[ सृजन पाल सिंह ]: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चंद्रयान-2 मिशन के जरिये चंद्रमा की एक नई यात्रा पर निकल चुका है। दुनिया में अंतरिक्ष को खोजने की यह होड़ अक्टूबर 1957 में शुरू हुई थी जब तत्कालीन सोवियत संघ ने स्पुतनिक-1 को अंतरिक्ष की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर एक नए युग का सूत्रपात किया था। स्पुतनिक-1 दो फुट चौड़ा गोला था जो धरती की तरफ रेडियो वेव संचालित करता था।

अंतरिक्ष में पहुंचने की होड़

स्पुतनिक-1 अंतरिक्ष में महज तीन सप्ताह तक ही बचा रहा और फिर उसकी बैटरी समाप्त हो गई, परंतु सोवियत संघ के उस छोटे से सैटेलाइट ने विश्व में अंतरिक्ष की होड़ शुरू कर दी जिसमें अमेरिका और रूस प्रमुख प्रतिद्वंद्वी थे। इस प्रतिस्पर्धा के दूसरे चरण में भी सोवियत संघ की जीत तब हुई जब अप्रैल 1961 में यूरी गागरिन अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले मानव बने, परंतु इस स्पर्धा के प्रमुख चरण में अमेरिकियों ने तब विजय प्राप्त की जब 20 जुलाई, 1969 को नासा ने दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर पहुंचा दिया। उस मिशन का नाम था अपोलो-11 और इसके बाद कुल 12 व्यक्तियों ने चंद्रमा पर कदम रखा। ये सभी अमेरिकी थे। 1972 में अपोलो-17 के साथ नासा ने चंद्रमा पर अपने मिशन को विराम दे दिया।

मिशन चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण

अब अपोलो-11 के पूरे पचास साल बाद भारत का इसरो चांद पर अपना सबसे महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 शुरू कर रहा है। चंद्रयान-2 धरती से चांद तक की 3,84,000 किलोमीटर यात्रा की शुरुआत 15 जुलाई को अलसुबह 2 दो बजकर 51 मिनट पर कर चुका है। चंद्रयान-2 के तीन प्रमुख हिस्से हैं। पहला लगभग 2400 किलोग्राम का ऑर्बिटर जो चंद्रमा की कक्षा में स्थापित होकर उसका चक्कर लगाएगा। दूसरा हिस्सा है लैंडर जिसका नाम ‘विक्रम’ रखा गया है। यह नाम इसरो के संस्थापक और उसके पहले प्रमुख डॉ. विक्रम साराभाई के सम्मान में है।

चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग

जब ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित हो जाएगा तब यह 1500 किलोग्राम का लैंडर विक्रम उससे अलग हो जाएगा। फिर वह चंद्रमा के आकाश को सटीकता से भेदते हुए उसके धरातल पर पहुंच जाएगा। ऐसा करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक होगा कि चंद्रमा पर उतारते समय उसकी गति नियंत्रित रहे जिससे कि उसे कोई क्षति न पहुंचे। वह बहुत ही नाजुक घड़ी होगी और इसे हम सॉफ्ट लैंडिंग बोलते हैं। अब तक किए गए 38 ऐसे प्रयासों में महज 20 बार ही हम इस कार्य में सफल हुए हैं।

प्रज्ञान चांद के टुकड़ों का अध्ययन करेगा

विक्रम के चंद्रमा के धरातल पर पहुंचते ही उसमें से एक 27 किलोग्राम और छह पहियों की अंतरिक्ष गाड़ी यानी रोवर निकलेगा। इस तीसरे हिस्से को इसरो ने नाम दिया है प्रज्ञान। प्रज्ञान लगभग एक चंद्र दिवस तक अपनी बैटरी पर जीवित रहकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के 500 मीटर तक के दायरे तक में खोजबीन करेगा। गौरतलब है कि एक चंद्र दिवस यानी चांद पर एक पूरा दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है। इन दो हफ्तों में प्रज्ञान चांद के टुकड़ों का अध्ययन करेगा, चांद की तस्वीरें लेगा और उस पर जीवन के होने या जीवन के लिए जरूरी संसाधनों पर शोध करेगा। प्रज्ञान की बैटरी समाप्त होने के बाद भी चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हमारा ऑर्बिटर लगभग एक साल तक चांद की तस्वीरें हमें भेजता रहेगा।

