जीवन में किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग में बाधाओं का आना अवश्यंभावी है। एक समय ऐसा आता है, जब लगता है कि लक्ष्य अप्राप्य है, नहीं प्राप्त हो सकता। ऐसे समय में व्यक्ति निराशा के गहन अंधकार की ओर बढ़ने लगता है। ऐसा लगने लगता है कि संगी, साथी, मित्र, दोस्त, परिवार, समाज सभी उलाहना दे रहे हैं। व्यक्ति को सांत्वना का एक स्वर तक नहीं सुनाई देता। निराशा की इस घड़ी को साहस के साथ जो पार कर जाता है, जो संबंधियों और समाज की उलाहना और उपेक्षा पर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ता जाता है, घोर अंधकार के समय भी जिसके चिंतन में उसका लक्ष्य प्रकाशित होता रहता है, वह विजयी होता है। लक्ष्य प्राप्त करता है। अब भला विजयी की उपेक्षा कौन कर सकता है? अत: ऐसे व्यक्ति को जिसने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है, समाज प्रशंसा की दृष्टि से देखता है, परिवार सत्कार करता है और मित्र स्नेह की वर्षा करते हैं।

यदि हम किसी व्यक्ति को अपना आदर्श और प्रेरणास्रोत नहीं मान सकते तो कम से कम प्रकृति को ही वह शक्ति मानें। प्रकृति हमें सदा संबल देती है। हम पीपल से प्रेरणा और गति ग्रहण कर सकते हैं। हमें उस पीपल की तरह बनना है जो एक सूक्ष्म बीज से इतना बड़ा आकार लेता है। वह केवल आकार ही नहीं लेता, अपितु वह बीज जहां भी, जिस भी अवस्था में रहता है, जल-वायु ग्रहण कर वहीं आकार लेने लगता है। यदि भूमि पर न हो, किसी भवन अथवा वृक्ष पर भी हो तो भी वह उगता है, बढ़ता है, अपनी जड़ों को भूमि तक पहुंचाता है, भूमि में विस्तृत आधार बनाता है और स्वयं विराट अस्तित्व ग्रहण करता है। उसे किसी के सिंचन और देखभाल की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वावलंबी होकर असंख्य जीवों का आश्रय बनता है। यही नहीं यदि कोई भयंकर चक्रवात उसे गिराने का प्रयास करे तो भी वह नहीं उखड़ता। यदि कभी उसकी जड़ें उखड़ भी जाएं तो भी शेष जड़ें भूमि को जकड़े रहती हैं और धराशायी होकर भी वह हरा-भरा बना रहता है। प्रत्येक पतझड़ में पत्तियां गिराता है और वसंत में ताम्रवर्णी नव-पल्लवों से सुशोभित होता है। यह है पीपल की जिजीविषा। हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वयं तैयार रहना चाहिए और आत्मनिर्भर होना चाहिए। कितना भी निराशापूर्ण समय आए आशा कभी नहीं छोड़नी चाहिए।

[ डॉ. ममता त्रिपाठी ]