डॉ. मोनिका शर्मा। प्राकृतिक आपदाएं धरती पर मौजूद हर प्राणी के लिए पीड़ादायी होती हैं। इन दिनों ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में फैली भीषण आग से सिर्फ इंसान ही नहीं, जानवरों की जिंदगी भी खतरे में पड़ गई है। मीडिया में दिख रहे आग से झुलसे वन्य जीवों के चित्र व्यथित करने वाले हैं। उसके कुछ इलाके बुरी तरह आग की चपेट में हैं और लाखों हेक्टयर इलाके इसे प्रभावित हुए हैं। रिकॉर्ड तोड़ने वाला तापमान और महीनों का सूखा पूरे ऑस्ट्रेलिया में जंगल की आग का कारण बने हैं। आग से निपटने की कोशिश कर रहे हजारों फायरफाइटर्स और स्वयंसेवकों को बारिश ने थोड़ी राहत दी है, लेकिन फिर भी यह आपदा का अंत नहीं है। सितंबर से ऑस्ट्रेलिया के कई इलाकों में आग लगी है। पिछले हफ्ते यह आग और तेज हुई है। अब तक 24 लोग मारे जा चुके हैं जिनमें तीन फायरफाइटर भी शामिल हैं।

आग फैलने का एक बड़ा कारण मौसम

इसके अलावा 63 लाख हेक्टेयर जंगल और पार्क आग में जल चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य न्यू साउथ वेल्स (एनएसडब्ल्यू) है। यहां लगभग 50 लाख हेक्टेयर इलाके में आग लग चुकी है और 1300 घर तबाह हो गए हैं। हजारों लोगों को अपना घर छोड़कर शिविरों में जाना पड़ा है, क्योंकि आस-पास के इलाकों की पूरी आबोहवा जहरीली हो गई है। ऑस्ट्रेलिया में आग फैलने का एक बड़ा कारण मौसम भी रहा है। गर्म, शुष्क मौसम के साथ तेज हवाएं आग के लिए बिल्कुल अनुकूल स्थितियां बना रही हैं। सोमवार को न्यू साउथ वेल्स में 130 जगह आग लगी हुई थी। झाड़ियों वाले इलाके, जंगल से ढंके पर्वत और राष्ट्रीय पार्क सभी इसकी चपेट में आ गए थे।

अब तक करोड़ों जानवरों की मौत

चिंतनीय है कि जंगलों में चार महीने से लगी यह विकराल आग खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के इकोलॉजिस्ट ने अनुमान लगाया है कि आग में झुलसने से अब तक करोड़ों जानवरों की मौत हुई है। इनमें स्तनधारी पशु, पक्षी और रेंगने वाले जीव शामिल हैं। आग के संकट को देखते हुए प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने अपनी प्रस्तावित चार दिवसीय भारत यात्रा भी रद कर दी है। इस भयावह आग के चलते ऑस्ट्रेलिया के कई इलाकों में तो आपात स्थिति घोषित की गई है।

जीव कोआला की आधी आबादी खत्म

बचाव दल के सदस्यों के मुताबिक दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के कंगारू द्वीप पर लगी आग से पेड़ों पर रहने वाले एक जीव कोआला की आधी आबादी खत्म हो गई है। आग लगने से पहले इस द्वीप पर करीब 50 हजार कोआला थे। वहां भी जंगल का एक बड़ा क्षेत्रफल तक जलकर खाक हो चुका है। इतना ही नहीं लाखों हेक्टेयर की फसल जलकर खाक हो चुकी है। गर्म हवा और जहरीले धुंए के कारण पास के कस्बों और शहरों में लोग घर छोड़कर जहां-तहां भाग रहे हैं। यह आग अब तक 50 करोड़ों जानवरों और पक्षियों को लील चुकी है।

बढ़ते तापमान के कारण आग लगने के मामले बढ़ेे  

दरअसल ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में फैली यह विकराल आग सितंबर महीने में न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड राज्यों में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी और हवा के हालातों के चलते लगी थी। वहां यह साल का बेहद गर्म और सूखा मौसम होता है। पिछले दिनों वहां पारा लगभग 50 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। यह आग भी बढ़े तापमान का ही परिणाम है। असल में देखा जाए तो ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में फैली भीषण आग ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान के कारण विश्व के दूसरे जंगलों में भी आग लगने के मामले बढ़ रहे हैं। शुष्क और गर्म मौसम में पेड़-पौधे और फसल सूख जाते हैं। वातावरण में नमी की कमी हो जाती है। इससे न केवल जंगलों में आग लगने की आशंका बढ़ जाती है, बल्कि आग तेजी से फैलती भी है।

जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से जिम्मेदार 

हालिया बरसों में अमेरिका में भी बढ़ती गर्मी ने जंगलों में आग लगने और तेजी के फैलने की चिंतनीय स्थितियां पैदा की है। पिछले साल बदलते पर्यावरण और तेज गर्मी का प्रकोप यूरोपीय देशों में भी देखने को मिला था। विश्व मौसम संगठन के अनुसार यूरोप के सर्वाधिक गर्म वर्षों में 2015 से 2018 के बीच के साल शीर्ष पर आते हैं। यूरोप में रिकॉर्ड गर्मियों के बीच स्वीडन में जंगलों में भयंकर आग लग गई थी। कहना गलत नहीं होगा कि जलवायु परिवर्तन का असर अब दुनिया के हर हिस्से में दिखने लगा है। जलवायु परिवर्तन ही जंगलों में आग लगने के बढ़ते मामलों के लिए भी मुख्य रूप से जिम्मेदार है।

विशेषज्ञों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग की वजह से न केवल जंगलों में आग लगने के मामले बढ़े हैं, बल्कि बढ़ते तापमान से आग और भयावह भी हुई है। यही वजह है कि अपेक्षाकृत ठंडे माने जाने वाले देशों में भी पारा चढ़ रहा है। जिन देशों ने गर्मी के मामले में कभी मौसम की सख्ती का सामना नहीं किया, उनमें भी अब तेज गर्मी जिंदगी दुश्वार कर रही है। स्पष्ट है कि ग्लोबल वार्मिंग अब एक अंतरराष्ट्रीय आपदा बन रही है। जंगलों की आग, सूखा, बाढ़, चक्रवात और समुद्री तूफानों जैसी आपदाएं बढ़ रही हैं।

चिंतनीय है कि ऐसी आपदाओं के चलते पूरी दुनिया में जैव-विविधता संकट में है। विचारणीय यह है कि पर्यावरणीय संकट की इन स्थितियों का इंसान ही नहीं, बल्कि बेजुबान जानवर भी शिकार हो रहे हैं। यों भी इंसानी गतिविधियों के चलते जलवायु में आ रहे बदलावों और प्राकृतिक आपदाओं के बीच सीधा संबंध है। आंकड़े बताते हैं कि 1990 से ऐसी आपदाएं दोगुनी हो चुकी हैं। पिछले 35 वर्षों से वैश्विक स्तर पर तापमान में हो रही बढ़ोतरी के कारण बढ़ती गर्मी ने जंगलों में आगजनी की घटनाओं में इजाफा किया है। अब यह समस्या इतनी विकराल हो गई है कि दुनिया के ठंडे देशों के जंगल भी झुलसने लगे हैं। ऐसे में प्रकृति के साथ इंसानी खिलवाड़ यूं ही जारी रहा तो आने वाले समय में जाने कितने ही वन्य-जीव और वनस्पतियां धरती की गोद से नदारद हो जाएंगी।

इन दिनों ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में फैली भीषण आग से सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि जानवरों की जिंदगी भी खतरे में पड़ गई है। मीडिया में दिख रहे आग से झुलसे वन्य जीवों के चित्र व्यथित करने वाले हैं। वहां के कुछ इलाके बुरी तरह आग की चपेट में हैं और लाखों हेक्टेयर का इलाका इससे प्रभावित हुआ है। माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन के चलते ऑस्ट्रेलिया में रिकॉर्ड तोड़ने वाला तापमान और महीनों का सूखा जंगल की इस आग का कारण बने है।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]

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