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत होगा पहला देश

चंद्रयान-2 वर्ष 2008 के चंद्रयान-1 मिशन से कही ज्यादा विकसित है। चंद्रयान-1 का मिशन सिर्फ ऑर्बिटर को चंद्रमा की कक्षा में 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचाना था, जबकि चंद्रयान-2 का लक्ष्य ऑर्बिटर के साथ-साथ चंद्रमा की सतह तक पहुंचना और उसकी सतह पर रोवर चलाने का है। इस मिशन के बाद हम चंद्रमा पर उतरने वाले चौथे देश और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन जाएंगे।

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव

चंद्रमा पर उतरने के लिए उसके दक्षिणी ध्रुव का चयन एक विशेष महत्व रखता है। यहां सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती है। ऐसे में इस विशाल क्षेत्र का तापमान शून्य से लगभग 250 डिग्री नीचे तक चला जाता है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में जमा हुआ जल यानी बर्फ पाई जा सकती है। यदि यह सच हुआ तो आने वाले समय में मानव जाति चंद्रमा पर मौजूद इस बर्फ से जल बना कर और फिर उस जल से ऑक्सीजन निकाल कर वहां पर स्थाई रूप से रहना शुरू कर सकती है। इसी जल से हम हाइड्रोजन भी बना सकते हैैं जो चंद्रमा पर हमारा ईंधन बनेगा।

हीलियम-3 पर हैं भारत की निगाहें

चंद्रयान का प्रज्ञान रोवर करोड़ों वर्ष से वहां जमी इसी बर्फ को खोजने का प्रयास करेगा। इसके अलावा चंद्रमा पर कई दुर्लभ खनिज भी हैं। इसमें टाइटेनियम, प्लेटिनम और सोना तो हैैं ही, पर वैज्ञानिकों की विशेष रुचि एक नए पदार्थ पर है। यह है हीलियम-3, जो कि धरती पर न के बराबर है, लेकिन चंद्रमा पर बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। हीलियम-3 एक रेडियो एक्टिव पदार्थ है जिससे हम फ्यूजन (विखंडन) के जरिये बड़ी मात्रा में परमाणु ऊर्जा बना सकते हैं।

दुनिया में किफायती चंद्र मिशन की मिसाल

मालूम हो कि चंद्रयान-2 छह सितंबर, 2019 को चंद्रमा पर दो विशाल गड्ढों के बीच मौजूद समतल पर उतरेगा। इस पूरी यात्रा का खर्च 123 मिलियन डॉलर यानी 843 करोड़ रुपये होगा, जो कि अब तक के सभी चंद्र अभियानों से काम है और हॉलीवुड की इस वर्ष की सबसे प्रचलित फिल्म ‘द अवेंजर्स एंडगेम’ को बनाने में आई लागत की आधी है। इस प्रकार से इसरो दुनिया में किफायती चंद्र मिशन की एक मिसाल कायम कर रहा है।

चांद पर पहला कदम नील आर्मस्ट्रांग ने रखा

चंद्रमा पर सबसे पहला कदम रखने वाले व्यक्ति नील आर्मस्ट्रांग थे। उन्होंने चांद पर पहला कदम रखते हुए कहा था, ‘एक मानव का यह छोटा-सा कदम मानवता के लिए एक विशाल छलांग है।’ इसरो का चंद्रयान मिशन ऐसी ही एक और छलांग साबित होने वाला है। चंद्रयान-2 न सिर्फ भारत के तकनीकी विकास का एक उदाहरण बनेगा, बल्कि मानव जाति के दूसरे ग्रहों पर बसने के स्वप्न को पूरा करने में एक हिस्सा बनेगा। कुल मिलाकर अपोलो-11 से लेकर चंद्रयान-2 तक के चंद्रमा पर मानव के विभिन्न अभियान उस दिन की ओर बढ़ते हुए कदम हैं जब हम अपने घर के पते में चंद्रमा का शब्द जोड़ सकेंगे।

( लेखक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के पूर्व तकनीकी सलाहकार हैं और अंतरिक्ष विषय पर कई पुस्तक लिख चुके हैं )