[ एम वेंकैया नायडू ]: राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का दर्शन करके मेरे मन में भावनाओं का सैलाब-सा उमड़ पड़ा। यह स्मारक विचारों और भावनाओं में उद्वेग पैदा करता है। मुझे आशा है कि यह स्मारक भावी पीढ़ियों के लिए देश के इन वीर सपूतों द्वारा दिखाए गए वीरता और संकल्प के मार्ग को प्रशस्त करेगा और उन्हें प्रेरित करेगा। मुझे हर्ष है कि आजादी के सत्तर वर्षों के बाद अंतत: हम देश के उन अमर बलिदानी वीर योद्धाओं की पावन स्मृति में एक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक समर्पित कर सके, जिन्होंने भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान किया। इस कार्य के लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साधुवाद देता हूं।

यह युद्ध स्मारक 1962 के भारत-चीन युद्ध के अमर शहीद सैनिकों, पाकिस्तान द्वारा थोपे गए 1947, 1965, 1971 और 1999 के कारगिल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों की पुण्य स्मृति को समर्पित है। यह स्मारक संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों, आपदा राहत के मानवीय मिशनों और आतंकवाद, अतिवाद विरोधी अभियानों में शहीद हुए वीरों की पावन स्मृति को भी समर्पित है। भारतीय सैनिकों ने देश के भीतर, सीमाओं पर और देश के बाहर भी विभिन्न स्थानों पर युद्धों में अपने असाधारण संकल्प, पराक्रम और शौर्य का प्रदर्शन किया है। ब्रिटिश शासन के दौरान भी भारतीय सैनिकों ने प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में विभिन्न मोर्चों पर अपनी वीरता का लोहा मनवाया था।

भारत ने प्रथम विश्वयुद्ध में सैनिकों और सामग्री का महत्वपूर्ण योगदान किया था। उस युद्ध के दौरान हमारे सैनिक विश्व भर के विभिन्न मोर्चों पर लड़े जैसे कि फ्रांस और बेल्जियम में, अदन में, अरब और पूर्वी अफ्रीका में, गल्लीपोल्ली, मिस्न, मेसोपोटामिया में, फारस, फलस्तीन आदि में। प्रथम विश्वयुद्ध में हमारे आठ लाख सैनिक युद्ध के विभिन्न मोर्चों पर लड़े, जबकि 15 लाख ने युद्ध में जाने की इच्छा दिखाई थी। 47746 सैनिकों को मृत या युद्ध के दौरान गायब घोषित किया गया, जबकि 65000 घायल हुए। नवंबर 2018 में मुझे फ्रांस के विल्लर्स गुइसलेन शहर में भारत द्वारा निर्मित भारतीय सैन्य स्मारक का अनावरण करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ था। आजादी के बाद भारत द्वारा फ्रांस में बनाया गया अपनी तरह का यह पहला सैन्य स्मारक था। उस समय मुझे लगा कि हमें भी अपने देश में बहुत पहले ही सैन्य स्मारक बनाना चाहिए था। इस विषय पर 60 के दशक में विचार भी हुआ था, पर वास्तव में यह मौका 60 वर्ष बाद ही आ पाया। मुझे संतोष है कि हम अब एक भव्य स्मारक का निर्माण कर सके हैं।

आज जब विश्व शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए प्रयास कर रहा है, पारंपरिक युद्धों का खतरा कम हो रहा है, ऐसे में कुछ विद्वेषपूर्ण दिग्भ्रमित राष्ट्र पिछले तीन दशकों से आतंकवाद को प्रश्रय देकर उसे अपनी राष्ट्रीय नीति का भाग बना रहे हैं। भारत सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद का दंश झेल रहा है। हमने सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद की बड़ी कीमत चुकाई है। 17वीं शताब्दी में विश्व संपदा उत्पादन में 27 फीसद भाग भारत का था। अपनी आर्थिक ताकत के बावजूद भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, क्योंकि हम वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करने वाले शांतिप्रिय राष्ट्र हैैं। संसद पर आतंकी हमला, 26/11 का मुंबई हमला और जम्मू-कश्मीर में हो रही आतंकी गतिविधियों ने देश के स्वाभिमान और आत्मविश्वास को चुनौती दी है। हमारी सेना और अद्र्धसैनिक बलों के वीर जवानों ने विक्षिप्त और अराजक हिंसा में अपनी प्राणों की आहुति दी है।

