ब्रजबिहारी। West Bengal Election Result 2021 बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को भी इन चुनाव परिणामों पर विश्वास नहीं हो रहा है। रविवार की शाम को चुनाव परिणामों में रुझान स्पष्ट होने के बाद खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रेस कांफ्रेंस में यह माना। वे चुनाव प्रचार के दौरान डबल सेंचुरी लगाने की बात कहती थीं, लेकिन उन्होंने भाजपा जैसे दमदार प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ इतनी शानदार जीत की कभी कल्पना नहीं की थी। इसका सारा श्रेय निश्चित रूप से उन्हें ही जाता है, क्योंकि उनकी पार्टी में सब कुछ वही हैं। इस जीत के जरिये उन्होंने साबित कर दिया कि पार्टी के कद्दावर नेता भले ही उन्हें छोड़कर चले जाएं, उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।

बंगाल के चुनाव नतीजों ने ममता बनर्जी को यह आत्मविश्वास भी दिया है कि वे अब राज्य की जिम्मेदारी अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी के कंधों पर डालकर राष्ट्रीय राजनीति कर सकती हैं। ऐसा सिर्फ खुद उनको ही नहीं लगता है, बल्कि कांग्रेस और राहुल गांधी के प्रति अनिच्छुक कई विपक्षी दल भी उन्हें भाजपा विरोधी राजनीति की धुरी के केंद्र के रूप में देख रहे हैं। अगले साल उत्तर प्रदेश और पंजाब में विधानसभा चुनाव होंगे और उसके बाद लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो जाएंगी। दीदी ने इसका संकेत भी दे दिया है। रविवार को प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने संकेत दे दिया कि अगर केंद्र सरकार सबको मुफ्त में वैक्सीन लगाने की घोषणा नहीं करेगी तो वे इसके खिलाफ आंदोलन करेंगी। अपनी संघर्ष क्षमता के लिए अग्निकन्या कही जा चुकीं दीदी एक बार कोई लक्ष्य तय कर लेती हैं तो फिर उसे हासिल करने के लिए वह कुछ भी कर सकती हैं।

भारतीय जनता पार्टी भले ही इस चुनाव में सत्ता तक पहुंचने में विफल रही है, लेकिन अपने प्रदर्शन से खुद को राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी के आसन तक पहुंचा दिया है। सीमावर्ती राज्य होने के नाते बंगाल में एक ऐसी विपक्षी पार्टी की जरूरत है जो पड़ोसी बांग्लादेश से घुसपैठ और गोतस्करी जैसे राष्ट्रीय हितों के मुद्दों पर विधानसभा और उसके आगे भी अपनी आवाज बुलंद कर सके। इसके अलावा राज्य में सत्ता पर भद्रलोक के काबिज रहने के कारण दलितों और आदिवासियों की उपेक्षा का बड़ा राजनीतिक मुद्दा तो भाजपा के पास है ही। ममता बनर्जी का परिवारवाद, उनके भतीजे की तोलाबाजी और उनकी पार्टी का सिंडिकेट राज भारतीय जनता पार्टी को अपनी जमीन मजबूत करने के लिए खाद-पानी का काम करेंगे और भविष्य में राज्य में इसके सुखद परिणाम भी सामने आएंगे।

भाजपा से पहले कहने को राज्य में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां विपक्ष में थीं, लेकिन वे सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ कुछ भी बोलने से गुरेज करती थीं। राज्य की जनता ने इन चुनावों में इन दोनों पार्टियों को नकार कर उन्हें सही सबक सिखाया है। गौर से देखा जाए तो इन चुनावों में सबसे ज्यादा हैरानी कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के सफाए पर है। विधानसभा चुनाव नतीजे आने से पहले तृणमूल के समर्थक प्रोफेसर मनोजीत मंडल भी यह मानने को तैयार नहीं थे कि मालदा और मुर्शीदाबाद में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिलेगी, लेकिन ऐसा ही हुआ। मुश्किल से मुश्किल समय में भी इन दो जिलों में कांग्रेस हमेशा जीतती रही है। सिर्फ कांग्रेस का ही सफाया नहीं हुआ है, उसके साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली वामपंथी पार्टियों के गढ़ भी ढह गए हैं। इन दोनों पार्टियों के पराभव का सबसे ज्यादा फायदा तृणमूल कांग्रेस को हुआ है।

नतीजतन, उसे पिछली बार के मुकाबले ज्यादा सीटें मिलती नजर आ रही हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के ये वोट भाजपा को मिले थे, इस वजह से उसे 18 सीटें मिली थीं। इस बार विधानसभा में इन वोटों का एक बड़ा हिस्सा तृणमूल के खाते में गया है। भाजपा उन्हें अपने पाले में कायम रखने में सफल नहीं रही। बंगाल का चुनाव सिर्फ एक राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिए नहीं लड़ा गया था, बल्कि यह क्षेत्रीय अस्मिता और पहचान की लड़ाई बन गया था। निश्चित रूप से इस लड़ाई में ममता बनर्जी विजयी हुई हैं और भाजपा को अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना होगा। पहली नजर में ममता बनर्जी दोनों पार्टियों के बीच का असली फर्क बनकर उभरी हैं। भाजपा को राज्य स्तर पर ममता के मुकाबले का कद्दावर नेता ढूंढना होगा। एक ऐसा नेता जो करिश्माई व्यक्तित्व का धनी हो और आम जनता के लिए संघर्ष करने को तैयार हो। सिर्फ व्यक्तित्व से चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। अगर ऐसा होता तो कमल हासन की पार्टी को तमिलनाडु में बुरी तरह पराजित नहीं होना पड़ता।