रांची, प्रदीप शुक्ला। भाजपा विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की दिल्ली यात्र राजनीतिक गलियारे में कौतूहल का विषय बन गई है। हर कोई यह राज जानने की जुगत में भिड़ा है कि आखिर वह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात में क्या चर्चा करके आए हैं? विपक्ष तो गठबंधन सरकार के खिलाफ साजिश रचने को लेकर उन पर पहले से ही हमलावर है, लेकिन अब खुद भाजपा के तमाम नेता उनके दौरे को लेकर कयासबाजी में जुट गए हैं। फिलहाल मरांडी होम क्वारंटाइन में चले गए हैं, लेकिन गठबंधन सरकार के खिलाफ उनके हमलों में कोई कमी नहीं आई है। वह हर दिन पत्र लिखकर किसी न किसी मुद्दे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर निशाना साध रहे हैं।

राजस्थान में चल रहे सियासी नाटक का अभी पटाक्षेप नहीं हुआ है। देश के साथ-साथ राज्य के सभी दलों की नजर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सत्ता को लेकर चल रही जंग पर टिकी हुई है। पता नहीं सभी राजनीतिक दलों के साथ ही राज्य की अफसरशाही को ऐसा क्यों लग रहा है कि अगर राजस्थान सरकार अस्थिर हो जाती है तो इसकी आंच झारखंड तक जरूर पहुंचेगी। बेशक इसमें कुछ वक्त लगेगा। इन्हीं कयासों के बीच बाबूलाल मरांडी का तीन दिन तक दिल्ली में रहना और पार्टी के केंद्रीय नेताओं से मिलना कांग्रेस सहित झामुमो को हजम नहीं हो रहा है।

कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सह विधायक डॉ. इरफान अंसारी तो खुलेआम कह रहे हैं कि सरकार को गिराने की रणनीति बन रही है। भाजपा पलटवार कर रही है। पूछ रही है कि उनके घर में सबकुछ ठीक है तो वह डर क्यों रहे हैं? भाजपा का आरोप है कि गठबंधन सरकार हर मोर्चे पर फेल हो गई है। महामारी से ठीक से लड़ नहीं पा रही है। राज्य में हालात बिगड़ते जा रहे हैं, ऐसे में जनता को बरगलाने के लिए सत्ता पक्ष की ओर से इस तरह की ऊल-जुलूल बयानबाजी की जा रही है। भाजपा के इस आरोप में तो दम है ही कि कोरोना से लड़ाई में सुस्ती भारी पड़ने लगी है। यहां तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद स्वास्थ्य मंत्री को निर्देशित किया है कि वह कोविड से लड़ाई के लिए रिम्स की व्यवस्थाएं दुरुस्त करें। सरकार अब सख्ती बरतने से भी गुरेज करने के मूड में नहीं है। कैबिनेट ने झारखंड संक्रामक रोग अध्यादेश के जरिये संक्रमण के प्रसार पर रोक लगाने के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं। नियमों का पालन न करने पर एक लाख रुपये जुर्माने के साथ-साथ दो साल तक की कैद तक हो सकती है।

महामारी की भयावहता के बीच राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से किसका क्या भला होगा, पता नहीं लेकिन इससे कोरोना से लड़ाई में ध्यान जरूर भटक सकता है। बाबूलाल मरांडी के हमलावर रुख से गठबंधन सरकार कुछ परेशान दिख रही है। इसका अंदाजा मुख्यमंत्री के इस बयान से भी लगाया जा सकता है, कहीं ऐसा न हो, सरकार बनाने के चक्कर में पूरे पांच साल तक नेता प्रतिपक्ष का दर्जा पाने को भी तरस जाएं। गौरतलब है कि अभी तक विधानसभा अध्यक्ष द्वारा बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया गया है। भाजपा इसको लेकर विधानसभा अध्यक्ष पर दबाव बना रही है। यह आरोप भी मढ़ चुकी है कि सत्ता पक्ष के इशारे पर इसे लंबित किया जा रहा हैं।

इस बीच केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के भाजपा में विलय को सही ठहराया जा चुका है। राज्यसभा के लिए हुए चुनाव में मरांडी ने भाजपा विधायक की हैसियत से वोट दिया है, फिर नेता प्रतिपक्ष की घोषणा में विलंब क्यों किया जा रहा है। संविधान के जानकार भी विधानसभा अध्यक्ष पर उंगली उठा रहे हैं। बाबूलाल मरांडी के दिल्ली दौरे के दौरान ही कांग्रेस और झामुमो ने यह मांग शुरू कर दी थी कि उन्हें लौटते ही क्वारंटाइन कर दिया जाए, क्योंकि दिल्ली रेड जोन में है, ऐसे में उनके राज्य में लौटने और पार्टी की गतिविधियों में सक्रिय रहने पर कोरोना फैल सकता है।

सरकार ने बिना लक्षण वाले अथवा अगंभीर मरीजों को होम आइसोलेशन में रखने का निर्णय लिया है। तीन विधायक संक्रमित हो चुके हैं, ऐसे में मरांडी से कोरोना फैलने का खतरा कितना बढ़ सकता है, यह शायद ही किसी के गले उतरे। वैसे, एयरपोर्ट पर उनके हाथ पर होम क्वारंटाइन की मुहर लगा दी गई थी और उन्होंने महामारी अधिनियम का पालन करते हुए खुद को क्वारंटाइन कर भी लिया है। इसके चलते पार्टी के नेता भी उनसे नहीं मिल पा रहे हैं। उनमें भी बेचैनी है। वह भी जानने को आतुर हैं, आखिर राज्य को लेकर केंद्रीय नेतृत्व के मन में क्या चल रहा है?

[स्थानीय संपादक, झारखंड]