बद्री नारायण। अपने आदर्श और सही अर्थों में जनतंत्र जनता का शासन है। ऐसे में एक जनतांत्रिक राज्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह जनता की आकांक्षाओं एवं जरूरतों को समझकर लोक कल्याणकारी नीतियां एवं योजनाएं बनाए। जब कोई भी जनतांत्रिक राज्य ऐसा करता है तो जनता जनतंत्र में एक प्रबल हिस्सेदार के रूप में उभरकर सामने आती है। इसीलिए मोदी सरकार लगातार जहां नई लोक कल्याणकारी योजनाएं बना रही है, वहीं पहले से चली आ रही योजनाओं का विस्तार कर रही है। इसके साथ ही प्राप्त हो रहे अनुभवों एवं मिल रहे सुझावों के आधार पर पहले से चल रही योजनाओं में नए तत्व भी जोड़ रही है। यही वजह है कि मोदी सरकार की अनेक योजनाएं जैसे-पीएम किसान सम्मान निधि, आयुष्मान भारत एवं उज्ज्वला जैसी लोकप्रिय योजनाएं समय के साथ और सबल ही हुई हैं।

इसमें दो मत नहीं कि जनतांत्रिक राज्य लोक कल्याणकारी योजनाओं से लाभार्थियों का एक समूह विकसित करता है, जो उनका लाभ उठाते हुए सक्षम होकर समाज में आगे बढ़ता है। जो भी राजनीतिक दल शासन में रहकर इन योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करता है, उसके प्रति जनता की राजनीतिक रूप से गोलबंदी भी होती है। साफ है कि जनतांत्रिक राज्य में लोकप्रिय लोक कल्याणकारी योजनाओं की बड़ी भूमिका होती है। आज इस संदर्भ में चल रहे विमर्श में दो पक्ष बन गए हैं। एक पक्ष का मानना है कि ऐसी योजनाएं राजकोष को कमजोर करती हैं और जनता को राज्य पर अत्यधिक निर्भर बनाती हैं। दूसरे पक्ष का मानना है कि लोक कल्याणकारी योजनाएं जनतंत्र का नैतिक पक्ष हैं और इनके बिना जनतंत्र अर्थवान नहीं हो पाता। ऐसी योजनाएं सर्वसमाज के लिए तो होती ही हैं, साथ ही 'हाशिये के समाज' को विकास से जोडऩे का काम भी करती हैं।

उत्तर प्रदेश के चुनाव में जब 'लाभार्थी' समूहों को लेकर एक प्रभावशाली विमर्श शुरू हुआ, तब यह माना गया था कि केंद्र एवं उत्तर प्रदेश की लोक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ एक बड़े समूह तक पहुंचा है, जिसने जाति एवं समुदाय के बंधनों को तोड़ते हुए भाजपा के पक्ष में जनता को आकर्षित किया। उसी दौरान यह आशंका भी जताई गई थी कि चुनाव के बाद ऐसी योजनाएं बंद कर दी जाएंगी, लेकिन जो लोग लाभार्थी चेतना के उभार एवं उसका जनतांत्रिक राजनीति से संबंध समझ रहे थे, उन्हें यही लगता था कि भाजपा विकास एवं लोक कल्याणकारी योजनाओं की राह पर आगे ही बढ़ेगी। हुआ भी कुछ ऐसा ही। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता हासिल करने के बाद केंद्र एवं राज्य की दोनों सरकारों ने मुफ्त राशन वितरण योजना की अवधि का विस्तार किया। इसके साथ ही उज्ज्वला योजना के तहत मिल रहे रसोई गैस सिलेंडर पर 200 रुपये की नई सब्सिडी देने का प्रविधान भी जोड़ा। इसका लाभ देश भर में उज्ज्वला योजना के सभी लाभार्थियों को मिलेगा।

अभी हाल में योगी सरकार ने लोक कल्याण की योजनाओं के प्रसार की दिशा में आगे बढ़ते हुए 'परिवार कार्ड' बनाने की घोषणा की है। इसके माध्यम से राज्य सरकार उत्तर प्रदेश में बसने वाले प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की दिशा में कार्य करेगी। यह कार्ड एक प्रकार से उत्तर प्रदेश के निवासियों एवं रोजगार का डाटा बैंक भी सृजित करने में सहायक होगा। इसी तरह उत्तर प्रदेश सरकार वृद्धजन पेंशन स्कीम, किसान कल्याण मिशन, मुख्यमंत्री मुफ्त लैपटाप स्कीम, अन्नपूर्णा भोजनालय स्कीम, श्रमिकों के बच्चों के लिए स्कीम, मुख्यमंत्री स्वरोजगार आदि योजनाओं को भी लागू कर रही है। इन योजनाओं के तहत लाभार्थियों के खाते में सीधे धन भेजने से गरीबी एवं बेरोजगारी की मार को तो कम करने में मदद मिलेगी ही, साथ ही निर्बल वर्गों की आत्मशक्ति भी बढ़ेगी।

उत्तर प्रदेश सरकार जैसी कल्याणकारी योजनाएं छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं कर्नाटक जैसे राज्य भी अपना रहे हैं। ये सभी राज्य लोक कल्याणकारी योजनाओं के साथ विकास के संबंध को मजबूत करने में लगे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार मुख्यमंत्री सुपोषण योजना, किसान न्याय योजना, महतारी दुलार योजना, कौशल्या मातृत्व योजना, बाल संदर्भ योजना का लाभ समाज के विभिन्न वर्गों में पहुंचाने का काम कर रही है। ऐसे ही पंजाब में भगवंत मान सरकार ने 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की घोषणा की है। वह प्रत्येक महिला को प्रति माह 1000 रुपये देने जैसी योजना पर भी काम कर रही है। ओडिशा सरकार की विकास की संकल्पना में ओडिशा खाद्य सुरक्षा, बीजू स्वास्थ्य कल्याण, कृषि उद्योग जैसी लोक कल्याणकारी योजनाएं महत्वपूर्ण होकर उभरी हैं। इससे यदि कुछ स्पष्ट होता है तो यही कि आज के जनतंत्र में लोक कल्याणकारी योजनाओं की भूमिका बढ़ रही है।

जाति, पंथ एवं क्षेत्र आधारित अस्मिताएं प्रत्येक समाज में सक्रिय रहती हैं। लोक कल्याणकारी योजनाएं इनके प्रभाव को कुछ न कुछ कम करती हैं। लोक कल्याण केंद्रित राज्य के रूप में भारत में जनतांत्रिक विकास की एक महत्वपूर्ण संकल्पना हमारे समक्ष मौजूद है। जरूरत इसकी है कि इससे कमजोरों एवं गरीबों में जो क्षमता विकसित हो रही है, उसे और अधिक गतिमान बनाते हुए सामाजिक समूहों को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाया जाए। आत्मनिर्भरता का मंत्र और लोक कल्याणकारी योजनाएं एक-दूसरे के विरुद्ध न होकर सहकारी हैं। ये योजनाएं निर्बल समूहों में विकास की आकांक्षा जगाती हैं, जो आत्मनिर्भरता का मूल तत्व है।

(लेखक जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, प्रयागराज के निदेशक हैं)