हाल के दिनों में आतंकवाद के विरुद्ध हमारे द्वारा की गई दो कारगर जवाबी कार्रवाइयों ने बार-बार आतंकी हिंसा झेल रहे देश की जनता के क्रोध और रोष का कुछ सीमा तक समाधान किया है। यह जवाबी कार्रवाई समय की मांग थी। हमारे जवानों और किसानों के त्याग के प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता ‘जय जवान जय किसान’ के अमर नारे में प्रतिबिंबित होती है। यह राष्ट्रीय युद्ध स्मारक उन सभी अमर बलिदानियों की शाश्वत स्मृति को समर्पित कृतज्ञ राष्ट्र का एक सार्थक प्रयास है, जिन्होंने हमारे भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए सर्वोच्च बलिदान किया। इस स्मारक का कलात्मक सौंदर्य लोगों को हमारे सैनिकों की वीरता और देशभक्ति का विचार और स्मरण करने के लिए सौम्य, शांत परिवेश देगा।

40 एकड़ में फैले इस युद्ध स्मारक का डिजाइन मूलत: भारतीय है। इसमें महाभारत के चक्रव्यूह के आकार में चार समकेंद्रित चक्र-अमर चक्र, वीरता चक्र, त्याग चक्र और रक्षक चक्र हैं। मातृ भूमि की रक्षा में अपना जौहर दिखाने वाले वीरों के नाम इन संकेंद्रित चक्रों पर उत्कीर्ण हैं। स्मारक के मध्य में अमर ज्योति प्रज्ज्वलित है। यह ज्योति साक्षी है कि हमारे वीर सैनिकों की शौर्य कीर्ति अमर है और राष्ट्र उनके बलिदान को सदैव कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करेगा। स्मारक में परमवीर चक्र विजेता सैनिकों की प्रतिमा भी हैं। जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री ने कहा, देशवासियों के लिए सैनिकों की वीरता का यह स्मारक राष्ट्रीय तीर्थ ही है। वीरगति को प्राप्त अपने सैनिकों का सम्मान हमें इसी भाव से करना चाहिए। हमें न सिर्फ देश की एकता और अखंडता के लिए हमारे वीर सैनिकों के सर्वोच्च बलिदान का स्मरण रखना चाहिए, बल्कि यह भी हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हम गलती से भी ऐसा कुछ न करें जिससे हमारे सैनिकों और सेना का मनोबल और सम्मान कम हो। राष्ट्र प्रथम ही हमारा मूल मंत्र होना चाहिए।

पुलवामा हमले के जवाब में हमारी कार्रवाई सीमा पार से आतंकियों की बढ़ती घुसपैठ के प्रतिकार के लिए आवश्यक थी। इसने आतंकवाद के बढ़ते खतरे की तरफ विश्व का ध्यान एक बार फिर आकर्षित किया। यह आवश्यक है कि आतंकवाद के विरुद्ध भारत द्वारा प्रस्तावित संधि मसौदे-यूनाइटेड नेशंस कॉम्प्रिहेंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म को शीघ्र स्वीकार किया जाए। आतंकवाद के विरुद्ध साझा वैश्विक रणनीति बनाने के लिए यह अनुकूल समय है।

युद्ध स्मारक हमारे वीर सैनिकों के शौर्य की अमर गाथा का साक्षी रहेगा जिन्होंने मातृ भूमि की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और जिनके त्याग से आज शांति सुनिश्चित हो सकी है। इन सैनिकों ने सुनिश्चित किया है कि सीमा पार आतंकवाद से निरापद रह कर देश सतत प्रगति कर सके। हमारे सैनिक हमारे लोकतंत्र के वे प्रहरी हैं जिनके योगदान को उचित पहचान नहीं मिली। वे शांति के अनाम अनजान प्रहरी हैं। मैैं अपने वीर सैनिकों की पुण्य स्मृति में विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए विश्वास करता हूं कि देशवासी देश की सुरक्षा में तैनात वीर सैनिकों के अप्रतिम योगदान को सदैव याद रखेंगे।

आइए हम न सिर्फ एक नियत दिन उनकी वीरगाथाओं की स्मृति को समर्पित करें, बल्कि सेवानिवृत्त वयोवृद्ध सैनिकों, उनके परिजनों का सम्मान करें, उनके परिवार की हर संभव सहायता करें, क्योंकि उन्होंने अपने महत्वपूर्ण वर्ष हमारे लिए समर्पित किए हैं। इन अमर शहीदों ने अपना सर्वस्व बलिदान देकर हमारे प्राणों की रक्षा की है एवं हमारे भविष्य को निरापद किया है।

( लेखक भारत के उपराष्ट्रपति हैैं )