[ प्रकाश सिंह और प्रतिभा नैथानी ]: कश्मीर को लेकर आजादी के समय से ही देश में अनिश्चितता बनी हुई थी। स्वतंत्रता के बाद भारत में रियासतों को तीन विकल्प दिए गए थे। पहला कि वे स्वतंत्र देश के रूप में अपना अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। दूसरा वे भारत में शामिल हो सकते हैं और तीसरा वे पाकिस्तान का हिस्सा बन सकते हैं।

महाराजा हरि सिंह स्वतंत्र देश का सपना देख रहे थे

कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने दुर्भाग्य से शुरू में ढुलमुल नीति अपनाई। वह शायद स्वतंत्र देश के रूप में रहने का सपना देख रहे थे, परंतु जब पाकिस्तान के सैनिकों और कबाइली लोगों ने राज्य पर हमला किया तब उन्हें लगा कि राज्य को बचाने का एक ही विकल्प है। उन्होंने भारत से मदद मांगी और भारत में विलय होना स्वीकार करते हुए इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर 26 अक्टूबर, 1947 को हस्ताक्षर कर दिए। परंतु ब्रिटिश सरकार लॉर्ड माउंटबेटन के जरिये कुछ और ही खेल खेल रही थी।

कश्मीर भारत का अंग

माउंटबेटन ने कश्मीर भारत का अंग बनने के बाद लिखा कि ‘मेरी सरकार की इच्छा है जैसे ही जम्मू-कश्मीर की कानून-व्यवस्था दुरुस्त होती है और वहां से घुसपैठिये बाहर खदेड़े जाएंगे तो स्थानीय लोगों की भावनाओं के अनुसार राज्य का विलय सुनिश्चित किया जाएगा।’ उन्हें ऐसा लिखने का कोई अधिकार नहीं था और कानूनी दृष्टि से यह गलत था।

अनुच्छेद 370- जम्मू-कश्मीर के रिश्तों की रूपरेखा

अनुच्छेद 370 केंद्र से जम्मू-कश्मीर के रिश्तों की रूपरेखा है। यह अनुच्छेद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के बीच लंबी बातचीत के बाद 17 अक्टूबर, 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा स्वीकार किया गया था। इसके प्रावधानों के अनुसार रक्षा, विदेश नीति और संचार मामलों को छोड़कर किसी अन्य मामले से संबंधित कानून बनाने और लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी। अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा रहा।

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की मांग 1964 में उठी थी

उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 370 को हटाने की चर्चा समय-समय पर होती रही है। संसद के रिकॉर्ड खंगालने से कुछ रोचक प्रसंग सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश के बिजनौर से स्वतंत्र सदस्य प्रकाशवीर शास्त्री ने 11 सितंबर, 1964 को लोकसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल रखा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया जाए। उनका कहना था कि यह अनुच्छेद अस्थायी तो है ही, इसके रहने से चार समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। पहली तो यह कि इसके कारण पाकिस्तान बराबर यह दुष्प्रचार करता है कि कश्मीर का अलग अस्तित्व है और वह भारत का हिस्सा नहीं है। दूसरी यह कि जो देश हमारे संविधान से परिचित नहीं है, उन्हें भी यह भ्रम हो रहा है कि कश्मीर का भारत से जुड़ाव अस्थायी है।

राजनीतिक परिस्थितियां बदल सकती हैं

तीसरी यह कि कश्मीर के जनमानस में भी यह भावना है कि किसी भी दिन राजनीतिक परिस्थितियां बदल सकती हैं और चौथी यह कि इस प्रावधान का लाभ उठाते हुए अलगाववादी बराबर भारत के विरुद्ध अनर्गल बातें करते रहते हैं। इस पर कुल 25 सांसदों ने बिल के पक्ष में भाषण दिए। कांग्र्रेस के हनुमंथैया ने कहा कि सभी सदस्य बिल के पक्ष में हैं और इसे पारित किया जाना चाहिए। भाकपा के एनसी चटर्जी ने कहा कि यह अनुच्छेद अस्थायी है और पूछा कि यह कब तक बना रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस समय प्रधानमंत्री नहीं हैं, अन्यथा मैं उनसे पूछता कि उनके शब्दकोश में अस्थायी के क्या अर्थ होते हैं।

अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का समर्थन

कश्मीर के सांसदों ने भी अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का जोरदार समर्थन किया था। कांग्र्रेस के श्यामलाल सर्राफ ने बिल का समर्थन करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर की जनता इस अनुच्छेद को नहीं चाहती। कश्मीर के ही गोपालदत्त मेंगी ने तो यहां तक कहा कि अनुच्छेद 370 प्रदेश के लिए एक अभिशाप है और यह हमें कोई विशेष दर्जा नहीं देता, बल्कि इसने हमें अपने देश में ही एक दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया है और यह शेष भारत एवं कश्मीर के बीच एक दीवार है।

भारतीय संविधान पूरी तरह लागू हो

उन्होंने यह भी बताया कि नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव मीर कासिम से उनकी प्रात:काल बात हुई थी और उन्होंने भी कहा था कि भारतीय संविधान जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह लागू किया जाना चाहिए। कश्मीर के एक अन्य सांसद और शेख अब्दुल्ला के करीबी अब्दुल गनी गोनी ने भी संसद से बिल पास करने को कहा। अपने बयान में उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद ने भी अनुच्छेद 370 हटाने के लिए पहल की थी, परंतु केंद्र सरकार सहमत नहीं हुई थी। उन्होंने कहा, ‘मैं नहीं जानता कि केंद्र सरकार पश्चिम के प्रभाव में है या वह पाकिस्तान को खुश करना चाहती है।’

कश्मीर की जनता पर अन्याय

केंद्र सरकार और कांग्रेस नेताओं पर उन्होंने कश्मीर की जनता पर अन्याय करने का आरोप लगाया और कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और अनुच्छेद 370 के प्रावधान अस्थायी हैं जो हटा दिए जाने चाहिए। अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त किया जाना आवश्यक है ताकि हम सब भारत के समान नागरिक बन सकें और हमें दोयम दर्जे का नागरिक न समझा जाए।

जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत में विश्वास नहीं

कश्मीर के एक और सांसद सैयद नासिर हुसैन समनानी ने कहा कि हमारी क्या गलती है कि अनुच्छेद 370 समाप्त नहीं किया जा रहा है। हम चाहते हैं कि हमारे जीवनकाल में ही यह अभिशाप खत्म हो ताकि हम और हमारी संतानों का भविष्य सुरक्षित हो सके। गृहमंत्री को इशारा करते हुए उन्होंने पूछा कि आखिर यह प्रावधान अभी तक संविधान में क्यों है और कौन इसे बनाए रखना चाहते हैं। हम तो चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में उसी तरह कानून लागू हों जैसे महाराष्ट्र, मद्रास और बंगाल में लागू होते हैं। हम जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत में विश्वास नहीं करते और इसीलिए हमने कश्मीर में मुस्लिम लीग नहीं बनने दी।

अनुच्छेद 370 पर बहस

बिल पर बहस का जवाब देते हुए गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने कहा कि कुछ कानूनी दिक्कतें हैं जिससे अभी अनुच्छेद 370 समाप्त नहीं किया जा सकता, परंतु उन्होंने आश्वासन दिया कि प्रकाशवीर शास्त्री की भावनाओं का आदर करते हुए निकट भविष्य में कोई रास्ता निकाला जाएगा। ये सभी बहस पचास साल से भी पहले हुई थीं।

कश्मीर और शेष भारत के बीच की दीवार गिरी

मोदी सरकार ने कश्मीर और शेष भारत के बीच की दीवार गिराकर देश की संप्रभुता को बल दिया है। निश्चय ही इससे अलगाववादियों और आतंकवादियों से निपटने में भी सहायता मिलेगी। विकास का मार्ग भी प्रशस्त होगा। परंतु आने वाले दिन चुनौतीपूर्ण होंगे। पाकिस्तान हरसंभव प्रयास करेगा कि कश्मीर में हालात बिगड़ें। उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार आतंकवादियों को कश्मीर में भेजा जाएगा। लश्कर ए तोइबा और जैश ए मुहम्मद को हरसंभव सहायता देकर पुलवामा या उससे भी ज्यादा गंभीर घटनाओं को अंजाम देने के लिए उकसाया जाएगा। केंद्र सरकार को इसके लिए अपने सुरक्षा बलों और खुफिया तंत्र को पूरी तरह सक्रिय रखना होगा।                            

      

( प्रकाश सिंह सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक हैं और प्रतिभा नैथानी सेंट जेवियर कॉलेज, मुंबई में राजनीतिशास्त्र की विभागाध्यक्ष हैं )

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