स्टील सिंक से लेकर अलमारी, इलेक्ट्रिक फिटिंग्स जैसे काम भी होते हैं। यह ईडब्ल्यूएस हाउसिंग की तुलना में कहीं अधिक अवसर प्रदान करता है, लेकिन उनकी राह में कई अवरोध खड़े हुए हैं। इनमें सबसे बड़ी बाधा तो ऊंचा कराधान है। एक अध्ययन के अनुसार मकान के बिक्री मूल्य में 40 प्रतिशत हिस्सा तो ड्यूटी, जीएसटी और अन्य करों एवं लेवी का होता है।

रियल एस्टेट को सहारा दिए बिना भारत तेज आर्थिक तरक्की की राह पर आगे नहीं बढ़ पाएगा

मिड-इनकम हाउसिंग, रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन उद्योग को सहारा दिए बिना भारत तेज आर्थिक तरक्की की राह पर आगे नहीं बढ़ पाएगा। कोविड-19 आपदा का इस उद्योग पर बहुत बुरा असर पड़ा है। ऐसे में सरकार से हमारी अपेक्षा है कि यदि वह इन पांच सुझावों पर अमल करे तो इससे न केवल हम इस आपदा के दौर से उबरेंगे, बल्कि यह हमारे अच्छे दिनों की बुनियाद भी रखेंगे।

पहली बार घर खरीद रहे व्यक्ति को सरकार भुगतान राशि पर शत प्रतिशत डिडक्शन सुनिश्चित करे

इस कड़ी में पहला सुझाव तो यही है कि अपनी आमदनी से पहली बार घर खरीद रहे किसी भी व्यक्ति को सरकार भुगतान राशि (पूंजी और ब्याज) पर शत प्रतिशत डिडक्शन सुनिश्चित करे। डिडक्शन की मौजूदा सीमा दो लाख रुपये तक है। यदि ऐसा होता है तो किराये पर रहने वाले तमाम लोग अपने घर के बारे में सोच सकेंगे। बाजार में पहले से ही तकरीबन साढ़े चार लाख अनबिके मकान हैं। इस योजना से न केवल इन मकानों की बिक्री हो सकेगी, बल्कि लाखों लोगों का अपने आशियाने का सपना भी पूरा होगा।

आवासीय ऋण रेपो दरों से महज एक फीसद अधिक की दर पर ही उपलब्ध कराया जाए

दूसरा सुझाव यह है कि आवासीय ऋण रेपो दरों से महज एक प्रतिशत अधिक की दर पर ही उपलब्ध कराया जाए। इससे ग्राहकों को फायदे के साथ अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा सहारा मिलेगा।

घर खरीदार को जीएसटी के साथ ही स्टैंप ड्यूटी भी अदा करनी पड़ती है

तीसरा सुझाव रियल एस्टेट विशेषकर हाउसिंग को जीएसटी के दायरे में लाने से जुड़ा है ताकि यह दोहरे कराधान के जंजाल में न फंसे। फिलहाल घर खरीदार को जीएसटी के साथ ही स्टैंप ड्यूटी भी अदा करनी पड़ती है। इससे मकान की कीमत अधिक हो जाती है। इसका उद्योग और अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जीएसटी से पहले स्टैंप ड्यूटी 5 से 7 प्रतिशत के दायरे में थी, लेकिन अब इस मद में 12 प्रतिशत का अतिरिक्त बोझ और पड़ गया है। यह पूरी तरह अनुचित है। बहरहाल जीएसटी सुधारों में अभी समय लग सकता है तो स्टैंप ड्यूटी और सर्किल दरों को तार्किक बनाकर तात्कालिक राहत की गुंजाइश तलाशी जा सकती है। कायदे से स्टैंप ड्यूटी 2 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।

जीएसटी इमारत में सेवाओं के रखरखाव पर ही लागू होना चाहिए

चौथा सुझाव ‘किराये पर जीएसटी’ जैसी बेहद खराब कराधान व्यवस्था से जुड़ा है। यह वाणिज्यिक रियल एस्टेट में निवेश को सीमित करते हुए निवेशक और परिसंपत्ति प्रबंधक पर बोझ बढ़ाता है। वास्तव में जीएसटी इमारत में सेवाओं के रखरखाव पर ही लागू होना चाहिए।

अटकी पड़ी सभी रियल एस्टेट परियोजनों को नए सिरे से शुरू किया जाना चाहिए

पांचवां सुझाव अटकी पड़ी सभी रियल एस्टेट परियोजनों से संबंधित है। उन्हेंं नए सिरे से शुरू किया जाना चाहिए। इसमें केंद्र सरकार को सीधे मदद करनी होगी। इससे न केवल रोजगार सृजन होगा, बल्कि बेहद जरूरी बुनियादी ढांचा भी विकसित हो सकेगा। नतीजतन भारत इस अहम पड़ाव पर निवेश के एक आकर्षक केंद्र में रूप में भी उभरेगा।

जब कोविड-19 का उपचार मिल जाएगा तो रियल एस्टेट की गाड़ी पटरी पर आ जाएगी

जब कोविड-19 का उपचार मिल जाएगा तो अन्य उद्योगों की तरह रियल एस्टेट की गाड़ी भी सामान्य रूप से पटरी पर आ जाएगी, मगर क्या हमें सामान्य से ही संतुष्ट होना चाहिए? यही वह समय है जब इन सुधारों के जरिये मजबूत अर्थव्यवस्था की आधारशिला रख सकते हैं। क्या वित्त मंत्री जी हमारी बात सुन रही हैं?

( लेखक ब्लैक ऑलिव वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक हैं )