अवधेश कुमार। हमारे समाज में अग्रिम मोर्चे पर खड़े ऐसे लोगों की संख्या काफी है, जो धरातल की वास्तविकता के बजाय अपने सोच के अनुरूप जन मनोविज्ञान की कल्पना कर लेते हैं। उस समूह का मानना था कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में से चार राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, इसलिए पार्टी को यहां प्रदेश के साथ केंद्र सरकार के दोहरे जन विरोधी मनोविज्ञान का सामना करना होगा। इसके साथ उनका विश्लेषण यह भी था कि केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकारों ने नीतियों और वक्तव्यों में हिंदुत्व पर जैसी प्रखरता दिखाई उससे अल्पसंख्यकों के साथ पढ़ा-लिखा वर्ग भी नाराज है। इस तरह उसे तीन प्रकार के सत्ता विरोधी रुझान का सामना करना है और उसकी सरकारों का जाना निश्चित है, लेकिन चुनाव परिणामों ने एक बार फिर उन्हें गलत साबित कर दिया है।

उत्तर प्रदेश को देखें तो तीनों श्रेणी का सत्ता विरोधी रुझान सबसे ज्यादा यहीं होना चाहिए था। आखिर हिंदुत्व का सर्वाधिक मुखर प्रयोग इसी राज्य में हुआ। अल्पसंख्यकों की बड़ी संख्या यहीं है। भाजपा के विरुद्ध प्रचार करने वाली गैर दलीय ताकतें भी यहां सबसे ज्यादा सक्रिय थीं। यह माहौल बनाया गया कि भाजपा को पराजित करना है तो एकजुट होकर सपा के पक्ष में मत डाला जाए। हुआ भी यही। बसपा की कमजोर उपस्थिति के कारण भाजपा विरोधी कुछ मतों का तो ध्रुवीकरण सपा के पक्ष में हुआ, लेकिन उसे बहुत लाभ नहीं मिला। दूसरी ओर भाजपा के पक्ष में सकारात्मक मत ज्यादा है। दरअसल हिंदुत्व और उस पर आधारित राष्ट्रीयता के साथ केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा समाज के वंचित तबकों के हित में किए गए कार्य, उनको पहुंचाए गए लाभ, अपराध नियंत्रण के कारण कायम सुरक्षा स्थिति तथा नेतृत्व के रूप में केंद्र में नरेंद्र मोदी और प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति ने विरोधियों की कल्पनाओं को ध्वस्त कर दिया। इसी तरह केंद्र और प्रदेश सरकार ने आमजन के पक्ष में कल्याणकारी कार्यक्रमों के साथ सिर पर छत, संकट काल में पेट में अन्न तथा जेब में थोड़े पैसे पहुंचाने की नीतियों से ऐसा बड़ा समर्थक समूह खड़ा कर दिया, जिसकी काट किसी के पास नहीं थी। ये बातें भाजपा शासित सभी राज्यों में थोड़ा या अधिक लागू होती हैं। चाहे उत्तराखंड हो, मणिपुर या गोवा सब जगह लाभार्थियों का एक बड़ा वर्ग तैयार हो चुका है। उत्तराखंड में भाजपा ने मुख्यमंत्री बदले तो इससे नुकसान होने के बजाय पार्टी के अंदर का असंतोष दूर हो गया। असंतोष नहीं हो तो लड़ाई जीतना आसान होता है। यहां धामी के नेतृत्व में भाजपा एकीकृत होकर चुनाव लड़ी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहाड़ और तराई के लिए विकास की जो कल्पना दी और केदारनाथ एवं अन्य धार्मिक स्थलों से लेकर तीर्थ यात्राओं के लिए जितना कुछ किया, उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा। उत्तराखंड के लोगों के समक्ष भाजपा के सामने केवल कांग्रेस ही दूसरा विकल्प है। उत्तराखंड की स्थापना के बाद कोई भी सरकार लगातार दोबारा चुनाव में वापस नहीं आई। इसे देखते हुए कांग्रेस इस बार उम्मीद कर रही थी, लेकिन कांग्रेस भाजपा के समानांतर कोई विजन नहीं दे सकी। हरीश रावत जाने पहचाने नेता हैं, लेकिन उन्हें ही एक समय अपनी पार्टी की अंदरूनी कलह से दुखी होकर ट्वीट करना पड़ा।

मणिपुर और गोवा के चुनाव परिणामों से भी कुछ मुखर संदेश निकले हैं। मणिपुर का प्रमुख संदेश यही है कि भाजपा वहां स्थापित ताकत बन चुकी है। लगातार तीन बार सत्ता में रहने वाली कांग्रेस की दशा सबके सामने है। गोवा में पिछली बार भाजपा को केवल 14 सीटें मिली थीं। इस बार मनोहर पर्रीकर जैसा नेता न होने के बावजूद लोगों ने अगर उसे अधिक सीटें दी तो जाहिर है न सरकार के विरुद्ध रुझान था और न ही कांग्रेस सहित आम आदमी पार्टी या तृणमूल कांग्रेस को लेकर कोई आकर्षण।

पंजाब में भाजपा बड़ी शक्ति नहीं रही है। अकाली दल के साथ गठबंधन में उसे 23 विधानसभा और तीन लोकसभा सीटें ही लड़ाई के लिए मिलती रहीं। इस कारण एक ताकत होते हुए भी उसका राजनीतिक विस्तार पूरे प्रदेश में नहीं हो पाया। कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अलग तो हुए, लेकिन उन्होंने उसे ज्यादा क्षति पहुंचाकर अपनी पार्टी को सक्षम बनाने का अभियान नहीं चलाया। इसके चलते भाजपा, पंजाब लोक कांग्रेस तथा ढींढसा के अकाली दल के गठबंधन के बेहतर करने की उम्मीद भी नहीं थी। भाजपा से अलग होने के बाद अकाली दल का एक बड़ा मत आधार कट गया। बसपा वहां अब इस स्थिति में नहीं कि दलितों का बड़ा वर्ग उसे अपनी पार्टी माने। दूसरी ओर कांग्रेस अंतर्कलह से जूझती रही। पंजाब की जनता के पास आम आदमी पार्टी विकल्प के रूप में उपलब्ध थी। यह पार्टी भी खुद को एक मजबूत विकल्प के रूप में पेश करने में सफल रही और इसी कारण उसने उल्लेखनीय जीत हासिल की। अब आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बनने की ओर अग्रसर होगी, लेकिन अभी उसे लंबा सफर तय करना है।

किसी दल, विचारधारा या नेताओं से नफरत से परे हटकर विश्लेषण करें तो पांच राज्यों ने आम जन के सामूहिक सोच को प्रकट किया है। इन पांच में से चार प्रांतों में यह सोच यही साफ करता है कि भाजपा की विचारधारा, उसकी सरकारों की नीतियों एवं जनकल्याण संबंधी कार्यक्रमों आदि को लेकर बनाई गई नकारात्मक धारणा का यथार्थ से लेना-देना नहीं है। उत्तर प्रदेश से लेकर मणिपुर और गोवा जैसे आधुनिक जीवनशैली वाले प्रदेश की आवाज में कुछ एकता है। इसकी ध्वनियों को गहराई से समझने की आवश्यकता है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैैं)